ग़ालिब -26.
आई अगर बला तो, जिगर से टली नहीं,
ऐराही दे के हमने बचाया है किश्त को !!
ऐराही - शतरंज का मुहरा, चाल, युक्ति.
किश्त - शतरंज के खेल में शह. जब शतरंज पर राजा इस प्रकार घिर जाता है, कि वह अब अगली चाल में मार दिया जाएगा. तो उसके चुनौती के रूप में शह कहा जाता है. फिर अगर राजा को बचाने के लिए कोई चाल नहीं चली जाती है तो अगली चाल में मात अर्थात राजा मरा और खेल ख़त्म.
Aai agar balaa to, jigar se talee nahin,
Airaahee de ke ham'ne bachaayaa hai kisht ko !!
-Ghalib.
जो भी मुसीबत या कठिनाइयां आयीं वह आयी तो पर उनसे मुक्ति नहीं मिली. वह कलेजे में समाई रही. मैंने उस से कोई न कोई युक्ति कर के, चाल चल के दूर ज़रूर किया, पर उन्हें भुला नहीं पाया. ग़ालिब के निजी जीवन में कठिनाइयों का बहुत ही विवरण मिलता है. थे तो वो बहुत कुलीन और नवाबी खानदान के, लेकिन उनका फक्कड़ स्वभाव, खर्चीली आदत, स्वाभिमान ने उन्हें हनेषा संकट में ही रहा. वह एक ह्त्या के मामले में झूठे फंसाए गए. उनकी पेंशन रुक गयी. उनकी जो भी दरख्वास्तें अँगरेज़ हाकिमों के यहाँ भेजी गयीं वह सब खारिज हुयी. हालांकि कुछ पेंशन उन्हें स्वीकृत की गयी. लेकिन मुसीबत टली नहीं. वैसे भी विपत्तियाँ आती है तो टल तो जाती हैं, पर उनकी टीस, उनकी याद कहीं न कहीं, कलेजे में बसी रहती है.
जीवन का प्रारम्भ ही रुदन से होता है. रुदन भी एक अनिश्चित जगत में अप्रत्याशित रूप से आगमन का ही परिणाम तो है. फिर तो जीवन के हर मोड़ पर कुछ न कुछ अनिश्चित या अप्रत्याशित घटता ही रहता है. कुछ इनका सामना कर जीवन पार करते हैं, तो कुछ टूट जाते हैं. ऐसी ही मुसीबतें एकांत के छड़ों में कभी मुस्कान तो कभी आंसू दे जाती हैं. इन सब को ही हम कभी नियति, तो कभी, जाहे विधि राखे राम कह कर आगे बढ़ जाते हैं. पर विपत्ति विहीन जीवन और सूर्य के बिना दिन हो यह संभव नहीं है.
ऊपर जिन मुसीबतों का जिक्र ग़ालिब के जीवन के सन्दर्भ में किया गया है, उन सभी प्रकरणों बाद में चर्चा होगी. मुसीबतों की याद बने रहने का भी एक अच्छा पक्ष यह भी है कि हम उनसे अनुभव लेते हैं और सबक भी. विपत्तियाँ कितनी भी कठिन हो, रात कितनी भी काली हो, पार ज़रूर होती है. बस धैर्य और विश्वास का संबल साथ ज़रूर हो.
आई अगर बला तो, जिगर से टली नहीं,
ऐराही दे के हमने बचाया है किश्त को !!
ऐराही - शतरंज का मुहरा, चाल, युक्ति.
किश्त - शतरंज के खेल में शह. जब शतरंज पर राजा इस प्रकार घिर जाता है, कि वह अब अगली चाल में मार दिया जाएगा. तो उसके चुनौती के रूप में शह कहा जाता है. फिर अगर राजा को बचाने के लिए कोई चाल नहीं चली जाती है तो अगली चाल में मात अर्थात राजा मरा और खेल ख़त्म.
Aai agar balaa to, jigar se talee nahin,
Airaahee de ke ham'ne bachaayaa hai kisht ko !!
-Ghalib.
जो भी मुसीबत या कठिनाइयां आयीं वह आयी तो पर उनसे मुक्ति नहीं मिली. वह कलेजे में समाई रही. मैंने उस से कोई न कोई युक्ति कर के, चाल चल के दूर ज़रूर किया, पर उन्हें भुला नहीं पाया. ग़ालिब के निजी जीवन में कठिनाइयों का बहुत ही विवरण मिलता है. थे तो वो बहुत कुलीन और नवाबी खानदान के, लेकिन उनका फक्कड़ स्वभाव, खर्चीली आदत, स्वाभिमान ने उन्हें हनेषा संकट में ही रहा. वह एक ह्त्या के मामले में झूठे फंसाए गए. उनकी पेंशन रुक गयी. उनकी जो भी दरख्वास्तें अँगरेज़ हाकिमों के यहाँ भेजी गयीं वह सब खारिज हुयी. हालांकि कुछ पेंशन उन्हें स्वीकृत की गयी. लेकिन मुसीबत टली नहीं. वैसे भी विपत्तियाँ आती है तो टल तो जाती हैं, पर उनकी टीस, उनकी याद कहीं न कहीं, कलेजे में बसी रहती है.
जीवन का प्रारम्भ ही रुदन से होता है. रुदन भी एक अनिश्चित जगत में अप्रत्याशित रूप से आगमन का ही परिणाम तो है. फिर तो जीवन के हर मोड़ पर कुछ न कुछ अनिश्चित या अप्रत्याशित घटता ही रहता है. कुछ इनका सामना कर जीवन पार करते हैं, तो कुछ टूट जाते हैं. ऐसी ही मुसीबतें एकांत के छड़ों में कभी मुस्कान तो कभी आंसू दे जाती हैं. इन सब को ही हम कभी नियति, तो कभी, जाहे विधि राखे राम कह कर आगे बढ़ जाते हैं. पर विपत्ति विहीन जीवन और सूर्य के बिना दिन हो यह संभव नहीं है.
ऊपर जिन मुसीबतों का जिक्र ग़ालिब के जीवन के सन्दर्भ में किया गया है, उन सभी प्रकरणों बाद में चर्चा होगी. मुसीबतों की याद बने रहने का भी एक अच्छा पक्ष यह भी है कि हम उनसे अनुभव लेते हैं और सबक भी. विपत्तियाँ कितनी भी कठिन हो, रात कितनी भी काली हो, पार ज़रूर होती है. बस धैर्य और विश्वास का संबल साथ ज़रूर हो.
( विजय शंकर सिंह )
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