Friday 12 November 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - तीन (10)


क्रांति चाहे फ्रांस में हो या रूस में। चाहे अठारहवीं सदी में हो या बीसवीं सदी में। सब की जड़ में एक अदना ‘ब्रेड’ ही था। इतिहास स्वयं को दोहरा रहा था। उस समय फ्रांस की रानी मैरी अन्त्वानेत का बदनाम कथन था- ‘ब्रेड नहीं है तो केक क्यों नहीं खाते?’ (जो उन्होंने शायद कभी कहा नहीं); अब रूस की ज़ारीना कुछ ऐसा ही कह रही थी। 

यह रूस की फरवरी थी। यहाँ यह स्पष्ट कर देना ठीक रहेगा कि रूस का (यूलियन) कैलेंडर वर्तमान अंग्रेज़ी (ग्रेगरियन) कैलेंडर से दो हफ्ते पीछे था। यानी, ‘फरवरी क्रांति’ दरअसल अंग्रेज़ी दुनिया के मार्च में हुई। मैं आगे अंग्रेज़ी तारीख के हिसाब से ही चर्चा करूँगा।

ज़ार निकोलस ने फरवरी के महीने में एक चिट्ठी अपने रिश्ते में भाई ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम को लिखी, “हमारी रेलवे की हालत खस्ता है। युद्ध खत्म होते ही इसे सुधारना होगा। मैं प्रयास कर रहा हूँ कि जनता तक राशन पहुँचे, लेकिन ट्रेन ही इस बर्फ़ में नहीं पहुँच पा रही।”

4 मार्च को पेत्रोग्राद में अफ़वाह फैल गयी कि ब्रेड में कटौती होने वाली है। फ़ैक्ट्री से थक-हार कर जब महिलाएँ बेकरी की लाइन में लगी, तो वहाँ लूट मची थी। लोग शीशे तोड़ कर बेकरी लूट कर भाग रहे थे। पैसे देकर भी ब्रेड हाथ नहीं लग पा रहा था। अब वे खुद क्या खाती, बच्चों को क्या खिलाती? 

         (चित्र: ट्रेन से लौटते ज़ार निकोलस)

ज़ार उस समय वहीं राजधानी में थे, लेकिन उन्हें युद्ध की चिंता थी। उन्होंने कहा कि ज़ारीना और गृह-मंत्री यह मसला संभाल लेंगे। वह स्वयं ट्रेन में बैठ कर सीमा की ओर निकल गये। 

8 मार्च को कई दिनों बाद धूप खिली थी। महिलाएँ रोज की तरह काम पर आयी, लेकिन उस दिन उन्होंने एक समूह बना कर ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ की रैली निकालने का निर्णय लिया। शुरुआत छोटे समूहों से हुआ, मगर जैसे-जैसे वे ‘हमें ब्रेड चाहिए’ का नारा लगाती बढ़ने लगी, क़ाफ़िला बढ़ता गया। 

उस समय एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम कर रहे पुरुष का संस्मरण है, “महिलाएँ फ़ौजियों की तरह सीना ताने बुलंद आवाज़ में नारे लगा रही थी, और हम फ़ैक्ट्री में रोज की तरह काम कर रहे थे। उन्होंने खिड़की से आवाज दी- मर्दों! बाहर निकलो! सड़क पर आओ! वरना भूखे मरोगे।”

जब पुरुषों ने देखा कि हज़ारों की तादाद में महिलाओं ने कमान सँभाल ली है, तो उनका भी स्वाभिमान जागा और एक-एक कर अपना काम-धंधा छोड़ सड़क पर जमा होने लगे। शाम तक एक लाख लोग पेत्रोग्राद की सड़कों पर चिल्ला रहे थे- ‘हमें भूखा मत मारो! ज़ारशाही खत्म करो’

अगले दिन यह भीड़ ढाई लाख तक पहुँच गयी, जिसमें महिलाओं ने अगली पंक्ति संभाल ली थी। वहीं कुछ युवक मैक्सिम गोर्की का नाटक ‘नीचा नगर’ (लोवर डेप्थ्स) खेलने लगे। कुछ समाजवादी मिज़ाज के लोग पत्थर पर खड़े होकर भाषण देने लगे। यह एक राजनीतिक नहीं, स्वत:-स्फूर्त क्रांति थी। यह और बात है कि हर जन-क्रांति की तरह यहाँ भी राजनीति वाले बाद में मलाई काटने आए।

ज़ारीना जो स्वयं एक स्त्री थी, उन्होंने इस आंदोलन के विषय में ज़ार को चिट्ठी भेजी, “कुछ गुंडे-मवालियों का आंदोलन है। झूठ फैला रहे हैं कि ब्रेड खत्म हो जाएगा। अभी ठंड बढ़ेगी, सब तितर-बितर हो जाएँगे।”

ड्यूमा के अध्यक्ष रॉडजियांको ने ज़ार को यथास्थिति लिखा, “प्रशासन पूरी तरह पंगु हो चुका है। जनता का भरोसा टूट गया है। आप जल्द किसी काबिल व्यक्ति को नियुक्त करें जो जनता को मना सके”

ज़ार ने उत्तर दिया, “ज़ारीना ने बताया कि कुछ गुंडे हैं। इनका एक ही इलाज है। कोसैक गार्ड डंडे लगाएँगे, सब ठीक हो जाएँगे। मैं ड्यूमा को खत्म कर रहा हूँ और कमान अपने हाथ में ले रहा हूँ।”

रूसी गार्ड भीड़ के दमन के लिए निकले तो महिलाएँ उनके सामने मज़बूती से खड़ी हो गयी, और बंदूक की नोक अपने छाती पर लगाते हुए कहा, “चलाओ गोली! मार डालो हमें!”

यह एक ऐसा पल था, जिसने सिपाहियों की अंतरात्मा हिला कर रख दी। जैसे मैक्सिम गोर्की के उपन्यास ‘मदर’ की माँ निलोवना और उसका क्रांतिकारी बेटा पावलो आमने-सामने आ गए हों। भला एक सिपाही अपनी माँ पर गोली कैसे चलाए? 

एक कमांडर सिपाहियों पर चिल्लाए, “देख क्या रहे हो? चलाओ गोली”

उस सिपाही ने एक नज़र सामने खड़ी स्त्रियों को देखा और फिर बंदूक कमांडर की ओर घुमा कर उनके सीने में गोली उतार दी। यह गोली ज़ारशाही की ताबूत में आखिरी कील थी। 13 मार्च को ज़ार निकोलस स्थिति नियंत्रित करने के लिए वापसी की ट्रेन में बैठे। 

लेकिन जो ट्रेन जनता के लिए अनाज नहीं पहुँचा सकी, वह ज़ार को वापस गद्दी तक भी नहीं पहुँचा सकी। रोमानोव वंश के शासन का अंत उस ट्रेन में ही हो गया। तीन सौ साल की ज़ारशाही पाँच दिन के महिला जनित आंदोलन के सामने नहीं टिक सकी। 

ज़्यूरिख़ के अपने आवास में लेनिन कोट डाल कर पुस्तकालय जा रहे थे, जब एक ब्रोंस्की नामक युवक उनके पास भागे हुए आए, “कामरेड! आपने आज की खबर पढ़ी?”
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - तीन (10)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/11/9.html 
#vss 

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