Friday, 2 July 2021

असग़र वजाहत का यात्रा वृतांत - यज़्द यात्रा (1)

ईरान के शहर यज़्द पहुंचा तो यह लगा किस शहर के लोगों को कबूतर बाजी का बड़ा शौक है। हर घर के ऊपर कुछ इस तरह की चीज बनी हुई थी जैसे कबूतरों को रखने के लिए कबूतर खाना बनाया जाता है। लेकिन मज़े की बात यह थी यह आसमान पर कोई कबूतर नहीं दिखाई दे रहा था। कोई कबूतर पूरे दिन नहीं दिखाई दिया। अगले दिन भी नहीं दिखाई दिया तब मैंने लोगों से पूछा यह है क्या? हर मकान की छत पर कबूतर की काबुक?

बताया गया यह  कबूतरख़ाना नहीं , बादगिरहा (Wind Catcher) हैं। बाद का मतलब है हवा और गिरह का मतलब है बांधना। मतलब हवा को बांधने की व्यवस्था है। रेगिस्तानी  इलाके में होने की वजह से यहां बहुत गर्मी हो जाती है । मकानों को ठंडा करने के लिए  ऊपर बने बादगिरहा से दीवारों के अंदर होती हवा नीचे आती है। मकान में नीचे मिट्टी के पाइपों का एक जाल बिछा होता है जिसमें पानी आता जाता रहता है। हवा और पानी मिल कर इमारत को ठंडा कर  देते हैं।

यह है देसी एयर कंडीशनिंग  है जो शताब्दियों से पूर्वी और अफ्रीका के  देशों में प्रचलित थी लेकिन अब  लगभग खत्म हो गई है। यह  टेक्नोलॉजी भारत की भी कुछ इमारतों  में  देखी जा सकती है। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में सरधना नाम की एक जगह है यहां एक टावर बना हुआ है जिसमें ऐसी व्यवस्था बताई जाती है। मैंने देखी नहीं।
मुख्य बात यह है कि अगर पूर्व के देशों ने पश्चिम की नकल न की होती और देशी एयर कंडीशनिंग टेक्नोलॉजी का  विकास किया होता तो कितना अच्छा होता।

पश्चिम के देशों ने पूर्वी, अफ्रीकी और लातिनी अमरीकी देशों को न सिर्फ अपने 'कॉलोनी' बनाया था बल्कि मानसिक रूप से गुलाम भी बना दिया था और यह ग़ुलामी  आज तक जारी है। और आज भी पश्चिमी देश इस गुलामी से 'लाभान्वित' हो रहे हैं।

© असग़र वजाहत
#vss

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