Thursday, 17 August 2017

स्वतंत्रता दिवस 2017 के अवसर पर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री का भाषण जिसे दूरदर्शन और प्रसार भारती ने प्रसारित करने से मना कर दिया था / विजय शंकर सिंह


इस अवसर पर त्रिपुरा के मुख्य मंत्री #माणिक_सरकार_ ने ध्वजारोहण के बाद उपस्थित समूह को औपचारिक रूप से सम्बोधित किया । माणिक सरकार का यह भाषण दूरदर्शन और प्रसार भारती ने प्रदर्शित और प्रसारित करने से मना कर दिया । हद तो तब हो गयी जब दूरदर्शन और प्रसार भारती ने उस भाषण में संशोधन करने का सुझाव दिया । आपातकाल और क्या होता है यह आप तय करते रहिये । पर मेरी राय में आपात काल लागू न होते हुये भी यह मनोवृत्ति आपात काल की ही है , जब एक मुख्य मंत्री को अपना उद्बोधन संशोधित करने के लिये कहा जाय । यह अशनि संकेत है ।
नीचे उनके भाषण की फ़ोटो प्रति जो सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी के एक ट्वीट से लिया गया है, और उसका हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत कर रहा हूँ । इन्हें कृपया पढ़ें और स्वयं तय करें कि यह भाषण अपने शब्द और भावना में देश के किस कानून का उल्लंघन कर रहा है । फिर भी यदि भारत सरकार को यह लगता है कि यह किसी कानून का उल्लंघन है तो वह खुल कर माणिक सरकार के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करे न कि दूरदर्शन और प्रसार भारती के  बल पर अपने अहं की तुष्टि करे ।
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त्रिपुरा के प्रियजनो,
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप सबका अभिनंदन और सबको शुभकामनाएं । मैं भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों की अमर स्मृतियोंको श्रद्धांजलि देता हूँ । उन स्वतंत्रता सेनानियों में जो आज भी हमारे बीच मौजूद है उन सबके प्रति अपनी आंतरिक श्रद्धा व्यक्त करता हूँ ।
स्वतंत्रता दिवस को मनाना कोई आनुष्ठानिक काम भर नहीं है । इसके ऐतिहासिक महत्व और इस दिन के साथ जुड़ी भारतवासियों की गहरी भावनाओं के चलतेइसे राष्ट्रीय आत्म - निरीक्षण के एक महत्वपूर्ण उत्सव के तौर पर मनाया जाना चाहिए ।
इस स्वतंत्रता दिवसके मौक़े पर हमारे सामने कुछ अत्यंत प्रासंगिक, महत्वपूर्ण और समसामयिक प्रश्न उपस्थित हैं । विविधता में एकता भारत की परंपरागत विरासत है । धर्म निरपेक्षता के महान मूल्यों ने भारत को एक राष्ट्र के रूप में एकजुट बनाये रखा है । लेकिन आज धर्म-निरपेक्षता की इसी भावना पर आघात किये जा रहे हैं । हमारे समाज में अवांछित जटिलताएँ और दरारें पैदा करने के षड़यंत्र और प्रयत्न किये जा रहे हैं ; धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर, भारत को एक खास धर्म पर आधारित देश में बदलने तथा गाय की रक्षा खाके नाम पर उत्तेजना फैला कर हमारी राष्ट्रीय चेतना पर हमला किया जा रहा है । इनके कारण अल्प-संख्यक और दलित समुदाय के लोगों पर भारी हमले हो रहे हैं । उनके बीच सुरक्षा का भाव ख़त्म हो रहा है । उनके जीवन में भारी कष्ट हैं । इन नापाक रुझानों को कोई स्थान नहीं दिया जा सकता है, न बर्दाश्त किया जा सकता है । ये विभाजनकारी प्रवृत्तियाँ हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के उद्देश्यों, स्वप्नों और आदर्शों के विरुद्ध हैं । जिन्होंने कभी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया, उल्टे उसमें भीतरघात किया, जो अत्याचारी और निर्दयी अंग्रेज़ लुटेरों के सहयोगी थे और राष्ट्र-विरोधी ताक़तों से मिले हुए थे,, उनके अनुयायी अभी विभिन्न नामों और रंगों की ओट में भारत की एकता और अखंडता पर चोट कर रहे हैं ।प्रत्येक वफ़ादार और देशभक्त भारतवासी के आज एकजुट भारत के लिये और इन विध्वंसक साज़िशों और हमलों को परस्त करने के लिये शपथ लेनी चाहिए ।
हम सबको मिल कर संयुक्त रूप में अल्प-संख्यकों, दलितों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने और देश की एकता और अखंडता को बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए ।
आज ग़रीबों और अमीरों के बीतता फर्क तेज़ी से बढ़ रहा है । मुट्ठी भर लोगों के हाथ में राष्ट्र के विशाल संसाधान और संपदा सिमट रहे हैं । आबादी का विशाल हिस्सा ग़रीब है । ये लोग अमानवीय शोषण के शिकार हैं । उनके पास न भोजन है, न घर, न कपड़ें, न शिक्षा, न चिकित्सा और न निश्चित आय के रोजगार की सुरक्षा । यह भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के लक्ष्यों और उद्देश्यों के विपरीत है । इन परिस्थितियों के लिये हमारी आज की राष्ट्रीय नीतियाँ सीधे ज़िम्मेदार हैं । इन जन-विरोधी नीतियों को ख़त्म करना होगा । लेकिन यह काम सिर्फ बातों से नहीं हो सकता ।  इसके लिये वंचित और पीड़ित जनों को जागना होगा, आवाज उठानी होगी, और निर्भय हो कर सामूहिक रूप से बिना थके प्रतिवाद करना होगा । हमारे पास निश्चित तौर पर ऐसी वैकल्पक नीति होनी चाहिए जो भारत के अधिकांश लोगों के हितों की सेवा कर सके । इस वैकल्पिक नीति को रूपायित करने के लिये वंचित, पीड़ित भारतवासियों को इस स्वतंत्रता दिवस पर एकजुट होकर एक व्यापक आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन शुरू करने की प्रतिज्ञा करनी होगी ।
बेरोज़गारी की बढ़ती हुई समस्या ने हमारे राष्ट्रीय मनोविज्ञान में निराशा और हताशा के भाव को पैदा किया है । एक ओर लाखों लोग अपना रोजगार गँवा रहे हैं, दूसरी ओर करोड़ों बेरोज़गार नौजवान काम की प्रतीक्षा में हैं, जो उनके लिये मृग मरीचिका की तरह है । राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों को बिना बदले इस विकराल समस्या का समाधान संभव नहीं है । यह नीति मुट्ठी भर मुनाफ़ाख़ोर कारपोरेट के स्वार्थ को साधती है । भारत की आम जनता की क्रय शक्ति में कोई वृद्धि नहीं हो रही है । इसीलिये इस स्वतंत्रता दिवस पर छात्रों, नौजवानों और मेहनतकशों को इन विनाशकारी नीतियों को बदलने के लिये सामूहिक और लगातार आंदोलन छेड़ने का प्रण करना होगा ।

                                                                                  

केंद्र की सरकार की जन-विरोधी नीतियों की तुलना में त्रिपुरा की सरकार अपनी सीमाओं के बावजूद दबे-कुचले लोगों के उत्थान पर विशेष ध्यान देते हुए सभी लोगों के कल्याण की नीतियों पर चल रही है । यह एक पूरी तरह से भिन्न और वैकल्पिक रास्ता है । इस रास्ते ने न सिर्फ त्रिपुरा की जनता को आकर्षित किया है बल्कि  देश भर के दबे हुए लोगों में सकारात्मक प्रतिक्रिया पैदा की है । त्रिपुरा में प्रतिक्रियावादीमताकतों को यह सहन नहीं हो रहा है । इसीलिये शांति, भाईचारे और राज्य की अखंडता को प्रभावित करने के लिये जनता के दुश्मन एक के बाद एक साज़िशें रच रहे हैं । विकास के कामों को बाधित करने की भी कोशिश चल रही है । इन नापाक इरादों का हमें मुक़ाबला करना होगा और प्रतिक्रियावादियों ताक़तों को अलग-थलग करना होगा । इसी पृष्ठभूमि में, स्वतंत्रता दिवस पर, त्रिपुरा के सभी शुभ बुद्धिसंपन्न, शांतिप्रिय और विकासकामी लोगों को इन विभाजनकारी ताक़तों के खिलाफ आगे आने और एकजुट होकर काम करने का संकल्प लेना होगा ।
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भाजपा के लगभग सभी बड़े नेता आपातकाल के दंश से परिचित हैं । वे सभी कारावास का दंड भी भोग चुके हैं । इनका पितृ संगठन आरएसएस भी उस अवधि की पीड़ा को अनुभव कर चुका है । फिर भी अगर इस प्रकार की मनोवृत्ति सरकार के दिमाग में उपजती है तो इसके लिये मेरे पास बस एक ही वाक्य है कि, निरंकुश बनती सत्ता का चरित्र एक ही होता है, ठस, अहमन्य, ज़िद्दी और अहंकारी । यह मनोवृत्ति ही #फासिज़्म है ।
( विजय शंकर सिंह )

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