पीटी ऊषा ने धरने पर बैठी हुई महिला पहलवानों के बारे में कहा है कि, उन्हे इंडियन ओलंपिक एसोसियेशन से अपनी समस्याओं के लिए कहना चाहिए था न कि, धरना देने के लिए जंतर मंतर पर बैठना चाहिए। पीटी ऊषा खुद एक नामचीन खिलाड़ी रही हैं और फिलहाल भारतीय ओलंपिक संघ IOA की अध्यक्ष है। उन्होंने यह भी कहा है कि, इस तरह के धरने प्रदर्शन से देश की छवि धूमिल होती है। उनके इस बयान की आलोचना भी की जा रही है।
पर जिन समस्याओं को लेकर महिला पहलवान धरने पर बैठी हैं, वे समस्याएं, खेल या किसी प्रतियोगिता से जुड़ी नहीं हैं, बल्कि वे समस्याएं IOA से संबंधित, एक खेल संगठन, कुश्ती महासंघ के प्रमुख पर यौन शौषण के आरोपों से जुड़ी हैं। IOA को, ऐसे आपराधिक मामले का निदान करने का अधिकार और शक्ति नहीं है। यह आरोप आपराधिक कृत्य के हैं जो आईपीसी में, गंभीर और दंडनीय अपराध हैं। इनके बारे में कोई भी कार्यवाही करने का अधिकार और शक्ति पुलिस और न्यायालय को है।
जंतर मंतर पर, पहलवानों का यह दूसरा धरना है, और पहलवानों ने, इस संबंध में पुलिस में मुकदमा दर्ज करने की मांग को लेकर, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की है, जिसकी सुनवाई चल रही है। इसके पहले जो धरना हुआ था, वह सरकार के आश्वासन पर, कि, सरकार एक कमेटी का गठन कर, इन सब कदाचारों की जांच कराएगी, खत्म कर दिया गया था। जांच के लिए कमेटी गठित भी हुई। पर जांच का निष्कर्ष क्या निकला यह पता नहीं। हो सकता है कमेटी की जांच रिपोर्ट से, महिला पहलवान संतुष्ट न हो पाई हों, और वे दुबारा धरने पर बैठ गई हों।
यदि महिला पहलवानों के आरोपों को देखें तो इनके आरोप बिल्कुल साफ हैं और उनका निराकरण या जांच केवल पुलिस की तफ्तीश से ही संभव है, जिसके लिए पुलिस को, उनकी शिकायत पर, एक एफआईआर दर्ज करनी पड़ेगी और फिर इसकी विधिवत विवेचना भी होगी। जो भी सुबूत मिले, उसी के अनुसार कार्यवाही होगी। इस कानूनी प्रक्रिया में, IOA की कोई भूमिका नहीं है। यह राज्य और पुलिस से जुड़ा मामला है न कि, खेल मंत्रालय और इंडियन ओलंपिक एसोसियेशन से।
IOA की अध्यक्ष पीटी ऊषा को, महिला पहलवानों की इस व्यथा और आरोपों पर खुद ही संज्ञान लेकर धरना स्थल पर जाना चाहिए था और उनसे इस बारे में बात करना चाहिए था। इन महिला पहलवानों की उपलब्धियों पर पूरा देश गौरवान्वित होता है, प्रधानमंत्री और अन्य सरकार के मंत्री आदि, उनके साथ सेल्फी लेते हैं, और इसे गर्व का अवसर बताते नहीं थकते हैं। पर जब यही महिला पहलवान अपने शोषण के प्रति मुखर हैं तो उन्हे एक एफआईआर दर्ज कराने के लिए धरने पर बैठना पड़ रहा है!
पीटी ऊषा को, आईओए के अध्यक्ष होने के नाते, अपने अधिकार का प्रयोग कर, खेल मंत्रालय से, महिला पहलवानों की शिकायत पर, कानूनी कार्यवाही करने के लिए बात करना चाहिए था। यदि यह महिला पहलवान, अपनी शिकायतें लेकर IOA और पीटी ऊषा के पास गई भी होती तो पीटी ऊषा सिवाय एक आश्वासन, सहानुभूति और समझाने बुझाने के अलावा क्या कर सकती थीं? मामला खेल से जुड़ा तो नहीं है। मामला तो एक अपराध से है। वे बहुत करती, आईओए की तरफ से भी इन आरोपों की जांच के लिए इन पीड़ित महिला पहलवानों के पक्ष में खड़ी रहती। पर उन्होंने यह नहीं किया।
आज बड़े बड़े सेलेब्रिटी, जो अपने अपने खेलों के भगवान कहे जाते हैं, इस गंभीर मामले पर चुप हैं, और उन्हे लगता है कि, उनकी इस चुप्पी से, देश की छवि दुनिया में अच्छी बनेगी। एक बात यह भी, कही जा रही है कि, यह धरना गुटबाजी का परिणाम और हरियाणा राज्य के अन्य राज्यों पर दबदबे का है। ऐसी गुटबाजियां, खेल संघों में होती रहती है। पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, यदि वे उन्ही गुटबाजियों के कारण ही लगाए जा रहे हैं तो, क्या उन आरोपों की जांच नहीं की जानी चाहिए? गुटबाजी के कारण यदि यह धरना है तब तो IOA को तुरंत दखल देना चाहिए था। आईओए, भारत सरकार का खेल मंत्रालय दखल दे, और गुटबाजी को खत्म करने के उपाय ढूंढे। पर यौन शौषण, जैसे गंभीर आरोप जो, कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पर लगाए जा रहे है, जिनमे POSCO जैसे गंभीर आरोप भी है, तब इन अरोपो को, अनदेखा नही किया जाना चाहिए।
आज सुप्रीम कोर्ट में एफआईआर दर्ज करने की प्रार्थना वाली महिला पहलवानों की याचिका पर सुनवाई है, देखिए क्या निर्णय आता है। पर एक एफआईआर दर्ज कराने के लिए ओलंपिक में पदक विजेता महिला पहलवानों को सार्वजनिक रूप से जंतर मंतर पर धरने पर बैठना पड़े, यह दुखद तो है ही, साथ ही, पुलिस के खिलाफ सबसे आम शिकायत, जिससे हम पूरी नौकरी सुनते आए हैं, कि, थानों पर मुकदमा दर्ज नही होता है, की पुष्टि भी करता है। देश की छवि, अपनी जायज मांगों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन करने से नहीं खराब होती है, बल्कि देश की छवि खराब होती है, ऐसे गंभीर आरोपों पर सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता से। पीटी ऊषा के इस बयान से, उनकी और IOA की छवि पर जरूर असर पड़ा है।
(विजय शंकर सिंह)
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