Thursday 4 November 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - तीन (2)



एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी विश्व-युद्ध की भी है। जिस वक्त ऑस्ट्रिया के युवराज फर्डिनांड की हत्या की गयी, लगभग उसी दौरान रासपूतिन पर भी जानलेवा हमला हुआ। रासपूतिन बुरी तरह घायल साइबेरिया के अस्पताल में पड़े थे। कॉन्सपिरेसी थ्योरी यह है कि यह दोनों ही हत्याएँ यहूदियों के षडयंत्र का हिस्सा थी। रासपूतिन और फर्डिनांड युद्ध के ख़िलाफ़ थे, और इन दोनों की हत्या से युद्ध छिड़ सकता था। युद्ध के माध्यम से यहूदी अपने दोनों शत्रुओं जर्मनी और रूस को खत्म करना चाहते थे। अगर सिर्फ़ निष्कर्ष देखा जाए, तो इस मंसूबे में वह सफल हुए। जर्मनी और रूस वाकई युद्ध के बाद चारों खाने चित थे। कैसर और ज़ार, दोनों को सदा के लिए गद्दी छोड़नी पड़ी, और दोनों देशों में यहूदियों का दबदबा कुछ समय के लिए बढ़ता गया। 

ऐसी थ्योरी ज़रूर किसी हिटलरवादी ने दी होगी। हम यह पढ़ चुके हैं कि युवराज फर्डिनांड की हत्या एक सर्बियन चरमपंथी ने की। रासपूतिन की हत्या तो खैर कई लोग करना चाहते थे। यहूदियों द्वारा इतना बड़ा षडयंत्र कि एक हत्या बोस्निया में हो, और दूसरा सुदूर साइबेरिया में, असंभव था।

यह बात ज़रूर है कि रासपूतिन किसी कीमत पर युद्ध नहीं चाहते थे। जैसे ही उन्हें साइबेरिया के अस्पताल में खबर मिली, उन्होंने तुरंत राजभवन टेलीग्राम भेजा, “मैं आ रहा हूँ। ज़ार से कहें वह युद्ध न लड़ें। अन्यथा रूस खत्म हो जाएगा।”

उन्हें वापस टेलीग्राम मिला, “ऑस्ट्रिया सर्बिया के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ रही है। हमें सर्बिया की रक्षा करनी ही होगी”

रासपूतिन पुन: लिखते हैं, “नहीं! युद्ध नहीं। ज़ार खुद खत्म हो जाएँगे।”

रासपूतिन की भविष्यवाणी ग़लत नहीं थी। रूस कम से कम शुरुआत में इस युद्ध से तटस्थ भी रह सकता था। वे जर्मनी या ऑस्ट्रिया से बात कर सकते थे। लेकिन, सबसे बड़ी समस्या तो यही थी कि यह बात रासपूतिन कह रहे थे। साइबेरिया का एक सनकी संत भला प्रशासन के निर्णय कैसे ले सकता है? 

ज़ार ने गुस्से में कहा, “रासपूतिन इन फ़ैसलों से दूर रहें। हमारे जनरलों को मालूम है कि क्या करना चाहिए। वे यह मानते हैं कि हमें युद्ध में जाना ही होगा।”

23 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को अल्टीमेटम दिया, जिसमें दस शर्तें रखी। सर्बिया ने नौ शर्तें मान ली। एक शर्त थी कि ऑस्ट्रिया की पुलिस सर्बिया में आकर हत्यारों की छान-बीन करेगी, जिसके लिए सर्बिया राजी नहीं हुई। 

जर्मनी की मदद से 28 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी। 29 जुलाई को जर्मनी ने रूस को चेतावनी दी कि वह बीच में नहीं पड़ेंगे।

ज़ार के पास उनके जनरल ने आकर कहा, “क्या ज़ार जर्मनी की चेतावनी मानेंगे? क्या हम झुक जाएँगे?”

ज़ार ने कहा, “नहीं। हम नहीं झुकेंगे।”

ज़ारीना, जो स्वयं जर्मन थी, और रासपूतिन की बातों को ब्रह्मसत्य मानती थी, उन्होंने हस्तक्षेप करना चाहा। लेकिन, अब बात आगे निकल चुकी थी।

ज़ार निकोलस ने कहा, “सर्बिया संदेश भिजवाइए। रूस युद्ध में उनका साथ देने आ रहा है।”

30 जुलाई को रूस की सेना आगे बढ़ने लगी। 1 अगस्त को जर्मनी के कैसर विलियम ने घोषणा की, “हम रूस के ख़िलाफ़ ज़ंग का ऐलान करते हैं।”

जर्मनी की सेना को बेल्जियम से गुजर कर जाना था, मगर फ्रांस ने ऐसा करने से बेल्जियम को रोक दिया। 3 अगस्त को जर्मनी ने बेल्जियम-फ्रांस के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी। इंग्लैंड जो अब तक शांत बैठा था, उसने बेल्जियम की रक्षा का बीड़ा उठाया और 4 अगस्त को जर्मनी के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी। 

एक हफ्ते के अंदर सभी बड़े खिलाड़ी मैदान में थे। एक तरफ़ रूस, फ्रांस और इंग्लैंड; दूसरी तरफ़ जर्मनी और ऑस्ट्रिया। 

युद्ध शुरू होते ही लेनिन गैलिसिया (ऑस्ट्रिया) से अपना बोरिया-बिस्तर बाँध कर ज़्यूरिख़ भागने की तैयारी में थे, और स्तालिन साइबेरिया में सजा काट रहे थे। उन्हें भी नहीं मालूम था कि यह युद्ध उनके लिए क्या सौग़ात ला रहा है। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - तीन (1)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/1.html
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