जब हरियाणा सरकार की व्यापक ' हरियाणा हिंसा के न रोके जाने को ले कर देशव्यापी किरकिरी हो रही है तो सोशल मीडिया पर यह बात फैलाई जा रही है कि इस मामला का पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय उनको लिखे एक गोपनीय पत्र के सम्बंध में तत्कालीन सरकार और पीएमओ द्वारा संज्ञान लिया गया और इस प्रकार यह बाबा आज सज़ायाफ्ता हुआ । कहा जा रहा है कि उक्त बाबा को जेल भेजे जाने में भाजपा सरकार की सराहनीय भूमिका रही है । इस पूरे घटनाक्रम का तिथिवार विवरण इस प्रकार है ।
अप्रैल, 2002 में पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक गुमनाम पत्र मिलता है , जिसमे डेरा सच्चा सौदा सिरसा ,के अंदर महिलाओं के यौन शोषण से जुड़ी घटना का जिक्र किया गया था । उसकी एक प्रति तत्कालीन प्रधानमंत्री जी को भी भेजी गयी थी ।
मई, 2002 में हाई कोर्ट ने उक्त प्रार्थना पत्र को संविधान के अनुच्छेद 226 के आधीन प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत सिरसा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को जांच के लिये भेजा ।
उन्हें यह आदेश दिया गया कि वे इसमें लगाए गए आरोपों की जांच करें ।
दिसंबर, 2002 में सेशन जज की जांच में तथ्यों की प्रथम दृष्टया पुष्टि होने के कारण हाई कोर्ट ने सीबीआई को मुक़दमा दर्ज कर विवेचना करने का आदेश दिया । मुक़दमा डेरा प्रमुख के खिलाफ यौन शोषण और बलात्कर का कायम हुआ । सेशन जज की प्रारंभिक जांच में इन आरोपों के प्रथम दृष्टया साक्ष्य मिले थे ।
जुलाई, 2007 में सीबीआई ( CBI ) ने आरोपों के सम्बंध में साक्ष्य एकत्र कर आरोप पत्र अंबाला न्यायालय में दायर कर दिया । आरोप पत्र में दो साध्वियों का, डेरा प्रमुख द्वारा 1999 से 2001 तक यौन शोषण और बलात्कर करने के सुबूत दिए गए थे ।
सितम्बर , 2008 में न्यायालय ने अभियुक्त गुरुमीत रामरहीम के खिलाफ धारा 376 और 506 आईपीसी के तहत आरोप तय किये ।
अप्रैल, 2011 तक सीबीआई अदालत अम्बाला में थी जो उसके बाद पंचकूला में स्थानांतरित हो गयी । इसी के साथ ही डेरा प्रमुख के खिलाफ मुक़दमा भी अम्बाला से पंचकूला आ गया ।
जुलाई , 2017 में हाई कोर्ट ने पंचकूला की विशेष अदालत को इस मुक़दमे की दिन प्रतिदिन के आधार पर सुनवायी करने का आदेश दिया ताकि मुक़दमे का निस्तारण शीघ्र हो सके ।
अगस्त, 17 को अभिगोजन और बचाव पक्ष के बयानात और बहस की समाप्ति के बाद 25 अगस्त की तारीख मुक़दमे के फैसले के लिये तय की गयी ।
अगस्त , 25 को अदालत ने डेरा प्रमुख अभियुक्त गुरुमीत रामरहीम को दोषी घोषित किया और सज़ा की तारीख 28 अगस्त तय की ।
सोशल मीडिया पर यह जो बार बार कहा जा रहा है कि अटल जी की सरकार के समय इस मामले की शिकायत दर्ज हुयी औऱ अब खट्टर सरकार के समय इस का फैसला आया और 10 साल तक ज भी सरकार थी वह सोती रही , आधारहीन है । इस मामले की तार्किक परिणति तक पहुंचाने का श्रेय न्यायपालिका का है । जिसने हर अवसर पर न्याय के लिये अपनी प्रतिबद्धता और संकल्प दिखाया । वस्तुतः जब फैसला आया तो इतने फ़ौज फाटे और सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी 35 लोग मारे गए 200 से अधिक घायल हो गए और करोड़ों की सम्पत्ति स्वाहा हो गया । सरकार को जहां सतर्क और सक्षम दिखना था वहां वह बुरी तरह असफल हुयी । इस मामले के असल सूत्रधार पत्रकार क्षत्रपति, वे दोनों साध्वियां और सीबीआई के विवेचक डीएसपी डागर रहे हैं ।
( विजय शंकर सिंह )
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