Wednesday 27 November 2019

हरियाणा के आईएएस अफसर अशोक खेमका का तबादला / विजय शंकर सिंह

हरियाणा सरकार और कुछ करे या न करे पर एक काम बड़ी लगन से करती है और वह काम है हरियाणा के आईएएस और सचिव अशोक खेमका का तबादला। हर पांच छह महीने बाद उन्हें बदल देती है।  उनकी नौकरी मे यह उनका 53 वां तबादला है। अब वे इस म्यूजियम सचिव के पद पर कितने दिन रहते हैं यह तो सरकार को भी पता नहीं है। मुझे लगता है अशोक खेमका का तबादला गिनीज बुक में कहीं कभी न कभी दर्ज न हो जाय।

सरकार ने अशोक खेमका को इस बार अभिलेख, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभागों का प्रधान सचिव बनाया है. इससे पहले इसी साल मार्च में खेमका  का ट्रांसफर करते हुए उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का प्रधान सचिव नियुक्त किया गया था। करीब 27 साल के करियर में 53 वीं बार तबादले पर अशोक खेमका का दर्द देखें।  उन्होंने ट्वीट कर कहा,
''फिर तबादला. लौट कर फिर वहीं. कल संविधान दिवस मनाया गया. आज सर्वोच्च न्यायालय के आदेश एवं नियमों को एक बार और तोड़ा गया. कुछ प्रसन्न होंगे. अंतिम ठिकाने जो लगा, ईमानदारी का ईनाम जलालत.''

अशोक खेमका 1991 बैच के हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। वह गुरुग्राम में सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की जमीन सौदे से जुड़ी जांच के कारण सुर्खियों में रहे हैं। कहा जाता है कि अशोक खेमका जिस भी विभाग में जाते हैं, वहीं घपले-घोटाले उजागर करते हैं, जिसके चलते अक्सर उन्हें ट्रांसफर का दंश झेलना पड़ता है। वह भूपिंदर सिंह हुड्डा के शासनकाल में भी कई घोटालों का खुलासा कर चुके हैं।

अशोक खेमका पश्चिम बंगाल के कोलकाता में पैदा हुए. फिर आईआईटी खड़गपुर से 1988 में बीटेक किए और बाद में कंप्यूटर साइंस में पीएचडी किए। उन्होंने एमबीए भी कर रखी है। नवंबर 2014 में तत्‍कालीन हुड्डा सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के लैंड डील से जुड़े खुलासे के बाद खेमका का तबादला परिवहन विभाग में कर दिया था, जिसको लेकर काफी हो-हल्ला मचा था और सरकार के इस फैसले पर सवाल उठे थे।

तबादला दंड नहीं है। निलंबन दंड नहीं है। यह बातें हमने भी सुनी हैं। निलंबन तो नहीं पर तबादला ज़रूर झेला है पर इतना नहीं जितना अशोक जी झेल रहे हैं। तबादला अगर अनावश्यक और रीढ़ की हड्डी टटोल कर बार बार किया जाय तो वह एक प्रकार का उत्पीड़न है और यह दंश पूरा परिवार भुगतता है। सरकार कुछ पद ऐसे ही अफसरों को अपनी असहजता से बचने के लिये बनाकर रखे रहती है, जिसका पता जनता को तब लगता है जब उस पर कोई अशोक खेमका जैसा अफसर नियुक्त होता है।

अशोक खेमका जैसे अफसर नौकरशाही में कम हैं। वे एक नियम कानून के पाबंद और सजग अफसर हैं, पर सरकार को ऐसे अफसर अमूमन रास नहीं आते हैं। यही अशोक खेमका मीडिया और भाजपा के प्रिय थे जब इन्होंने रॉबर्ट वाड्रा के भूमि से सम्बंधित अनियमितता और घोटालों के दस्तावेज पकड़े थे। भाजपा ने उनका राजनीतिक लाभ तो लिया पर वाड्रा का क्या हुआ, और उन घोटालों की जांच का क्या परिणाम रहा, यह आजतक पता नहीं है।

सरकार को सत्यनिष्ठा और नियम कानून पर चलने वाला अफसर रास नहीं आता है, उसे सत्तारूढ़ राजनीतिक जमात के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा रखने वाला अफसर पसंद है। वह देर सबेर सरकार को असहज ही करता है। क्योंकि उससे सरकार का राजनीतिक समीकरण बिगड़ जाता है। राजनीतिक आकाओं को धन कमवाने वाला, राजनीतिक जोड़ तोड़ करा कर हित साधन करने वाले अफसर अधिक पसंद आते हैं। अशोक खेमका जैसे नहीं।

© विजय शंकर सिंह 

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