Wednesday, 14 July 2021

अमिताभ एस - भूली दास्तान फिर याद गई - दिल्ली का सबसे पुराना पुलिस थाना और पुलिस हेडक्वार्टर

● दिल्ली का सबसे पुराना थाना है सदर का और पहला पुलिस हैडक्वार्टर था कश्मीरी गेट में। नेहरू के दादा थे दिल्ली के कोतवाल। 

​दिल्ली पुलिस के इतिहास के पन्ने पलटने से जाहिर होता है कि दिल्ली के पहले कोतवाल मल्लिकुल उमरा फखरूद्दीन थे। वह सन् 1237 में कोतवाल तैनात हुए। उन्हें नायब-ए-नीतव (प्रतिशासक) का कार्यभार भी सौंपा गया। ऐसा समझा जाता है कि तब कोतवाली किला राय पिशौरा (आज के महरौली) के बगल में थी। मुगल बादशाह शाहजहां अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली लाए, तो अप्रैल 1648 को भव्य समारोह में शाहजहांनाबाद को बड़े शहर के रूप में बनाया गया। इस मौके पर, शाहजहां ने नजनाफर खान को नए शहर का पहला कोतवाल नियुक्त किया।  
 
​सदियों बाद 1857 में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जंग-ए-आजादी को कुचलने के बाद कोतवाली व्यवस्था भंग कर दी। उस वक्त गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे और वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा थे। 

सन् 1912 के गजट के मुताबिक दिल्ली जिला पुलिस डी आई जी के आधीन आ गई। दिल्ली तहसील में अलीपुर, नांगलोई और नजफगढ़ थाने बनाए गए। बाकी दिल्ली में, 7 अतिरिक्त बाहरी चैकियां और 4 रोड पोस्ट स्थापित थीं। बाहरी चैकियों में, मकबरा, फतेहपुर बेरी, पाली दाउज, मंजौली और बदरपुर थे। इसी दौरान, सराय सीताराम, सफदर जंग, निजामुद्दीन और सिकरी रोड पोस्ट थीं। दिल्ली शहर में कोतवाली, हौजकाजी और जामा मस्जिद बड़े थाने थे। आज के तीस हजारी अदालत के सामने तब एक लम्बी-चैड़ी पुलिस बैरक थी, जो सशस्त्र पुलिस और रंगरूटों के लिए सुरक्षित थी।  
 
● पहला पुलिस हैडक्वार्टर कश्मीरी गेट में

   ( पहला दिल्ली पुलिस हैडक्वार्टर 1948 से )

​दिल्ली पुलिस म्यूजियम में रखे दस्तावेजों के मुताबिक आजादी के बाद दिल्ली पुलिस का हैडक्वार्टर जनवरी 1976 में आई टी ओ की मौजूदा बहुमंजिला इमारत में आने से पहले कश्मीरी गेट के तीन भवनों में बारी-बारी चलता रहा। सबसे पहली दफा हैडक्वार्टर कश्मीरी गेट स्थित पुरानी अदालत परिसर की पहली मंजिल पर बना। आज नीचे के सभी कमरों में ताले लटके हैं और लगता है कि लम्बे अर्से से बंद ही हैं। ऊपरी मंजिल पर डिप्टी कमिश्नर और एस डी एम बैठते हैं, मकानों की रजिस्ट्रियां होती हैं। 16 फरवरी 1948 से दिल्ली पुलिस के पहले इंस्पेक्टर जनरल डी डब्लू मेहरा ने इसी इमारत में पदभार सम्भाला था।  
 
​फिर 1952 आते-आते पुलिस हैडक्वार्टर कश्मीरी गेट में ही दारा शिकोह लाइबे्ररी से सटी एक मंजिला कतार नुमा कमरों की इमारत में शिफ्ट हो गया। आज इसमें इन्द्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी का दिल्ली प्रौद्योगिकी संस्थान चलता है। जब 1960 में अदालत तीस हजारी के नवनिर्मित परिसर में गया, तो पुलिस हैडक्वार्टर को कश्मीरी गेट की ही सी पी ओ बिल्डिंग में चालू किया गया। आज इनमें ’सिन्धी अकादमी’ का दफ्तर है।  
 
● सदर थाना 1861 से

( सबसे पुराने थानों में है 1861 का सदर बाजार थाना )

​सन् 1861 में अंग्रेजी हुकूमत ने हिन्दूस्तान में भारतीय पुलिस अधिनियम लागू किया। और इसी साल थाना सदर बाजार का निर्माण हुआ। कह सकते हैं कि दिल्ली का सबसे पुराना थाना सदर बाजार ही है और इमारत भी 1861 की बनी है। इसी शानदार इमारत में थाना चलता है। खास बात है कि 12-15 सीढ़ियां चढ़ कर, ऊंचाई पर बना है, ताकि पहली नजर में ही पुलिस को सुप्रीमो का दर्जा हासिल हो जाए।  
​तीन मंजिला भवन का विशाल मुख्य कक्ष है। ऊंचे गोल खम्बों से बने मेहराबदार दरवाजे से भीतर प्रवेश करते हैं। अंदर एक आयाताकार प्रांगण है। 

     ( सदर थाना की पहली एफ आई आर )

ग्राउंड फ्लोर में पुलिस स्टेशन है और ऊपरी मंजिलें बैरक के तौर पर इस्तेमाल होती हैं। भीतर प्रवेश करते ही और एस एच ओ के कमरे की दीवार पर थाने की पहली एफ आई आर कांच के फ्रेम में सजी है। चूंकि 31 दिसम्बर 1861 की पहली एफ आई आर उर्दू में लिखी है, इसलिए पढ़ने वालों की साहूलियत के लिए नीचे अंग्रेजी अनुवाद हुआ है। एफ आई आर के मुताबिक दालू माली थाने में आया। उसने राम दास और लक्ष्मण दास दो खानाबदोशों पर 7 रूपये मूल्य का तेल चुराने का इल्जाम लगाया।  
 
● सब्ज बुर्ज में था थाना

( सब्ज बुर्ज: सड़क के बीचोंबीच कभी थाना था )

​साल 1861 के आसपास बने और थानों की पुख्ता जानकारी नहीं मिलती- दिल्ली पुलिस म्यूजियम में भी नहीं। एक थाना 1920 के दशक तक मथुरा रोड के गोल चक्कर पर, हुमायूं के मकबरे और बस्ती हजरत निजामुद्दीन के बीच था। आज भी सब्ज बुर्ज कहलाता है। सब्ज बुर्ज का मतलब है हरी मीनार। इसका निर्माण मुगल काल में 1530 से 1540 के बीच हुआ बताते हैं। लेकिन इसका इस्तेमाल थाने के तौर पर कब शुरू हुआ, नहीं पता। असल में, यह किसी अनजान शख्स का मकबरा है। ऊपरी हिस्से पर आधा गुम्बद है और नीचे मीनार की माफिक उठा हुआ है। इसकी कुछेक शुरूआती टाइलें आज भी लगी हैं और हरा रंग झलकाता है।
 
​सब्ज बुर्ज का आर्किटेक्चर तैमूर काल जैसा है, जो समरकंद और हैरात इलाकों के वास्तुशिल्प की छाप छोड़ता है। हालांकि 1980 के दशक में ज्यादातर टाइलें बदली गईं हैं। इसलिए बाहरी रंगरूप आज भी देखने लायक है। खास बात है कि अंग्रेजी शासन के दौरान, लम्बे अर्से तक इसमें थाना चलता रहा। और 1920 के बाद थाना सड़क पार निजामुद्दीन पुलिस स्टेशन की इमारत में शिफ्ट किया गया।  
 
● और थाने पुराने-पुराने

​’इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज’ (दिल्ली चेप्टर) की किताब ’दिल्ली द बिल्ट हेरिटेज’ में दिल्ली के छह पुराने थानों का जिक्र है। सबसे पुराना थाना चांदनी चौक का है। बाकी एक थाना सदर बाजार पुरानी दिल्ली में है और दरियागंज, मन्दिर मार्ग, पार्लियामेंट स्ट्रीट व तुगलक रोड समेत 4 थाने नई दिल्ली में। सबसे पुराना थाना 19वीं सदी के मध्य में बना है, जब टाउन हाॅल का निर्माण हुआ। टाउन हाॅल के बगल की सड़क पार कर, दो मंजिला इमारत के ऊपर ब्लाॅक्स के डिजाइन की मोल्डिंग हुई है। आज यह थाना नहीं, बल्कि ए सी पी का दफ्तर है।
 
      ( दरिया गंज पुलिस स्टेशन 1930 से )

​उधर दरियागंज के थाने की इमारत 1930 के दशक में बनी है। बाहरी बनावट से ही अंग्रेजी शैली साफ झलकती है। थाना दो मंजिला है- और यू-शेप आकार में बना है। तीन तरफ गोल खम्बों के सहारे खड़े गलियारे हैं। ऊपरी मंजिल के कमरों में गोल रोशनदान हैं और सिपाहियों के बैरकों के रूप में इस्तेमाल होते हैं। मन्दिर मार्ग पुलिस स्टेशन की पुरानी इमारत भी 1930 की ही है। एक मंजिला है और इमारत में कुछ बदलाव किए हैं। कमरे की छतें खासी ऊंची हैं। पिछवाड़ा भी है और इर्द-गिर्द रिहायशी ब्लाॅक हैं। ऊपरी बाॅर्डर पर सजावटी मोल्डिंग हुई है।
 
​तुगलक रोड थाने की इमारत मन्दिर मार्ग के थाने से मिलती-जुलती है। है 1930 के दौर की ही। पार्लियामेंट स्ट्रीट का पुलिस स्टेशन भी लुटियन दिल्ली के निर्माण के सालों (1930 के आसपास) में बना है। खम्बों के सहारे खड़े बरामदे से गुजर कर, थाने में दाखिल होते हैं। दो और बरामदे भी हैं। साथ ही, शुरूआती दिनों में, इसमें पुलिस के घोड़ों के लिए अस्तबल और सिपाहियों के ठहरने के लिए रिहायशी सुविधा भी थी।

© लेख और फोटो - अमिताभ एस
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