Saturday 22 April 2023

सचिदानंद सिंह / अफ़ीम (3)

० पटना का अफ़ीम गोदाम

मालवा की तरह बिहार में भी अफ़ीम की खेती अंग्रेजों के आने से पहले से की जा रही थी। सतरहवीं सदी में डच ने पटना से कुछ पश्चिम अपना अफ़ीम गोदाम बनाया था जिसमें अभी पटना कलेक्टरेट का अभिलेखागार है। 

जब कम्पनी बहादुर ने अफ़ीम चीन भेजनी शुरु की तो पटना में एक बहुत बड़ा अफ़ीम 'गोदाम' बनवाया। गुलजारबाग में वह मकान अभी भी खड़ा है और बिहार पर्यटन उसे पटना का एक आकर्षण बताता है। (पर्यटक, बिना अपवाद, देख कर निराश होते हैं।) खुशकिस्मती से तीन तत्कालीन चित्रकारों की कलाकृतियों से उस गोदाम की कार्यवाही को अभी भी स्पष्ट समझा जा सकता है।

कम्पनी का एक ओपियम विभाग था जिसके अधिकारी हर ऐसी जगह नियुक्त थे जहाँ अफ़ीम की खेती होती थी। (विख्यात लेखक जॉर्ज ऑरवेल के पिता अफ़ीम विभाग में बेतिया में नियुक्त थे, जहाँ लेखक का जन्म हुआ था।) पश्चिमी बिहार के गाँवों में अफ़ीम की खेती होती थी। पौधों से अफ़ीम निकाल कर उन्हें मटकों में भरकर कम्पनी के एजेंट की देखरेख में पटना भेजा जाता था। 

वहाँ मटकों को देख सूंघ कर सही पाए जाने पर रासायनिक जाँच की जाती थी। स्वीकृत किये गए मटकों के अफ़ीम को बड़े हौज में रख कर देर तक मिलाया जाता था जिससे 'माल' एकरूप हो जाएं। फिर पीतल के कप से नाप कर इसके समान वजन के गोले बनाए जाते थे। गोलों पर ईस्ट इंडिया कम्पनी की मुहर लगती थी - ब्रांडिंग। यह अफ़ीम के उत्कृष्ट होने की गारंटी होती थी। इन ब्रांडेड गोलों को लकड़ी की पेटी में भर कर कलकत्ते भेजा जाता था। पेटियों पर स्पष्ट अक्षरों में पटना ओपियम लिखा रहता था।

० नीलामी

कम्पनी पूरे अफ़ीम का निर्यात खुद नहीं करती थी। यह अच्छा रिस्क मैनेजमेंट था। जहाजों के डूबने का खतरा हमेशा रहता था। काफी अफीम कलकत्ते में नीलाम कर दी जाती थी। मुख्यतः कलकत्ते के अंग्रेज व्यापारी खरीदते थे, मुंबई के पारसी भी। वे खरीदी अफीम को अपने जहाजों में कैंटन भेजते थे। एक बार रवींद्रनाथ के पितामह द्वारकानाथ ने भी एक अंग्रेज के साथ पार्टनरशिप में बहुत अफ़ीम खरीदी थी। तीन जहाजों पर उनकी अफ़ीम चीन के लिए निकली। एक समुद्री तूफान में खो गया और एक पर्ल नदी में तोपों की मार नहीं झेल सका। कहते हैं द्वारकानाथ का यह अकेला उपक्रम था जो नुकसानदेह साबित हुआ।

० देह पर पड़ी अफ़ीम

1838 में  तत्कालीन गवर्नर जनरल जॉर्ज एडेन (लॉर्ड ऑकलैंड) अपनी बहन एमिली के साथ पटना अफ़ीम गोदाम के निरीक्षण पर आया था। एमिली एडेन के संस्मरण प्रकाशित हुए। उन्होंने बताया है कि गोदाम के सभी कर्मियों को बाहर निकलने के पहले अनिवार्य रूप से नहाना पड़ता था जिससे उनकी देह पर पड़ी अफ़ीम बाहर न चली जाए। कम उम्र के लड़के गोदाम के अंदर मौका मिलते ही अफ़ीम पर लोट जाते थे। यदि बिना नहाए कोई ऐसा लड़का बाहर निकल पाया तो उसकी धुलाई का पानी चार आने में बिकता था। (सोने के दाम के आधार पर उस समय का चार आना आज के दो हजार एक सौ से अधिक होगा।)
(क्रमशः) 

सचिदानंद सिंह
© Sachidanand Singh

भाग (2) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2023/04/2.html 

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