Thursday 6 April 2023

मो यान / भूख के वर्ष

(चीन के नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक हैं। उनके द्वारा 2012-में पुरस्कार प्राप्ति के अवसर पर दिये गये वक्तव्य का एक अंश):

मेरी सबसे दर्दनाक स्मृति उस समय की है ,जब मैं और मां सहकारी खेत की बालियों से गेहूं निकाल रहे थे। तभी चौकीदार आ गया।इसे देखकर गेहूं चुराने वाले तितर-बितर हो गए थे लेकिन मां के पैर बंधे हुए थे, वह भाग नहीं सकती थी। लंबे -तड़ंगे चौकीदार ने उन्हें पकड़कर इतनी जोर का तमाचा जड़ा था कि वह जमीन पर गिर गई थीं और फिर उनका सारा गेहूं छीनकर वह सीटी बजाता हुआ आगे निकल गया था।कटे होंठ के साथ जमीन पर बैठी असहाय मां का यह दृश्य जैसे मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। बरसों बाद बूढ़ा हो चुका वह चौकीदार जब  बाजार में दिखा था तो मां ने मुझे उस पर हाथ उठाने से रोका था।' जाने दो' उन्होंने कहा था '।' उस दिन जिस ने इसने मुझे मारा था और यह, एक ही आदमी नहीं है। '

----- तब (बचपन.में) हमारे जेहन में सिर्फ एक ही सादा सहज ख्याल चक्कर लगाया करता था कि कहां से और किस तरह किसी खाने की चीज का जुगाड़ किया जाए। भूख से बेहाल कुत्तों के गिरोह की तरह पेट में डालने लायक किसी भी पदार्थ की टोह में हवा को सूँघते, सड़कों और गलियों पर आवारा भटकते। बहुत सी ऐसी चीज़ें, जिन्हें मुंह में डालने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, हमारे प्रिय व्यंजनों में से थीं । पेड़ों से पत्तियां तोड़कर खाना हमारा शगल था और जब पत्तियाँ नहीं बचती थीं तो  हम पेड़ की छाल और आखिरकार तने को दाँत मारना शुरू कर देते थे।दुनिया के किसी इलाके के पेड़ों ने हमारे गाँव के पेड़ों जितनी यातना नहीं झेली होगी। लेकिन इस विचित्र आहार से हमारे दाँत ढीले होने की जगह और मजबूत और छुरियों की तरह पैने होते चले गए ।कोई चीज उनके सामने टिक नहीं सकती थी।

मेरे बचपन के दोस्तों में से एक बड़ा होकर बिजली मिस्त्री बन गया। उसके औजारों के थैले में प्लास और कैंची नहीं होते थे। वो पेंसिल जितने मोटे तार को भी अपने दांँतों से ही काट डालता था। मेरे दाँत भी काफी मजबूत हैं लेकिन अपने दोस्त जितने नहीं वरना मैं भी शायद लेखक की जगह एक आला दर्जे का इलेक्ट्रीशियन बन चुका होता।

1961 की गर्मियों में हमारे प्राइमरी स्कूल के अहाते में चमकते हुए कोयलों का एक ढेर पहुंचाया गया था। हम चीजों से इतने नावाकिफ थे कि हमें पता ही नहीं चला कि यह क्या है! हममें से एक शरारती लड़के ने एक कोयला उठाया और उसका एक टुकड़ा तोड़ कर मुंह से डालना शुरु कर दिया। उसके चेहरे के चटखारे भरे भावों से लगता था कि कोई लज़ीज़ चीज़ उसके हाथ लग गई है। हम सब भी दौड़े और अपने -अपने टुकड़ों को झपट कर उन्हें चबाने लगे। हम जितना चबाते, उतना ही उसका स्वाद बेहतर लगता। यहां तक कि आखिरकार उस कोयले के स्वाद की कोई सीमा ही नहीं रही।गांव के कुछ लोगों ने जब देखा कि हम किसी चीज को काफी शिद्दत के साथ खा रहे हैं तो वे दौड़े चले आए।उन्होंने भी वही शुरू किया, जो हम सब कर रहे थे।

 इस अप्रत्याशित दावत पर रोक लगाने के लिए जब इस स्कूल के मुख्याध्यापक वहां पहुंचे तो उन्हें अच्छी खासी धक्का-मुक्की और भगदड़ का सामना करना पड़ा। पेट में पहुंचने के बाद उन कोयलों का क्या हश्र हुआ, यह मुझे अब याद नहीं है लेकिन उसका स्वाद मैं कभी भूल नहीं सकता। इस सारे किस्से से आप कहीं यह न समझ बैठें कि उन दिनों हमारी जिंदगी में कोई आनंद नहीं था बल्कि बहुत सी चीजों से हमें भरपूर मजा मिलता था। इस सूची में सबसे ऊंचा स्थान उन चीजों को चखने का था, जिन्हें इससे पहले हमने भोजन की परिभाषा में शामिल नहीं किया था।

- - - - जाहिर है कि भूखे पेट रहने मात्र से कोई लेखक नहीं बन सकता लेकिन भूख और साधनहीनता ने मुझे दूसरे लोगों के मुकाबले जीवन की एक गहरी समझ विकसित करने का मौका दिया। खाली पेट व्यक्ति के लिए सामाजिक सरोकार, कारोबार और प्रेम कोई मायने नहीं रखते। मुझे स्वयं भूख के कारण ही अपना आत्मसम्मान. खोना पड़ा।भूख की ही वजह से मैं गली के किसी कुत्ते की तरह अपमानित हुआ और आखिरकार  भूख ने ही  भयानक प्रतिशोध की भावना के साथ रचनात्मक लेखन का रास्ता दिखाया।

(अनुवाद जितेन्द्र भाटिया।'सोचो क्या साथ जाएगा'शीर्षक विश्व साहित्य संकलन के चौथे खंड से)।

गुआन मोये (जन्म 17 फरवरी 1955) एक चीनी उपन्यासकार और लघु कथा लेखक हैं। वे अपने साहित्यिक उपनाम मो यान से जाने जाते है और 2012 के साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित है। इस श्रेणी मे पुरस्कार प्राप्त करने वाले वे पहले चीनी नागरिक बने; हालांकि 2000 के विजेता गौ चिंजयान का जन्म चीन में हुआ पर वे फ्रांसीसी नागरिक है। 

(विजय शंकर सिंह) 

No comments:

Post a Comment