Friday, 12 May 2023

राज्यपाल और विधानसभाध्यक्ष पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणियों और शिंदे सरकार के नाजायज घोषित होने के बाद./ विजय शंकर सिंह

महाराष्ट्र में शिवसेना के विभाजन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। फैसले को लेकर, कानूनी क्षेत्रों और जनता के बीच चर्चा जारी है। फैसले का स्वागत किया जा रहा है, पर यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि, जब राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष के तत्कालीन फैसले, जिनसे ईडी (एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस) सरकार अस्तित्व में आई, शीर्ष अदालत द्वारा अवैध घोषित किए गए तो, इस असंवैधानिक सरकार को, क्यों नहीं सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त कर दिया। यह मानते हुए भी कि, एक असंवैधानिक कृत्य हुआ है और उस असंवैधानिक कृत्य के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही। संशय और सवाल दोनो ही महत्वपूर्ण हैं। इस पर अलग से एक लेख दूंगा। 

जून 2022 में महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल से संबंधित सुप्रीम कोर्ट मे छह रिट याचिकायें दायर की गई थीं। जिनकी सुनवाई, सीजेआई वाईबी चंद्रचूड की अध्यक्षता में गठित पांच सदस्यीय संविधानपीठ द्वारा की गई। दि.10 मई, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की उक्त पीठ ने इन सभी याचिकाओं के बारे में अपना फैसला सुना दिया। फैसले में साफ तौर पर, राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष के निर्णयों को अवैध इल्लीगल कहा, और इस प्रकार यह सरकार,  आज की तिथि में एक असंवधानिक और नाजायज सरकार है। सरकार की असंवैधानिकता पर सरकार के लोग जिसमें राज्य और केंद्र दोनों सरकारें हैं, क्या करती है, इसे उनके नैतिकता पर फिलहाल छोड़ दें। 

फिलहाल इस फैसले का तात्कालिक  महत्व यह है कि, एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के पद पर तो, बने रहेंगे, लेकिन पांच-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का महाराष्ट्र के भीतर और बाहर, राज्यपाल और अध्यक्ष के संवैधानिक अधिकारों और  कामकाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ने की संभावना है। अदालत ने कई, चेतावनियों और संवैधानिक मर्यादाओं की रेखाएँ खींच दीं हैं, जो भविष्य में, इन, संवैधानिक संस्थानों की, मिलीभगत के साथ या उसके बिना, विपक्षी दलों द्वारा संचालित राज्य सरकारों को केंद्र द्वारा सत्ता से बाहर करने के लिए, ऑपरेशन लोटस टाइप, पूर्णतः असंवैधानिक और आपराधिक कृत्य वाले कारनामे, करने में अब, अलोकतांत्रिक दलों की सरकारों को  मुश्किलें आ सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने, सरकार बदलने में तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर तीखा और स्पष्ट फैसला सुनाया है कि, "उद्धव ठाकरे को सदन में बहुमत साबित करने के लिए, कहने का राज्यपाल का फैसला अवैध था।" न्यायालय द्वारा राज्यपाल कोश्यारी की आलोचना और निर्वाचित सरकार की तुलना में उनके कार्यालय की सीमाओं और संवैधानिक भूमिका के विस्तार को, अब से महाराष्ट्र और अन्य जगहों पर राज्यपालों को एक दिशानिर्देश के रूप में लेना चाहिए। अदालत ने कहा है कि "इसकी शक्तियां राज्यपाल को "राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी विवादों या अंतर-पार्टी विवादों में (हालांकि मिनट) भूमिका निभाने की अनुमति नहीं देती हैं।" यानी राज्यपाल, दलगत गतिविधियों में नहीं पड़ेंगे, जैसा कि भगत सिंह कोश्यारी महाराष्ट्र में शिंदे वाली शिवसेना के पक्ष में खड़े साफ नजर आ रहे थे। ऐसे समय में जब राज्यपाल का पद इससे कहीं अधिक विवादास्पद हो गया है, न्यायालय के हस्तक्षेप से, उठाए गए, महत्वपूर्ण बिंदुओं को फिर से परिभाषित करने में मदद मिलनी चाहिए।  

विधानसभाध्यक्ष (स्पीकर) की भूमिका पर शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि "विधानसभाध्यक्ष को अपने निर्णय में, यह आधार नहीं बनाना चाहिए था कि, कौन सा समूह विधान सभा में, किस समूह के पास बहुमत रखता है। यह केवल संख्या का खेल नहीं है, बल्कि, इसके पीछे कुछ और है।" लेकिन, स्पीकर की भूमिका पर नबाम रेबिया का  एक पुराना मामला, भी है, जिसमे यह व्यवस्था दी गई है कि, "यदि स्पीकर के खिलाफ, कोई अविश्वास प्रस्ताव या उसे हटाने का कोई पत्र लंबित है तो, वह स्पीकर, दशम शेड्यूल जिसमें दल बदल विरोधी कानून का प्राविधान है, के अनुसार, किसी सदस्य की योग्यता अयोग्यता का निर्णय नहीं कर सकता है। "अब नबाम रेबिया की व्यवस्था भी पांच जजों की पीठ द्वारा की गई है, अतः, वर्तमान संविधान पीठ भी, जो पाच जजों की ही है, इस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती है, इसलिए शीर्ष अदालत ने इसी फैसले में, स्पीकर की भूमिका, शक्ति और अधिकारों को, एक नई संविधान पीठ को संदर्भित करने का निर्णय किया है, जिसमें सात जज, शामिल होंगे। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बहाल करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि "ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और अपना इस्तीफा दे दिया", इसलिए इस फैसले से, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस को राहत ही मिली है। साथ ही, फरवरी में चुनाव आयोग के एक फैसले के बाद, उद्धव, अपनी पार्टी का नाम और चिन्ह, एकनाथ शिंदे के हाथों खो चुके है, लेकिन इस आधार पर, उद्धव ठाकरे अब, अपनी नैतिक जीत का दावा कर सकते हैं। नबाम रेबिया के फैसले को वृहद संविधान पीठ को सौंपने के न्यायालय के फैसले से शिंदे को भी एक राहत यह मिल सकती है कि, वर्तमान अध्यक्ष अब, 16 विधायकों की अयोग्यता के मामले पर फैसला कर सकते हैं, क्योंकि नबाम रेबिया की रूलिंग, अभी प्रभावी है। 

० विजय शंकर सिंह

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