पूरी दुनिया में दो तरह के लोग रहते हैं। एक, जो हज़ारों वर्षों से चल रही परंपरा से जीना चाहते हैं, जिन्हें परंपरावादी (कंज़रवेटिव) कहते हैं। दूसरे, जो परंपराओं को तोड़ कर नयी गढ़ना चाहते हैं, जिन्हें प्रगतिवादी (प्रोग्रेसिव) कहते हैं। दोनों मिल कर कुछ अच्छा कर जाते हैं।
बारह हज़ार वर्ष पूर्व कुछ आदमी फरात नदी के किनारे से गुजर रहे थे। वहाँ उन्होंने देखा कि लंबे घास हैं, जिनमें कुछ बालियाँ निकली है। वे पहले फल तोड़ कर खाते रहे थे, पत्ते-सब्जी भी खाते थे, मगर यूँ घास नहीं चबाते थे। अधिकतर लोग मांस पका कर या मछली मार कर खाते थे। जब आग की खोज हुई तो पका कर भी खाने लगे।
लेकिन, अगर आज के भोजन का मेन्यू देखा जाए, तो उसमें से अधिकतर चीजें गायब होंगी। न चावल, न ब्रेड, न दाल, न मक्खन। फिर भी उनका पोषण संतुलित था। चलते रहने की वजह से उन्हें कभी एक फल मिल जाता, तो कभी एक जंगली हरी सब्जी। कभी कंद उखाड़ लिया और कभी ताज़ा मांस खाया। हर दिन कुछ नया खाना। यह नहीं कि रोज चावल-दाल ही खा रहे हैं। इसमें सरप्राइज़ रहता कि वह आखिर क्या खायेंगे, और सबसे अच्छी बात कि भोजन वह मेहनत से हासिल करते। जब भूख लगती, तभी खाते।
जब उन्होंने नदी किनारे वह घास चबा कर देखी, तो उन्हें कुछ दाने मिले। उन्होंने उसे पकाना शुरू कर दिया। आज के समय वे गेंहू या जौ कहलाते हैं, मगर उस समय वे घास ही थे जो नदी किनारे के मैदानों में मिल जाते। वे मनुष्य के आने से पहले भी मौजूद थे, और डायनासोर भी खाते थे। (क्या आपको पता है कि भयावह दिखने वाले अधिकांश डायनासोर शाकाहारी थे?)
वह इलाका जो दजला (टिगरिस) और फरात (यूफ्रेटस) नदी के बीच था, उस तरह की जमीन भारत में ‘दोआब’ कहलाती है। आब का मतलब है जल, तो दोआब मतलब जिसके दोनों तरफ पानी हो। ग्रीक ने इस तरह के इलाके को नाम दिया मेसोपोटामिया। पोटामिया का अर्थ होता है दरिया। जैसे हिप्पो का अर्थ घोड़ा है, तो हिप्पोपोटामस का अर्थ दरियाई घोड़ा; उसी तरह मेसो का अर्थ मध्य, मेसोपोटामिया का अर्थ दरियाओं के मध्य।
इसी तरह की उपजाऊ जमीन भारत के राजस्थान-सिंध में थी, जहाँ सिंधु से लेकर सरस्वती नदी तक बहती थी और हज़ारों झील थे। आज आपको ताज्जुब होगा मगर यह रेतीला राजस्थान ही कभी भारत के फलों, सब्जियों और अनाज का प्राकृतिक केंद्र था।
कुछ प्रगतिवादी किस्म के आदमी ने कहा, “देखो! यहाँ नदियाँ हैं, झील हैं, तरह-तरह के जानवर पानी पीने आते हैं। हम यही अगर बस जाएँ, तो क्या बुरा है?”
उसे एक परंपरावादी ने कहा, “अगर नदी में बाढ़ आ गयी तो? अगर सूखा पड़ गया तो? अगर जानवरों ने यहाँ आना छोड़ दिया तो? हम रुकेंगे, मगर बसेंगे नहीं।”
“ठीक है। मगर साल के दो-चार महीने यहाँ जमने में क्या बुरा है? अब यहाँ गुफा तो है नहीं। हमें कुछ ऐसी जगह बनानी होगी कि बारिश हो तो छुप सकें।”
“हाँ। यह कर सकते है। यहाँ हम साल के कुछ महीने आकर इन स्वादिष्ट घासों को पका कर खायेंगे, और इन लंबी घासों के बीच छुप कर शिकार करेंगे। ठंड में हम यहाँ से कहीं ओर निकल लेंगे।”
( क्रमशः)
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Earliest signs of agriculture in stone age India is found in Belan valley, roughly around 7-10000 BC. Where exactly are sites of Belan valley located?
A. Prayagraj (Uttar Prasesh)
B. Bhopal (Madhya Pradesh)
C. Bikaner (Rajasthan)
D. Kokrajhar (Orissa)
(Yesterday’s answer: B. To eat in ‘metal’ plates was not possible in early stone age.)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
स्कूली इतिहास (7)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/07/7.html
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