Wednesday, 14 July 2021

एक पाकिस्तानी नागरिक का भारत भ्रमण

2008 में सपरिवार इंडिया जाना हुआ। 
दिसंबर का महीना था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। और हम थे कराचीवासी, जहां पर ठंड बड़ी मिन्नतों के बाद किसी महबूबा की भांति दुर्लभता से ही दर्शन कराती है, वो भी केवल दो चार दिन ही ! सर्दी से सिकुड़ कर बच्चें लगभग आधे ही हो गये थे। ये तो आप लोग भी जानते ही होंगे कि दिल्ली की निर्दयी ठंड, केवल दुई या रुई से ही जाती है।

मुझे एक टैक्सी वाले से मोलभाव करते हुए देखकर, एक सरकारी बस का कंडक्टर मेरे पास आकर बोला,
" आप हिंदुस्तानी मालूम नही होतें हैं।"
" जी, मै पाकिस्तानी हूँ।" मैने कहा।
" रात के इस पहर, किसी प्राईवेट गाड़ी से सफर करना उचित नही है। सरकारी बस में किराया भी कम लगेगा और हिफाज़त भी ज़्यादा रहेगी।" ड्राइवर ने कहा। 

रात के लगभग दो ढाई का समय रहा होगा। मैने कंडक्टर की बात सुनकर, सरकारी बस से ही सफर करने को बेहतर समझा। कन्डक्टर ने सामान रखवाया और सबसे अच्छी सीट यह कहकर दी कि आप हमारे अतिथि है। अपने मोबाईल से हमारे रिश्तेदारों से बात भी करवाई और यूँ सभी यात्रियों से परिचय भी हो गया और हम वीआईपी भी हो गये।

सफर शुरू हुआ। मोदी नगर से पहले एक प्राइवेट बस ने, जिसमें तीर्थयात्री थे, ओवरटेक करते हुए, हमारी बस को टक्कर मार दी। दोनों ड्राइवरो में हाथापाई हो गयी। हमारी सरकारी बस के ड्राइवर ने पुलिस में  कम्पलेन कर दी। अगले नाके पर, पुलिस ने दुसरी प्राईवेट बस को रोक लिया। दोनों बस की सवारियाँ अपने अपने ड्राइवर की तरफदारी करने लगे। पुलिस असमंजस की स्थिति में थी। तभी एक सवारी ने कहा की अच्छा आप पाकिस्तानी सवारी से पूछ लो, वो किसी का पक्ष नही लेगें।
इससे पहले कि हम अपना ब्यान देते, दुसरी बस से एक बूढ़ी महिला मेरे पास आयी और कहने लगी- 
" बेटा रात का समय है और वैसे भी झगड़ा निबटाना पुन्य का काम होता है।" 
मैने कहा,
" गलती किस की थी, मै सच में नही जानता, परन्तु नुक्सान किसी का भी नही हुआ है। अब हम केवल झुठे स्वाभिमान की खातिर लड़ रहे है। बेहतर है, इस हादसे को भूलकर आगे बढ़ चलें।" 
दोनों ड्राइवरों को राज़ी किया और फिर सफर शुरू हुआ।

चीतल रेस्टोरेंट, खतौली पर खूब पेट भरकर शाकाहारी व्यंजनों का स्वाद लिया। 
" भाई साहब ! यहाँ का बड़ा स्वादिष्ठ भोजन होता है। खूब मन से खाना, पैसो की चिंता मत करना।"  
जो भी पास से गुज़रता, यही कहता हुआ जाता। ओय छोटू ! देखो भाई साहब को सभी सब्ज़ी देना। मांस मछली भी मिलती है, कहो तो भिजवा दूँ। 
मगर, मैने मना कर दिया। अब यहाँ आकर भी शाकाहारी भोजन का आनंद नही लिया तो फिर कब ? साथ ही बिल की भी चिंता सताने लगी थी, खा जो इतना चुके थे।

मै भुगतान काऊंटर पर पहुंचा। वहां पर फिर दोनों ड्राइवरों में बहस छिड़ी हुई था। मगर अब माजरा दूसरा था। दोनों ड्राइवर, मेरे खाने का भुगतान करने पर झगड़ रहे थे। 
" वो मेरी बस में है तो मै ही खाना खिलाऊँगा ना !" 
दूसरे ने कहा- 
" यार देखो उनके कारण ही मेरी जान बची, वरना पुलिस मुझे कहाँ छोड़ने वाली थी। आखिर ग़लती तो मेरी ही थी, ओवरटेक करने में। अब पछतावा हो रहा है।" 
इसी बीच, वो बूढ़ी महिला आयी और कहने लगी- 
" तुम लोग अब बस भी चलाओगे या यूँ ही लड़तें रहोगे। भुगतान मै कर आयी हू, बड़ा सज्जन आदमी लगता है।" 

और इधर बच्चे भावनाओं के समुद्र की अथाह गहराइयों में डूबे जा रहें थे। क्या ये अज़ीज़ दुश्मन भी, हमारी ही तरह इंसानियत के पुजारी नही है ?
बच्चों का अतिथि सत्कार और सहिष्णुता से जो परिचय आज हुआ था, उससे तो कभी राजनैतिक पटल पर उनका साक्षात्कार नही हुआ था।
बच्चे अचम्भित थे, यात्रियों के व्यवहार पर। आहिस्ता से कान में पूछते थे-
" पापा ! क्या वाकई ये हमारा पडोसी मुल्क इंडिया ही है ! इन्हें तो हमारी सरकार बडे़ दुश्मन कहती है। कहीँ हम किसी दूसरे मुल्क में तो नही आ गये है ?
अब पता चला कि आप सही कहते थे, दुश्मनी केवल सरकारी स्तर पर है, अवाम के बीच नही है। ये केवल सियासी लोगोँ के हथकंडे़ है।" 

लकीरें हैं तो रहने दो, 
किसी ने रूठ कर गुस्से में शायद खींच दी थीं। 
इन्हीं को अब बनाओ पाला और 
आओ कबड्डी खेलते हैं।
( गुलज़ार )

© सुल्तान अहमद
2008 میں اہل و عیال کے ہمراہ انڑیا جانا ہوا ۔
  دسمبر کا مہینہ تھا۔ کڑاکے کی ٹھنڑ پڑ رہی  تھی۔ اور ہم تھے کراچی والے ! جہاں سردی محبوب کی مانند بڑی مننتوں کے بعد دیدار  کراتی ہیں ، وہ بھی صرف دو چار دن ہی۔بچیوں کا برا  حال   تھا ۔ اس حقیقت  سے تو آپ بھی واقف ہونگے کہ دہلی کی زالم سردی صرف۔۔۔۔۔۔۔۔۔
دوئ سے جاتی ہے یا پھر روئ سے۔

مجھے ایک ٹیکسی والے سے مولبھاو کرتے دیکھ کر ایک سرکاری بس کا کنڑکٹر میرے پاس آیا۔
آپ انڑین معلوم نہیں ہوتیں  ہے۔
جی میں پاکستانی  ہوں ۔ میںنے کہا ۔
رات کے اس پہر کسی پرایویٹ گاڑی سے سفر کرنا مناسب نہیں۔ سرکاری بس میں کرایا بھی کم لگے گا  اور  حفاظت بھی ذیادہ رہےگی ۔   ہمنےاسکی بات  مان لی۔ اسنے سامان رکھا اور سبسے اچھی سیٹ بھی دی، یہ کہکر۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ آپ ہمارے محمان ہیں۔ 
یوں ہمارا  تعارف بھی ہو گیا اور ہم وی وی آئ پی بھی ہو گے۔
سفر  شروع ہوا تو مودی نگر سے پہلے ایک پرائیویٹ بس نے ، جس میں ضایرین تھے، ہماری بس کو ٹکر مار دی۔ دونوں  ڈرائیوروں میں جھگڑا ہو گیا۔ ہماری  بس کے ڈرائیور کی رپٹ پر، پولیس نے پرائیویٹ ڈرائیور  کو اگلے ناکے پر روک لیا۔ دونوں بس کی سواریاں اپنے اپنے ڈرائیور کی طرفداری پر اتر آئیں۔ تبھی کسی سواری نے کہ دیا کے آپ پپاکستانی سے پوچھ لیں۔ وہ کسی کی طرفداری نہیں کرینگے ۔ ایک ضعیف  خاتون میرے پاس آئ اور بولی ۔۔۔۔بیٹا جی، جھگڑا نبٹانا صواب کا کام ہوتا ہے ۔
ہم نے کہا ۔۔۔۔۔
مجھے سچ میں نہیں پتہ کے غلطی کس کی ہیں ۔ مگر، چونکہ نقصان کسی کا بھی نہیں ہوا ہے ، اب ہم صرف اپنی جھوٹی عنہ کی خاطر لڑ رہے ہیں ۔ بہتر ہو کے بات کو یہیں ختم کریں اور آگے بڑھ چلیں۔ دونوں  ڈرائیوروں کو راضی کیا۔ 
چیتل ریسٹورنٹ ، کھتولی  پرخوب  جی بھر کر کھانا کھایا ۔
بھائ  صاحب ! یہاں کا کھانا بڑا اچچھا ہوتا ہے ۔ جی بھر کر کھانا ۔ پےمنٹ کی پرواہ نہیں کرنا۔
جو بھی پاس سے گزتا، یہی کہتے ہوئے گزرتا۔ ھمیں پےمنٹ کی فکر ھونے لگی تھی، کھا جو اتنا چوکے تھے۔
میں کیش کاونٹر پر پہونچا۔ وہاں الگ ہی ایک نظارہ تھا۔ دونوں  ڈرائیوروں میں میرے بل کو لیکر بحث چھڑی ہوئی تھی۔
تبھی پیچھے سے وہی ضعیف خاتون آئ اور  کہنے لگی۔۔۔۔
اب تم گاڑی بھی چلاوگے یا یوں ہی بحث کرتے رہوگے۔ پیمنٹ میں کر آئ ہوں ۔بڑا شریف آدمی لگتا ہے ۔
بچے جزبات کے سمندر میں غوطے لگا رہے تھے ! کیا یہ عزیز دشمن بھی ہماری طرح انسانیت کے پرستار نہیں ہیں ؟ 
بچوں کا  مہمان نوازی اور شرافت سے جو تعارف ہوا تھا، اس سے تو وہ بلکل ہی انجان تھے۔ کان میں آہستہ سے پوچھتے تھے ۔۔۔
پایا جی ! کہیں ہم غلطی سے کسی اور ملک میں تو نہیں آ گئے ؟ میڈیا تو انڈین کو سب سے بڑا دشمن بتاتی ہے ۔ اب پتہ چلا آپ صحیح  کہتے تھے -------
 عوام کے درمیان کوئی نفرت نہیں ہے ۔ یہ تو صرف سیاسی لوگوں کی چالاکیاں اور  اوچھے ہتھکنڈے ہیں ۔

لکیریں ہیں تو رہنے دو، کسی نے روٹھ کر غصّہ میں کھینچ دی ہونگی ،
انہیں کو اب بناوں پالا ، اور  کبڈ
 کھیلتے ہی
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#vss

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