Monday, 24 April 2023

न्यायाधीशों को, अपने समक्ष सुने जा रहे लंबित मामलों पर टीवी इन्टरव्यू नहीं देना चाहिए ~ सुप्रीम कोर्ट / विजय शंकर सिंह

कलकत्ता हाईकोर्ट के जज, जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय द्वारा समाचार चैनल एबीपी आनंद को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता अभिषेक बनर्जी के बारे में दिए गए एक साक्षात्कार पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर आपत्ति जताई है। जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय, टीएमसी के नेता अभिषेक बनर्जी से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने, कलकत्ता उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से, इस संदर्भ में एक रिपोर्ट मांगी है कि, क्या न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने पिछले सितंबर में एक टीवी साक्षात्कार में भाग लिया था या नहीं?

इस विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई कर रहे, भारत के मुख्य न्यायाधीश, सीजेआई, डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा है कि, "न्यायाधीशों के पास जो लंबित मामले हैं, उनके बारे में, पर समाचार चैनलों को टेलीविजन साक्षात्कार देने का कोई, औचित्य नहीं है। और यदि वे ऐसा करते हैं, तो संबंधित न्यायाधीश, उन मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते है, जिनके बारे में उन्होंने मीडिया को कोई इंटरव्यू दिया है।"

सुप्रीम कोर्ट की पीठ का आदेश इस प्रकार है, 
"कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय से व्यक्तिगत रूप से, यह सत्यापित करने का निर्देश दिया जाता है कि क्या श्री सुमन डे द्वारा उनका साक्षात्कार लिया गया था और यदि ऐसा है तो, वे उस घटना को स्पष्ट करें। रजिस्ट्रार जनरल इस अदालत (सुप्रीम कोर्ट) के रजिस्ट्रार न्यायिक के समक्ष शुक्रवार से पहले एक हलफनामा दाखिल कर यह रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।"

"यदि न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने वास्तव में साक्षात्कार में भाग लिया है, तो वह स्कूल-फॉर-जॉब मामले की सुनवाई नहीं कर सकते हैं और एक अलग पीठ, इस मामले की सुनवाई करेगी।" 
(यह मामला टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी के खिलाफ है, जिनकी सुनवाई जस्टिस गंगोपाध्याय कर रहे हैं)

"अगर उन्होंने ऐसा किया है, तो वह अब इस मामले की सुनवाई में भाग नहीं ले सकते हैं। हम, उक्त जांच के संदर्भ में कुछ नहीं करने जा रहे हैं, लेकिन जब एक न्यायाधीश, जो टीवी बहस या इंटरव्यू पर याचिकाकर्ता के संदर्भ में, अपनी राय रखता है, तो वह, अदालत में, उस मुकदमे की सुनवाई नहीं कर सकता है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को, तब एक नई पीठ का गठन करना होगा। यह एक राजनीतिक शख्सियत से जुड़ा  मामला है और जिस तरह से न्यायाधीश ने इस मामले को सुना, हमने इस पर विचार किया और पाया कि, सुनवाई का यह तरीका नहीं हो सकता।"

शीर्ष अदालत केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांच के लिए उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ, टीएमसी के अभिषेक बनर्जी की अपील पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता अभिषेक बनर्जी ने न्यायाधीश, गंगोपाध्याय द्वारा दिए गए, साक्षात्कार की टेक्स्ट प्रतिलिपि भी शीर्ष अदालत के समक्ष रखी थी। शीर्ष अदालत ने पहले, 13 अप्रैल के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती में अनियमितताओं में बनर्जी की कथित भूमिका की केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच का आदेश दिया गया था।

29 मार्च को एक जनसभा के दौरान, अभिषेक बनर्जी ने आरोप लगाया था कि, ईडी और सीबीआई, हिरासत में लिए लोगों पर इस मामले में एक सहभागी के रूप में उनका नाम लेने के लिए दबाव डाल रही थी। इसके बाद, इसी मामले के एक अन्य आरोपी कुंतल घोष ने भी आरोप लगाया था कि, जांचकर्ताओं द्वारा उन पर, अभिषेक  बनर्जी का नाम लेने के लिए दबाव डाला जा रहा था। कुंतल घोष 2 फरवरी तक, अपनी गिरफ्तारी के बाद, ईडी की हिरासत में थे और 20 से 23 फरवरी तक सीबीआई की हिरासत में थे।

इसी प्रकरण पर शीर्ष अदालत में, एक अपील दायर की गई है, जिसमें दावा किया गया था कि उच्च न्यायालय ने, अभिषेक बनर्जी पर "निराधार आक्षेप" लगाया और प्रभावी रूप से सीबीआई और ईडी को उनके खिलाफ जांच शुरू करने का निर्देश दिया। जबकि, तथ्य यह है कि, वह न तो पक्षकार थे और न ही, हाइकोर्ट में, सुनवाई की जा रही याचिका से जुड़े हैं।

सुप्रीम कोर्ट में, दायर, अभिषेक बनर्जी ने अपनी याचिका में आगे इस बात पर प्रकाश डाला कि "आदेश पारित करने वाले न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने पिछले सितंबर में एक समाचार चैनल को दिए एक साक्षात्कार में टीएमसी नेता के लिए अपनी नापसंदगी जाहिर की थी।" 
यह भी दावा किया गया कि "न्यायाधीश ने सर्वोच्च न्यायालय के उन न्यायाधीशों के खिलाफ टिप्पणी की थी जो मामले में उनके आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रहे थे। ऐसा तब हुआ जब शीर्ष अदालत ने पहले आरोपियों के खिलाफ सीबीआई और ईडी जांच के उच्च न्यायालय के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी।"

उसी मामले में, सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने कथित तौर पर खुली अदालत में पूछा था,
"सुप्रीम कोर्ट के जज जो चाहें कर सकते हैं? क्या यह जमींदारी है?"

इस संदर्भ में एसएलपी में याचिकाकर्ता ने कहा है,
"तथ्य यह है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित न्यायिक आदेश न केवल जांच के दायरे में हैं, बल्कि उक्त वरिष्ठ एकल न्यायाधीश द्वारा इन सबकी गंभीर तरीके से आलोचना की गई है। अतः इस माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप की मांग की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि  संस्थान की महिमा को बनी रहे और जनता का न्याय पर विश्वास बना रहे।"

(विजय शंकर सिंह)

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