Wednesday, 24 May 2023

राजदंड, लोकतंत्र का प्रतीक नहीं है / विजय शंकर सिंह

आजकल राजदंड की चर्चा है। यह राजदंड चोल राजाओं की विरासत थी, कहा जा रहा है, इस राजदंड को, लॉर्ड माउंटबेटन ने ब्रिटिश सत्ता की  समाप्ति के बाद, सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था। ब्रिटिश सत्ता से एक लंबे संघर्ष के बाद मुक्त होने के प्रतीक के रूप में यह राजदंड अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने इसे जवाहरलाल नेहरु को सौंपा था। जब यह राजदंड सौंपा गया था, तब संविधान बन रहा था। संविधान की ड्राफ्ट कमेटी डॉ बीआर अंबेडकर के नेतृत्व ने संविधान का ड्राफ्ट तैयार कर रही थी। अंत में 26 नवंबर 1949 को, यह संविधान तैयार हुआ और 26 जनवरी 1950 को, 26 जनवरी 1930 के, लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में, पूर्ण स्वराज्य के संकल्प  को, चिर स्थाई बनाए रखने के लिए, यह संविधान लागू हुआ।

खबर आ रही है कि, नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर, वह राजदंड फिर, संग्रहालय से मंगाया गया है और उस राजदंड को फिर से सौंपा जाएगा। लेकिन यह तय नहीं है कि, इस सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में, कौन किसे सत्ता सौंप रहा है। हमारा संविधान सत्ता के केंद्र में केवल 'वी द पीपुल ऑफ इंडिया', यानी 'हम भारत के लोग' को केंद्र में रखता है। लोककल्याण राज्य की अवधारणा संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में है और मौलिक अधिकार, संविधान के मूल ढांचे का अंग, जिसे सर्व शक्तिमान संसद भी नही बदल सकती है।

28 मई को, हम न किसी औपनेशिक सत्ता से मुक्त होने जा रहे हैं और न ही कोई नई संविधान सभा किसी नए संविधान का ड्राफ्ट तैयार कर रही है। न तो अनुच्छेद 79 के अंतर्गत कोई नई संसद गठित हो रही है। हो बस यह रहा है कि, भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक नए संसद भवन का लोकार्पण किया जा रहा है। यह अलग बात है कि, इस उद्घाटन के अवसर पर, संसद के अनिवार्य अंग के रूप में, न तो राष्ट्रपति को न्योता दिया गया और न ही संसद के ही उच्च सदन राज्यसभा के सभापति को, जो उपराष्ट्रपति होते हैं, उनको।

इतिहास की नकल हमेशा नहीं की जा सकती है। बहुत कुछ साम्य होते हुए भी, आप नदी में, एक ही जल में दो बार स्नान नही कर सकते हैं। जल आगे बढ़ जाता है। प्रवाह युक्त नदी, और काल कभी थमता नहीं है। संसद भवन का उद्घाटन हो, यह अच्छी बात है पर यह ऐसी संसद तो न बने जिसमें, माइक म्यूट कर के, ट्रेजरी बेंच के मनमाफिक विधेयक पास करा लिए जाय। ऐसी संसद तो न बने, जिसमें बिना किसी बात के विपक्षी नेताओं के, प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार पर सवाल उठाए जाने पर, भाषण, डिलीट कर दिए जाय। ऐसी संसद तो बने जिसमें ट्रेजरी बेंच सिर्फ इसलिए हंगामा कर के सदन बाधित करे कि, नेता सदन के पास, अडानी घोटाले के आरोपों पर, अपने बचाव में कहने के कुछ भी नहीं है। और ऐसी संसद तो न बने, जिसमें, लोकसभाध्यक्ष, विपक्ष के एक सांसद को सदन में बोलने के लिए समय तक न दे सकें। स्पीकर सर की ऐसी बेबसी, तकलीफदेह ही है।

गोल इमारत हो या तिकोनी, चौसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित स्थापत्य हो या किसी और स्थान से प्रेरित स्थापत्य, सदन का महत्व स्वस्थ वाद विवाद संवाद से होता है। लोकहित से होता है। टेबल पीटने से नही होता है। लोकतंत्र, इमारतों में नही, लोक में बसता है। वह किसी राजदंड में नही बसता है। राजदंड कभी प्रतीक था, अब नहीं रहा। अब केवल संविधान है और हम भारत के लोग हैं।

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh

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