Thursday, 3 August 2017

Ghalib - Ahal e beenees ne, na hairat'qadaa e shokhee e naaz, / अहल ए बीनीस ने, ब हैरत'कदा ए शोखी ए नाज़, - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह





ग़ालिब -25.
अहल ए बीनीस ने, ब हैरत'कदा ए शोखी ए नाज़, 
जौहर ए आईना को, तूती ए बिस्मिल बाँधा !! 

बीनीस - आत्म ज्ञानी, विवेक शील. 
हैरत कदा - आश्चर्य से.
शोखी ए नाज़ - चंचलता और चुलबुलापन 
जौहर ए आइना - दर्पण का मूल तत्व. 
तूती ए बिस्मिल - घायल पक्षी. 

Ahal e beenees ne, na hairat'qadaa e shokhee e naaz, 
Jauhar e aaiinaa ko, tootee e bismil baandhaa !!
- Ghalib. 

चुलबुले पन और चंचलता से विस्मित, और आश्चर्य चकित हो कर, विवेक शील आत्म ज्ञानी लोगों ने दर्पण के मूल तत्व उसकी चमक को ही पक्षी के घायल होने का कारण मान लिया है. 

यह एक कठिन शेर है. क्या कहना चाहते हैं, ग़ालिब, या तो वे समझे या ईश्वर. फिर भी थोड़ा बहुत दहा कर आप के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. दर्पण का मूल तत्व है, परावर्तन. चमक. जिसके कारण उसमें हम अपनी क्षवि देखते है. एक छोटा सा पक्षी जो दर्पण में अपनी परावर्तित क्षवि देख कर अपने चुलबुले पन और चंचलता से, अपने चोंच से उस पर प्रहार कर रहा है. ऐसे प्रहार से उसकी चोंच घायल हो जाती है. घायल होने का प्रत्यक्ष कारण तो दर्पण की चमक है, पर उसका चुलबुलापन और चंचलता और इस से उत्पन्न अज्ञानता है. आत्म ज्ञानी व्यक्ति ही दर्पण के इस भ्रम से मुक्त तो रह सकते हैं पर वह कभी कभी भ्रमित भी हो जाते हैं. 

इसकी एक व्याख्या यह भी की गयी है. संसार में जो सौन्दर्य चारों तरफ बिखरा पडा है, उस से विमुग्ध और आश्चर्य चकित हो कर ज्ञानी व्यक्तियों ने इस तथ्य का अन्वेषण किया, घायल पक्षी, जो आत्मा का प्रतीक है, दर्पण की चमक जो ईश्वर का प्रतीक है पर अपनी क्षवि मात्र न देख कर, उस पर अपनी चंचलता, जो अज्ञानता का प्रतीक है, चोंच मार मार कर खुद को घायल कर लेता है. ईश्वर की कृपा दर्पण की तरह है. जो भी देखेगा वैसे ही और वैसा ही परावर्तित होगा. लेकिन भ्रम, अज्ञानता और मन के चंचलता से हम न तो उसमे खुद को देख पाते हैं, बल्कि, खुद को घायल कर बैठते हैं. 

ग़ालिब अक्सर सांसारिक बातें अपने शेरों में कहते हैं. पर ज़रा भी गंभीरता से अगर उनका विश्लेषण किया जाय तो, वह दर्शन के गाम्भीर्य से समाविष्ट लगती हैं. उन्होंने खुद के लिए लिखा है... 

लिखता हूँ असद सोज़ि ए सुखन ए गर्म, 
ता रख न सके, न कोई, हर्फ़ पर मेरे अंगुश्त !!

मैंने सुलगते ह्रदय से ऐसे गीत लिखे है, जिनके एक शब्द पर भी कोई व्यक्ति आपत्ति नहीं कर सकता.

( विजय शंकर सिंह )

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