Saturday 13 November 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - तीन (11)



ज़ार सपरिवार रूस से भाग सकते थे। गृह-मंत्री का भी यही सुझाव था। अगर भाग जाते, तो कम से कम उनके परिवार के लिए अच्छा होता। क्रांतियों का यही इतिहास रहा है कि शासक भाग गए या मारे गए। रूस के ज़ार और ज़ारीना जैसे किसी और ही दुनिया में थे। 

पेत्रोग्राद में भीड़ बेकाबू हो चुकी थी। पुलिस वालों को दौड़ा कर मारा जा रहा था। गुप्तचर एजेंसी ओख्रानो के मुख्यालय को जलाया जा रहा था। जो सिपाही विद्रोह कर चुके थे, वे ज़ार-समर्थक अफ़सरों को ढूँढ-ढूँढ कर मार रहे थे। ड्यूमा के सभी सदस्यों ने अपना इस्तीफ़ा जमा किया, और जान बचा कर भाग गए। इन सबके बावजूद ज़ारीना महल में अपनी राजकुमारियों के साथ बैठी ज़ार का इंतज़ार कर रही थी। उनके भागने के इंतजाम थे, फिर भी वह किसी स्वप्न में जी रही थी। राजकुमारियों को खसरा (measles) बीमारी हो गयी थी, तो वे भागने की हालत में नहीं थी। 

13 मार्च को सुबह ज़ार निकोलस स्तावका सीमा से शाही ट्रेन पर बैठ कर अपने राजमहल के लिए निकले। पेत्रोग्राद से सौ मील दूर उनके ट्रेन को आंदोलनकारियों ने रोक दिया। उनकी ट्रेन रास्ता बदल कर अगले दिन स्कोव में रुकी। वहाँ उनसे मिलने ड्यूमा के सदस्य पहुँचे। 

ज़ार ने पूछा, “अब क्या रास्ता है?”

“हमने एक नयी सरकार का गठन किया है। आपके लिए एक ही रास्ता है। आपको अपनी गद्दी छोड़नी होगी”

“ठीक है, जैसा आप लोग ठीक समझें”

“आप अपनी गद्दी युवराज अलेक्सी या अपने भाई राजकुमार माइकल के नाम कर सकते हैं”

“नहीं। अलेक्सी नहीं। यह बात हमने अब तक किसी को बतायी नहीं थी। युवराज को एक भयंकर बीमारी है। वह अधिक वर्ष नहीं जीएँगे। मैं अपने और अपने परिवार को इस गद्दी से सदा के लिए मुक्त करता हूँ।”

ज़ार ने एक पत्र पर हस्ताक्षर किया, जिसमें भारी-भरकम शब्दों में लिखा था कि जनहित में वह अपने पद को त्याग रहे हैं। हालाँकि एक निजी डायरी में उन्होंने लिखा ‘हर तरफ़ है कायरता, छल, धोखा’। उसके बाद वह आखिरी बार सेना को अलविदा करने सीमा तक गए। 

उन्हें लगभग गिरफ्तार कर राजमहल लाया गया, जहाँ अब कोई सलाम ठोकने वाला नहीं था। उल्टे उनकी तलाशी ली गयी, और उन्हें सपरिवार नज़रबंद कर दिया गया। उन्हें अब नए नाम से बुलाया जा रहा था- ‘कर्नल निकोलस रोमानोव’, जो उनके सेना कमांडर पद के कारण था। खैर, उन्हें यह खुशी थी कि वह परिवार के साथ हैं, और उम्मीद थी कि उन्हें किसी दूसरे देश या सुदूर इलाके में प्रवासित कर दिया जाएगा। 

राजकुमार माइकल को ज़ार बनाया गया, मगर उन्होंने माहौल देखते हुए आधे दिन में ही पद छोड़ दिया। अब ज़ारशाही पूरी तरह खत्म हो चुकी थी और एक अस्थायी सरकार हड़बड़ी में बन गयी थी। एक नहीं, बल्कि दो सरकारें।

पहली सरकार जो संसद में बैठी थी, वह नाम-मात्र की थी। असल सरकार बनी थी ‘सोवियत’, जो तमाम मजदूरों और कर्मियों की सरकार थी। इस पर समाजवादियों का कब्जा था, और इनके आदेश ही सिपाही मान रहे थे। इनके नुमाइंदे और समाजवादी वकील केरेन्स्की ने आखिर दोनों सरकारों के मध्य पुल का निर्माण किया।

ज़ार राजकुमारियों के निजी शिक्षक अपने संस्मरण में लिखते हैं, 

“गद्दी छोड़ने के बाद ज़ार निकोलस बड़े ही निश्चिंत लग रहे थे। उनके मुख-मुद्रा से यह नहीं लगता कि उनकी देश छोड़ कर भागने में कोई रुचि है। वह पहली बार अपने महल की सीढ़ियों पर किताब लिए बैठे दिखे। मैंने करीब जाकर देखा तो उनके हाथ में लियो तोलोस्तॉय की किताब थी- युद्ध और शांति (War and Peace)”

कर्नल निकोलस रोमानोव को शायद यह आशंका नहीं थी कि उनके परिवार को इतिहास की सबसे निर्मम मौतों में से एक मिलेगी। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

रूस का इतिहास - तीन (10)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/10.html 
#vss

No comments:

Post a Comment