Thursday 21 November 2019

संस्मरण - कल्याणपुर थाने के इंस्पेक्टर, इंद्रदेव सिंह / विजय शंकर सिंह

यह बात सन 1987 की है। अगस्त का महीना रहा होगा। मैं कानपुर में नियुक्त हो चुका था। आते ही मुझे कानपुर में सीओ स्वरूपनगर बनाया गया। थाना स्वरूपनगर के बगल में ही आवास था, और उसी के नीचे मेरा कार्यालय। तब स्वरूपनगर सर्किल में कल्याणपुर, नवाबगंज, काकादेव और स्वरूपनगर चार थाने आते थे। 

इसके अतिरिक्त, नगर निगम, केडीए, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, एलएलआर ( हैलेट ) हॉस्पिटल, उद्योग निदेशालय, श्रमायुक्त सहित भारत सरकार एवं राज्य सरकार के कई महत्वपूर्ण विभाग, कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय, नेशनल सुगर इंस्टीट्यूट, दलहन संस्थान, और आईआईटी जैसे  प्रतिष्ठित संस्थान भी थे। दिन में व्यस्तता रहती थी। रात में उतना काम नहीं था तब। 

यह घटना आईआईटी की है। आईआईटी, कल्याणपुर थाने में पड़ता है। कल्याणपुर थाने के एसएचओ इंद्रदेव सिंह थे जो जिला बलिया के रहने वाले थे और बहुत अधिक पढें लिखे नही थे। पुराने अफसर थे। उस समय आईआईटी के डायरेक्टर डॉ सम्पत थे। वे तमिलनाडु के थे और हिंदी कम जानते थे। उसी समय आईआईटी में पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरामन के दामाद भी प्रोफेसर थे। एक बार आईआईटी कैम्पस में साइकिल की चोरी बहुत बढ़ गई तो वहां के छात्रों ने इसकी शिकायत वहां के डायरेक्टर से की। डायरेक्टर साहब ने मेरे आईजी जो उस समय बलबीर सिंह बेदी थे से यह बात बतायी कि, कैम्पस में सायकिल चोरी  बहुत बढ़ गयी है । बेदी साहब सख्त अफसर थे। वह शिकायत मेरे पास आई औऱ मैंने आईआईटी की महत्ता को समझते हुये इंद्रदेव सिह को कहा कि आप जाकर डायरेक्टर साहब से मिल लें और रात में आईआईटी का चक्कर लगा लें। वहां कोई बडी बात हो जाएगी तो बहुत दिक्कत होगी। 

लगभग पंद्रह दिन बात रात 2 बजे अचानक मेरे एसएसपी, यशपाल सिंह का फोन आया कि " क्या आईआईटी में कुछ स्टूडेंट्स की गिरफ्तारी हुयी है। "
मुझे यही पता था कि कोई गिरफ्तारी नहीं हुयी है, मैंने वही बता दिया। 
थोड़ी देर बात,एसएसपी साहब का फिर फोन आया कि " इंस्पेक्टर कल्याणपुर , आईआईटी कैम्पस से किसको उठा लाया है ? उनके डायरेक्टर कह रहे थे कि कुछ स्टूडेंट्स जो लाइब्रेरी के पास बैठे थे उन्हें रात 1 बजे पुलिस पकड़ ले गयी। तुरन्त थाने जाओ और पता करो क्या बात है । " 

मैं तैयार होकर निकला और थाने पहुंचा। वहां आईआईटी के कुछ अध्यापक और छात्र थाने के बाहर रेलवे लाइन से लगे खड़े थे। उनसे कुछ बात हुयी और सारी बात समझ मे आ गयी ।  इंस्पेक्टर साहब थाना कार्यालय में बैठे थे और एक दीवान जी सबका नाम पता नोट कर रहे थे। ज़मीन पर आठ लड़के बैठे हुये थे। इंस्पेक्टर साहब ने मुझे देखते ही प्रसन्न मुद्रा में कहा कि " सरकार, सायकिल चोरों का गिरोह पकड़ा गया है। यह आवारा लड़के आईआईटी में घूम रहे थे। अभी इनसे पूछताछ करना बाकी है। बरामदगी अभी नही हुयी है। " 
अचानक एक लड़का उनमे से खड़ा हुआ और बोला, " सर हम तो आईआईटी में ही पढ़ते हैं। रात में लाइब्रेरी के बाहर बैठे थे तो अंकल आये और पकड़ ले आये। हमारी बात ही नहीं सुन रहे हैं। " 
मैंने उन लड़कों को कुर्सी पर बैठाया और इंस्पेक्टर साहब को अलग से बुलाकर कहा कि जिन्हें आप गिरोह कह रहे हैं वे आईआईटी के छात्र है। रात में पढ़ने निकलते हैं। लाइब्रेरी जाते हैं पढ़ने। यह कोई गिरोह नही है। इन्हें गाड़ी से अभी आईआईटी के हॉस्टल छोडवाईये। " 
उन लड़कों को छोड़ दिया गया और यह बात रात में ही एसएसपी साहब को बता भी दी गयी। 

जब लड़के चले गए तो इंस्पेक्टर साहब थोड़ा मायूस लगे और फिर पूछा, ' सरकार, आधी रात को आवारा की तरह यह लड़के घूम रहे हैं। आप ही बताइए, क्या यह पढवैया लड़को के लक्षण हैं ? "
मैंने कहा कि " यह सबसे तेज़ बच्चे हैं। आईआईटी में  प्रवेश पाना आसान नहीं होता है। बहुत पढ़ना पड़ता है। इसीलिए सरकार उन्हें इतनी सुविधा देती है। " 
उन्होंने कहा कि " कट्टी ( स्लीवलेस टी शर्ट ) और हाफ पैंट ( बरमूडा ) पहन सड़क पर बैठ, आधीरात में गप्प हांक रहे थे, हम समझे आवारा हैं, ज़बको उठा लाया। उन्होंने भागने की भी कोशिश नहीं की। " 
इंस्पेक्टर साहब को अंत तक मैं यह समझा नहीं सका कि अब पढ़ने वाले लड़के, विद्यार्थी पंच लक्षणं, के श्लोक की सीमा के पार हो गए हैं। 

दूसरे दिन एसएसपी साहब ने इंस्पेक्टर और मुझे बुलाया और सारी बात सुनी फिर कहा, " इंद्रदेव सिंह, आईआईटी के डायरेक्टर साहब से आप जाकर मिलिए और उन्हें पूरी बात बताइये। आइंदा से ऐसी बात नहीं होनी चाहिये। वहां कुछ भी होता है तो सीधे दिल्ली से ही फोन आता है। " 
फिर पूछा आप डायरेक्टर से मिले थे ? 
इंद्रदेव सिंह ने कहा, ' गया था, हुजूर । उनको सलाम किया। पर उन्होंने इतने झटके से अंग्रेजी में कुछ बोला कि मेरी समझ मे ही कुछ नहीं आया। सरकार, मुझे एक अंग्रेजी बोलने वाला चौकी इंचार्ज दे दीजिए। डायरेक्टर साहब पता नहीं कैसी अंग्रेजी बोलते हैं। मुझे कुछ समझ मे नहीं आता है। " 
यह सुनकर यशपाल सिंह सर मुस्कुरा दिए। 
इस पर एक नए सबइंस्पेक्टर को जो एमए पास था, उनके साथ नियुक्त किया गया। 
लेकिन इंस्पेक्टर साहब काफी समय बाद भी इसी उधेड़बुन में लगे रहे कि वे लड़के सच में पढ़ने लिखने वाले थे या ऐसे ही रात में आवारागर्दी करते रहते है। 

© विजय शंकर सिंह 

No comments:

Post a Comment