Monday, 26 July 2021

प्रवीण झा - स्कूली इतिहास (15)

दो व्यापारी मेसोपोटामिया के किसी प्राचीन शहर में बैठ बातें कर रहे होंगे

“सुना है असीरिया में इस वर्ष बारिश नहीं हुई?”

“हाँ! क्यों न हम अपना गेंहू लेकर वहाँ चलें? अच्छे दाम मिलेंगे।”

“जा तो सकते हैं, मगर पिछली बार बैलगाड़ी के पहिए बीच रस्ते में टूट गए थे। याद नहीं?”

“इस बार मेरे पास दूसरा आइडिया है। हम एक नाव से चलते हैं”

भले ही रुपया-पैसा न आया हो, मगर आदमी व्यापारी बनने लगा था। रास्ते नहीं बने थे, मगर सफर करने लगा था। चूँकि पहियों में रबर नहीं लगे होते थे, बढ़िया हाइ-वे और ब्रिज नहीं थे, इसलिए बेहतर था कि नाव से यात्रा हो। यह एक और वजह थी कि नदी के पास ही बसा जाए। टिगरिस और यूफ्रेटस नदियाँ मध्य एशिया के बीचों-बीच गुजरती थी। इससे मेसोपोटामिया में कहीं भी जाया जा सकता था। जब पश्चिमी छोर पर पहुँच गए, वहाँ से मिस्र भी पास ही था। 

पूरब में क्या था? उन पहाड़ों के पीछे कैसे-कैसे लोग थे? यह मेसोपोटामिया के लोग भी सोचते थे। मगर वहाँ जाएँ कैसे? इतने बीहड़ को न बैलगाड़ी पार कर सकते हैं, न नाव।

एक दिन फ़ारस की खाड़ी में एक नाव आकर रुकी। वहाँ के लोगों को लगा कि समंदर में मछली मार कर आ रहे होंगे। मगर वे किसी दूर देश से आ रहे थे। उनको खुद नहीं पता था कि वे कहाँ आ गए हैं। वे पहाड़ के दूसरी तरफ के लोग थे। सिंधु नदी में नाव चलाते हुए समुद्र में आए, और वहाँ से फ़ारस की खाड़ी होते हुए टिगरिस (दजला) नदी में आ गए। हिमालय को बायपास कर गए!

भविष्य में ये पूरब के लोग भारतीय कहलाए। जब मिस्र और सुमेर में शहर बन रहे थे, राजा बन रहे थे, सेनाएँ बन रही थी, खेती-बाड़ी हो रही थी; उस समय भारत में भी यही हो रहा था। वहाँ लड़ाई के चांस कुछ कम थे, इसलिए  उनका फोकस अपनी नगर व्यवस्था पर अधिक था।

ऐसा अनुमान है कि आज से छह-सात हज़ार साल पहले के भारत में लोग नदियों के किनारे बसे हुए थे। बलूच के मैहरगढ़ में एक सुनियोजित नगर था, जहाँ अपार्टमेंट बना कर और कॉलनी बना कर लोग रहते थे। जैसे आज-कल दिल्ली-बंबई में रहते हैं। 

बेलन घाटी (आज का उत्तर प्रदेश) में गाँव-देहात था, यानी उस समय का ‘काउ बेल्ट’। विंध्य और सतपुड़ा के जंगलों में पुराने जंगली लोग रहते थे, जो बाद में आदिवासी कहलाए। सरस्वती नदी और कई झीलों के किनारे कुछ अधिक समृद्ध खेतिहर रहते थे, जो कटहल और अन्य फल उगाते थे। अब तो खैर राजस्थान का वह अधिकांश इलाका रेगिस्तान है। भीमबेटका (मध्य प्रदेश) की गुफाओं में कुछ बेहतर प्रबुद्ध शिकारी रहा करते थे। दक्षिण में कई मछुआरे और नाविक बसते थे, क्योंकि उनके पास समुद्र था। 

भारत ही नहीं, ऊपर चीन के ह्वांगहो (येलो रिवर) और याग्त्सौक्यांग (यांग्से) नदी के किनारे भी घनी बस्तियाँ थी। कुल मिला कर पूरब अपने डिज़ाइन में फल-फूल रहा था, और किसी से आगे या पीछे नहीं था। जब भारत की नाव मेसोपोटामिया में लगी तो कई द्वार और खुल गए। 
( क्रमशः)

#historyforchildren #groundzero #basics

Daojali Hading is an archaeologist site in India, where people lived some 3000 years back. Along which river, is this site?

A. Saraswati
B. Brahmaputra
C. Indus
D. Kaveri

(Yesterday’s question was only for discussion. No definite answers.)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

स्कूली इतिहास (14)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/07/14.html
#vss

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