Sunday, 18 July 2021

मनमीत - व्यक्तित्व - विजय रावत

मेरा जूता है जपानी, ये पतलून इंग्लिशतानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी

सिर पर लगी रोमियो कैप, सफेद इरानी दाड़ी और चेहरे में गुलाबी चमक, जो किसी तीस साल के युवा को भी जलने पर मजबूर कर दे। एक ऐसा शख्स जो महज अर्नेस्टो चे ग्वेरा की ‘मोटरसाइकिल डायरीज’ पढ़कर 41 देशों की यात्रायें कर बैठता है, 22 देशों में अध्यापन करता है और कई भाषाओं का ज्ञान हासिल कर भारत लौटता है तो दिल जेएनयू विश्व विद्यालय की एक प्रोफेसर को दे बैठता है। दोनों शादी करते हैं और एक दूसरे के संघर्षों में ताउम्र के लिये हमसफर हो जाते हैं। एक ऐसा शख्स जो बुजुर्ग हो जाने के बाद एक गरीब पार्टी के गन्दे बिंदाल नाले के किनारे  बस्ती में बने टीन शेड ऑफिस में जून की तपती गर्मी में युवा और महिलाओं को दुनिया में पूंजी से हुये नुकसान को गमख्वार के साथ बताता है। जिसने फ्रांस में कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली हो और सेवा भारत में की हो। ये हैं कॉमरेड विजय रावत । 

मसूरी नगर पालिका में एक मामूली क्लर्क के घर पैदा हुये विजय रावत को उनके माता पिता ने तमात आर्थिक कष्ट झेलते हुये मसूरी सेंट जोर्ज स्कूल में पढ़ाया। वहां से इलाहाबाद विश्व विद्यालय से उन्होंने फिजिक्स से एमएससी की और उसके बाद डीएवी कॉलेज देहरादून में बतौर फिजिक्स के प्रवक्ता बन गये। ये 1962 की मार्च थी। विजय रावत जी राजपुर रोड पर एक पब्लिकेशन हाउस में क्यूबा क्रांति के नेता अर्नेस्टो चे ग्वेरा की ‘मोटर साइकिल डायरी’ पढ़ रहे थे। उनके बगल में ही मध्य प्रदेश काडर के एक वरिष्ठ आईपीएस बैठे हुये थे। दोनों में बात होने लगी तो विजय रावत जी ने उन्हें चे की मोटरसाइकिल डायरी के बारे में बताया और उन्हें पढ़ने की सलाह दी। इस पर आईजी उखड़ गये और बोले की वो ये फालतू की किताबें नहीं पढ़ते और उन्हें भी अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिये। जैसे वो कड़ी मेहनत के बाद आईपीएस बने हैं, वैसे ही उन्हें भी बनना चाहिये। इस पर विजय रावत ने उन्हें टोका कि वो फिजिक्स के प्रवक्ता हैं और प्रवक्ता बनना भी कोई आसान नहीं। इस पर आईजी हंसे और बस इतना ही बोले कि ‘उतना ही पांव पसारना चाहिये, जितनी चादर हो’। 

विजय रावत ने महज छह माह की तैयारी के बाद ही आईपीएस परीक्षा पास की और आईजी को मध्य प्रदेश उनके आवास पर एक पत्र भेजा। जिसमें बस इतना ही लिखा था, आदारणीय सर, ‘मेरी चादर बहुत बड़ी है और पांव पसारने के लिये नहीं, बल्कि दुनिया को नापने के लिये हैं’। उसके बाद उन्होंने अपनी डीएवी की नौकरी भी छोड़ दी। उन्होंने नाइजीरिया विश्व विद्यालय से पहले ही पत्राचार कर फिजिक्श पढ़ाने की पेशकश मामूली तनख्वाह में की हुई थी। जिसे स्वीकार कर लिया गया। वो 1964 में अफ्रिकन देश नाइजिरिया पहुंचे और वहां दो साल फिजिक्श पढ़ाई। उसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अगले बीस सालों में उन्होंने यूरोप, अफ्रिका और मध्य एशिया के 41 देशों का सफर किया। कहीं फिजिक्श पढ़ा कर तीन समय के खाने के लिये पैसा जुटाया, तो कहीं होटल में वेटर का काम किया। 1979 में जांबिया होते हुये वो फ्रांस पहुंचे और वहां कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली। 1981 में वो भारत लौटे और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लिये तमाम महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली। वो 2004 में चीन गये दस सदस्य दल में भी शामिल रहे। पार्टी ने उन्हें पौड़ी लोकसभा चुनाव में उतारा, हालांकि जनता को ऐसे लोगों की जरूरत नही होती। लिहाज़ा, वो हार गए। 

विजय रावत जी की एक कहानी और भी है। भारत आने के बाद उन्होंने जेएनयू में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष प्रो अनीता द्धिघे से प्रेम हुआ और दोनों ने विवाह कर लिया। उनका एक बेटा था। जो बड़ा होकर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर पहुंचा। एक रात ऑफिस से घर आते हुये नोएडा स्थित डीएनडी फ्लाइ ओवर में कार का भीषण एक्सीडेंट हुआ और उसमें सवार ऑफिस के उनके बेटे समेत दो अन्य युवक और युवती की मौके पर ही मौत हो गई। अगले दिन अखबरों में खबर छपी की ‘शराब के नशे मेंं धुत युवक और युवती की मौत’। विजय रावत जानते थे कि उनका बेटा शराब नहीं पीता और न ही वो युवती। जो की बाद में साबित भी हो गया। कुछ ही दिनों में विसरा रिपोर्ट में साबित हो गया कि किसी ने भी शराब नहीं पी थी। उसके बाद  उन्होंने अखबारों के दफ्तरों में संपर्क किया तो वहां से दो टूक जवाब मिला कि पुलिस थाने से जानकारी मिली थी। विजय रावत जी ने जब उनसे पूछा कि क्या वो मिली जानकारी को एक बार भी सत्यापित नहीं करते। फिर से टका सा जवाब मिला कि इतना समय नहीं रहता। 

उसके बाद विजय रावत ने एक लंबी लड़ाई लड़ी। वो जिला कोर्ट गये, वहां से होईकोर्ट। साथ में प्रेस काउंसिंल ऑफ इंडिया भी गये। कुछ ही साल में कोर्ट ने अभूतपूर्व निर्णय दिया कि सभी अखबार अपने पहले फुल पेज में माफी मांगेंगे। उस समय विजय विजय रावत ने मीडिया को बयान दिया था कि वो अपने बेटे के लिये नहीं, बल्कि उस लड़की के लिये न्याय मांग रहे थे, जिसका चरित्र हनन उसकी मौत के बाद किया गया।  बाद में एनडी टीवी ने उन पर एक घंटे का पूरा शो भी दिखाया था। 

मैं जब देहरादून पढ़ने आया तो वो मुझे कावंली रोड में पार्टी के टीन शेड में उर्दू अखबार पढ़ते मिले। मैंने अपना परिचय दिया और बताया कि मुझे कुछ किताबे चाहिये। उसके बाद मैं उनसे अक्सर मिलता रहा। उन्हें इतना नॉलेज है कि आप उनसें कुछ भी पूछ सकते हैं। वो चलते फिरते गूगल हैं।  बहरहाल, उसके बाद मैंने उन्हें कामरेड से ताऊजी बना लिया। और भी बहुत किस्से हैं।  और हां आखिरी। आपने श्याम सिंह राणा की एक प्रसिद्ध कहवात सुनी होगी। ‘कहां नीती कहां माणा, एक श्याम सिंह ने कहां कहां तो जाणा’। ये श्याम सिंह विजय रावत जी के सगे नाना जी थे और विजय रावत की दादी राज्य की पहली महिला थी, जिन्होंने पौड़ी में अंग्रेजों के खिलाफ जिला मुख्यालय में तिरंगा फहराया था। बाद में उन्हें जेल हुई।

© मनमीत 
#vss 

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