Thursday, 27 April 2023

कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ यौन शोषण के आरोप पर दिल्ली पुलिस एफआईआर दर्ज करने के पहले प्रारंभिक जांच करना चाहती है / विजय शंकर सिंह


यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने वाली देश की शीर्ष महिला पहलवानों द्वारा दायर याचिका के जवाब में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि, पुलिस अधिकारियों का इरादा है कि,  मामले में पहले प्रारंभिक जांच कर ली जाय, और उसके बाद, जांच के आधार पर, मुकदमा दर्ज करने का निर्णय लिया जाय।"

लेकिन यह भी कहा है कि, "दिल्ली पुलिस की ओर से पेश एसजी ने कहा कि अगर शीर्ष अदालत निर्देश देती है, तो वे प्राथमिकी दर्ज करने के लिए तैयार हैं। मैं योर लॉर्डशिप को परेशान कर रहा हूं, क्योंकि प्राथमिकी दर्ज करने से पहले कुछ प्रारंभिक जांच की आवश्यकता हो सकती है ... कुछ मुद्दे जिन्हें हम एफआईआर से पहले जांचना चाहते हैं ... लेकिन अगर योर लॉर्डशिप कहते हैं तो, हम उसके बिना भी एफआईआर दर्ज कर सकते हैं।"

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 7 महिला पहलवानों द्वारा दायर याचिकाओं पर नोटिस जारी किया है और जिसका उत्तर 28 मई तक सरकार को शीर्ष अदालत में  प्रस्तुत करना है। 

याचिकाकर्ताओं की तरफ से, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि, "प्राथमिकी दर्ज करने में अत्यधिक देरी हुई है, खासकर तब जब कुश्ती निकाय के अध्यक्ष के खिलाफ POCSO आरोप लगाए गए हैं।"
यह आरोप कथित तौर पर 2012 के हैं। याचिकाकर्ता दिल्ली के जंतर मंतर पर, सरकार की निष्क्रियता का विरोध कर रहे हैं।

एसजी ने कहा कि, प्रारंभिक जांच की बात वे इसलिए कह रहे हैं ताकि "ऐसा न लगे कि नोटिस जारी करने के बावजूद हमने तुरंत प्राथमिकी दर्ज नहीं की।"
इसके बाद कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का पक्ष भी एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करेगा।

कपिल सिब्बल ने यह भी दावा किया है कि, "समिति की एक रिपोर्ट है जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया है।"  
उन्होंने आगे अदालत में कहा, "यहां तक ​​कि इस प्रकृति के अपराध दर्ज नहीं करने के लिए पुलिस वालों पर भी मुकदमा चलाया जा सकता है... अब सीआरपीसी की धारा 166ए में भी संशोधन किया गया है, जो मामला दर्ज नहीं होने पर पुलिस पर भी मुकदमा चलाने की अनुमति देता है।"

सीआरपीसी की धारा 154 के अनुसार, किसी भी अपराध की सूचना पुलिस थाने पर, दिए जाने पर, उसे दर्ज किया जाएगा। यही प्रक्रिया एफआईआर first information report कहलाती है। लेकिन सीआरपीसी में इस तरह की प्राथमिकी दर्ज होने के पहले, किसी भी प्रकार की प्रारंभिक जांच किए जाने का प्राविधान नहीं है। प्रारंभिक जांच, विभागीय जांच के पहले की जाती है ताकि आरोपों के बारे में कुछ छानबीन की जा सके। इसीलिए इस मामले में भी, सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से यही कहा कि, यदि अदालत मुकदमा दर्ज करने का आदेश देती है तो पुलिस एफआईआर दर्ज कर लेगी। क्योंकि कानून के प्राविधान से तुषार मेहता सॉलिसिटर जनरल भी अवगत हैं। 

फिर इस मामले में, जिसमें इतनी अधिक देती हो चुकी है, एफआईआर दर्ज करने के पहले, एक प्रारंभिक जांच का विंदु क्यों उठाया जा रहा है? यह इसलिए उठाया जा रहा है कि इसी की आड़ में यह धरना प्रदर्शन समाप्त हो, और कुछ समय के लिए यह मामला ठंडा हो। याद कीजिए एक विभागीय कमेटी पहले भी इन्ही आरोपों पर गठित हो चुकी है, पर उक्त कमेटी ने जांच में क्या पाया, यह अब तक सार्वजनिक नहीं हो पाया है। यदि प्रारंभिक जांच की ही बात है तो उक्त कमेटी की जांच एक प्रकार से प्रारंभिक जांच ही है। 

अपराधों की सूचना पर, पुलिस कोई प्रारंभिक जांच नही करती है बल्कि वह सीआरपीसी के प्राविधान के अनुसार, एफआईआर दर्ज करती है, और सीआरपीसी के प्राविधानों के ही अनुसार, उसकी विवेचना करती है और जो भी परिणाम आता है, उसे संबंधित अदालत में प्रस्तुत करती है। प्रारंभिक जांच का कोई कानूनी महत्व भी नहीं है। इसके अंतर्गत न तो कोई पूछताछ की जा सकती है, न ही जरूरत समझने पर कोई गिरफ्तारी और न ही सीआरपीसी के प्राविधानों के अनुसार, कोई अग्रिम कार्यवाही। अब देखना है, कल 28 अप्रैल को शीर्ष अदालत का क्या रुख रहता है। 

(विजय शंकर सिंह)

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