Thursday, 20 April 2023

सचिदानंद सिंह / अफ़ीम (2) चीन और अफ़ीम

अफ़ीम की चर्चा हो और चीन का नाम न आए यह असंभव है। प्रायः हर देश की तरह चीन के लोग भी अफ़ीम से परिचित थे। सत्राहवीं सदी में तम्बाकू के आने के बाद चीन में तम्बाकू के साथ अफ़ीम मिला कर धूम्रपान करना लोकप्रिय होने लगा। लेकिन बस उच्च और उच्च-मध्य वर्गों में।

आम चीनियों को अफ़ीम की 'लत' लगाने वाले अंग्रेज थे। अंग्रेज चीन से चाय खरीदते थे। बदले में वे चांदी देते थे। सन 1700 में चीन ने कुल 23 हजार पाउंड चाय का निर्यात किया था। सन 1800 में अकेले ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 2.3 करोड़ पाउंड चाय चीन से खरीदी थी और इसके बदले 36 लाख पाउंड चांदी चीन को दिए थे।

करीब पचास वर्षों से अंग्रेज चांदी को इस तरह बहते निकलते देख कर चिंतित थे। वे कोई ऐसी चीज खोज रहे थे जिसके बदले चीन से चाय ली जा सके। वैसी एक चीज अफ़ीम थी और 1757 में बंगाल पर कब्ज़ा जमा लेने पर अंग्रेजों ने बंगाल (बिहार तब सूबा बंगाल का अंग था) में बड़े रकबे पर अफ़ीम की खेती कराई।

उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों ने चाय के लिए चीन को अफीम देना शुरु किया। अफ़ीम की आवक बढ़ने से उसके दाम गिरे और तब अफ़ीम की आदत मध्य-वर्ग से चीन के श्रमिक वर्ग में भी आगयी। चीन की क़िंग शहंशाही को यह नागवार लगा। शहंशाह ने अंग्रेजों और पश्चिमी राष्ट्रों से होते व्यापार को नियमित करने की कोशिश की।

अफ़ीम का आयात अवैध था, यानी इस पर चीन को चुंगी (कस्टम) नहीं मिलती थी। व्यापार बस पत्तन नगर  कैंटन (ग्वांग्झू) में होता था। अफ़ीम का आयात इतना अधिक हो रहा था कि बस चाय और पोर्सलेन से उसकी कीमत अदा न की जा सकती थी। हर वर्ष चीन से चांदी बाहर जाने लगी, इतनी अधिक कि चीन की मुद्रा पर संकट आ गया।

लेकिन चीनी नौकरशाही अफ़ीम के आयात पर विभाजित थी। दक्षिण में रहते चीनी अधिकारियों की विदेशी और चीनी होंग व्यापारियों (ऐसे चीनी व्यापारी जिन्हें विदेशियों के साथ लेनदेन करने के लाइसेंस मिले थे) से इतनी अधिक कमाई थी कि वे शहंशाह की नहीं सुनते थे। 

अफ़ीम के आयात को रोकने के लिए शहंशाह ने एक ईमानदार व्यक्ति लिन ज़ेशु को अफ़ीम-व्यापार समाप्त करने के लिए कैंटन का प्रशासक बना कर भेजा।  1839 में लिन कैंटन आया और उसी वर्ष पहला अफ़ीम युद्ध शुरु हुआ। पाश्चात्य देशों के जहाज और उनकी तोपें बेहतर थी। 

चार वर्ष बाद संधि हुई लेकिन यह शांति टिक नहीं सकी। कुछ वर्षों बाद 1856 में फिर युद्ध हुआ। अब युद्ध का उद्देश्य अफ़ीम से अधिक व्यापक हो गया था लेकिन यह दूसरा अफ़ीम युद्ध कहलाता है।

 यूरोपियन ने जो चीन में किया उसे याद करने पर नहीं लगता कि अफ़ग़ान उन्हें हेरोइन भेज कर कुछ गलत कर रहे हैं। पर अफ़ग़ानिस्तान के पहले हम पटना देखेंगे जहाँ कम्पनी की अधिकतर अफ़ीम तैयार होती थी।

चित्र: अफ़ीम लेने की तैयारी में चीनी सम्भ्रान्त

सचिदानंद सिंह 
© Sachidanand Singh 

भाग (1) का लिंक, 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/04/1.html 

No comments:

Post a Comment