राजस्थान चुनाव रैली में विधवा पेंशन पर बोलते हुए प्रधानमंत्री जी ने आरोप लगाते हुये एक सुभाषित कहा, पर पिछले पांच साल में उस घोटाले में लिप्त लोगों के खिलाफ क्या कार्यवाही हुयी यह नहीं बताया। प्रधानमंत्री ने क्या कहा, अब यहां पढें,
" यह कांग्रेस की कौन सी विधवा थी जिसके खाते में रुपया जाता था? "
उनका इशारा सोनिया गांधी की तरफ था।
यह इस देश के प्रधानमंत्री की भाषा है । इसे क्या किसी सभ्य व्यक्ति की भाषा कहा जा सकता है ? माना चुनावी जनसभा में वाचिक विचलन आम है पर इतना कोई रपट जाय, कि रपटते रपटते गटर में ही चला जाता, और वह भी प्रधानमंत्री पद पर बैठा हुआ व्यक्ति, यह तो शर्मनाक है। घोर निंदनीय है । लेकिन राजनीतिक विमर्श की भाषा को सड़कछाप बनाने में देश के शीर्ष नेतृत्व के इस तरह के योगदान की टीवी पर चर्चा नहीं होगी।
वैधव्य का मज़ाक़ उड़ाने वाले नरेंद्र मोदी देश या हो सकता है दुनिया के पहले प्रधानमंत्री बने हों। इंदिरा भी विधवा महिला थीं। उनका विरोध भी एक ज़माने में कम नहीं हुआ। पर उनके वैधव्यता पर उनके परम विरोधियों जिनमे भाजपा के भी लोग रहे हैं, ने कभी न तो सवाल उठाया और न ही ऐसे शब्दों का सार्वजनिक रूप से प्रयोग किया। प्रधानमंत्री आखिर इससे कहना क्या चाहते हैं यह मैं आज तक नहीं सोच पा रहा हूँ। इन्होंने इस चुनाव में अपनी देहभाषा, शब्द चयन, चक्षुभाषा आदि आदि का स्तरहीन और निंदनीय प्रदर्शन किया है। जर्सी गाय, 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड, आदि बातें या तो अश्लील और अय्याश ट्रम्प बोल सकता है या ये बोल सकते हैं। ये शब्द, इनकी महिलाओं के प्रति मनोवृत्ति को दिखाते हैं। यह निंदनीय है। कमाल यह भी है कि यह शब्द उसी मनुष्य के मुखारविंद से निकल रहे हैं जो खुद तो ऐश्वर्य का जीवन जी रहा है पर अपनी पत्नी को स्वयँ ज़ीवित रहते हुये भी वैधव्य का जीवन व्यतीत करने पर बाध्य कर रहा है। यह मिथ्यावतार का विद्रूप रूप है। पर इस पोस्ट पर कमेंट पढियेगा कुछ परम चाटुकार इसमे भी बुद्धत्व ढूंढ ले लेंगे !
( विजय शंकर सिंह )
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