Tuesday, 15 August 2017

अली सरदार जाफरी की आज़ादी पर एक नज़्म / विजय शंकर सिंह

6आज आज़ादी जी सत्तरवीं सालगिरह है। आज देश आजाद हुआ था । एक विदेशी हुक़ूमत से , एक साम्राज्यवादी ताक़त से । इस पर बहुत सी कविताए लिखी गयीं हैंं । बहुत से शेर पढ़े गए हैं । नज़्में लिखी गयीं हैं। सरहद के पार भी और सरहद के आर भी कलमकार लिखते रहे और पढ़ते रहे । ऐसी ही एक खूबसुरत और मानीखेज़ नज़्म #अली_सरदार_जाफरी_ ने भी लिखी है । यह आज़ादी की सबसे बड़ी त्रासदी बंटवारे पर है । उस भयानक त्रासदी पर बहुत कुछ लिखा गया है। यह नज़्म पढ़ें । आप को ज़रूर पसंद आएगी ।

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गुलाम तुम भी थे यारों गुलाम हम भी थे
नहा के खून में आई थी फसल-ए-आज़ादी
मज़ा तो तब था कि मिलकर इलाज-ए-जां करते
खुद अपने हाथ से तामीर-ए-गुलिस्तां करते
हमारे दर्द में तुम और तुम्हारे दर्द में हम शरीक होते
कुछ जश्न-ए-आशियाँ करते .
तुम आओ गुलशन-ए-लाहौर से चमन बरदोश
हम आयें सुबह-ए-बनारस की रौशनी लेकर
और उसके बाद ये पूछें
कौन दुश्मन है
-अली सरदार जाफ़री

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#अली_सरदार_जाफरी_
'मेरा सफर' और 'सरहद' समेत अनेक कृतियों से उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने वाले अली सरदार जाफरी का नाम उर्दू अदब के महानतम शायरों में शुमार किया जाता है। उन्होंने अपने लेखन का सफर शायरी से नहीं बल्कि कथा लेखन से किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी अली सरदार जाफरी का जन्म 1 अगस्त 1913 को उत्तरप्रदेश के बलरामपुर में हुआ।1933 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और इसी दौरान वे कम्युनिस्ट विचारधारा के संपर्क में आए। उन्हें 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूरी की।
लघु कथाओं का पहला संग्रह 'मंजिल' नाम से वर्ष 1938 में प्रकाशित हुआ। शुरुआत में वे हाजिन के नाम से लेखन किया करते थे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्होंने इस नाम को त्याग दिया।

जाफरी प्रगतिशील लेखक आंदोलन से जुड़े रहे। वे कई अन्य सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे। जाफरी ने जलजला, धरती के लाल (1946) और परदेसी (1957) जैसी फिल्मों में गीत लेखन भी किया। वर्ष 1948 से 1978 के बीच उनका नई दुनिया को सलाम (1948) खून की लकीर, अमन का सितारा, एशिया जाग उठा, पत्थर की दीवार, एक ख्वाब और पैरहन-ए-शरार और लहू पुकारता है जैसे संग्रह प्रकाशित हुए। इसके अलावा उन्होंने मेरा सफर जैसी प्रसिद्ध रचना का भी लेखन किया। उनका आखिरी संग्रह सरहद के नाम से प्रकाशित हुआ। वर्ष 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के दौरान उन्होंने इसका लेखन किया था।

इन को वर्ष 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे फिराक गोरखपुरी और कुर्तुल एन हैदर के साथ ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले उर्दू के तीसरे साहित्यकार हैं। उन्हें वर्ष 1967 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे उत्तरप्रदेश सरकार के उर्दू अकादमी पुरस्कार और मध्यप्रदेश सरकार के इकबाल सम्मान से भी सम्मानित हुए। उनकी कई रचनाओं का भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ। जाफरी का एक अगस्त 2000 को निधन हो गया।

( विजय शंकर सिंह )
15/08/2017.

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