सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले कि, "दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास सार्वजनिक व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर), पुलिस और भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर, राष्ट्रीय राजधानी की प्रशासनिक सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां रहेंगी" के कुछ ही दिनों बाद, केंद्र सरकार ने एक नया अध्यादेश 'दिल्ली में 'राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण' के संबंध में जारी किया है। इस नए अध्यादेश के अनुसार, प्राधिकरण का नेतृत्व दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे, तथा इसमें दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और गृह सचिव शामिल होंगे। इस अथॉरिटी को अब दिल्ली सरकार में सेवारत ग्रुप 'ए' अधिकारियों और दानिक्स अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर फैसला लेना है।
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि, अनुच्छेद 239AA के उद्देश्य और मंतव्य को, प्रभावी रूप से लागू करने के लिए एक स्थायी प्राधिकरण का गठन किया जा रहा है और यह प्राधिकरण, स्थानांतरण पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक विषयों से संबंधित मामलों में उपराज्यपाल (एलजी) को सिफारिशें करने के लिए विचार करेगा।
अधिसूचना के अनुसार,
"देश की राजधानी में लिया गया कोई भी निर्णय या कोई भी कार्यक्रम न केवल राष्ट्रीय राजधानी के निवासियों को बल्कि देश के बाकी हिस्सों को भी प्रभावित करता है और साथ ही राष्ट्रीय प्रतिष्ठा, छवि, विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा पर भी असर डालने की क्षमता रखता है। अंतरराष्ट्रीय वैश्विक स्पेक्ट्रम में भी दिल्ली की किसी गतिविधि का असर पड़ सकता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस अध्यादेश के अनुसार, यदि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच कोई मतभेद उभरता है तो ऐसे मामालों में दिल्ली के एलजी का निर्णय अंतिम होगा।"
आगे लिखा गया है,
"केंद्र सरकार, प्राधिकरण के परामर्श से, प्राधिकरण को, उसके कार्यों के निर्वहन में सहायता करने के लिए आवश्यक अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की प्रकृति और श्रेणियों का निर्धारण करेगी और ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवाये, प्राधिकरण को, जैसा वह उचित समझेगी, उपलब्ध कराएगी।"
इस अध्यादेश पारित होने के कुछ ही घंटों के भीतर एक महत्वपूर्ण विवाद खड़ा हो गया है। अध्यादेश के बारे में कानूनी सर्किल में, यह तर्क दिया गया है कि, "अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय की हालिया संविधान न्यायाधीश पीठ के, निर्णय, जिसमे एलजी और सरकार के अधिकार, परिभाषित किए गए हैं, के उद्देश्य और इरादे के विपरीत है। उल्लेखनीय है कि, केंद्र सरकार वाया एलजी और दिल्ली एनसीटी की सरकार के बीच लंबे समय से हो रही रस्साकशी के बाद, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का हालिया फैसला जो, दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पक्ष में है, से केंद्र सरकार असहज महसूस कर रही है, और यह अध्यादेश उसी असहजता का परिणाम है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एमआर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने माना था कि, यदि सेवाओं को जीएनसीटीडी के विधायी और कार्यकारी डोमेन से बाहर रखा गया तो, एनसीटीडी के क्षेत्र में नीतियां बनाने वाले, जो
मंत्री और कार्यकारी प्रभारी और ऐसे कार्यकारी निर्णयों को लागू करने वाले होंगे, वे, सिविल सेवा अधिकारियों को नियंत्रित नहीं कर पाएंगे।
फैसले में कहा गया है कि "प्रविष्टि 41 सूची 2 के तहत, उपराज्यपाल, सेवाओं पर, दिल्ली सरकार द्वारा किए गए, जीएनसीटीडी के निर्णयों से बंधे होंगे जैसा कि ऊपर बताया गया है। यह स्पष्ट है कि, प्रासंगिक नियमों में लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर उपराज्यपाल के किसी भी संदर्भ का अर्थ, उपराज्यपाल होगा।"
हालांकि, यह अध्यादेश, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के बिल्कुल विपरीत बनाया गया है। जैसे, "किसी भी न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या डिक्री में निहित कुछ भी होने के बावजूद, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 41 में उल्लिखित किसी भी मामले को छोड़कर, विधान सभा को अनुच्छेद 239एए के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी।"
लगता था कि एलजी दिल्ली बनाम सीएम दिल्ली के बीच का विवाद अब हल हो गया है, लेकिन इस नए अध्यादेश से, यह विवाद फिर खड़ा हो जायेगा, और यह मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगा। केंद्र सरकार दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों को, बरास्ते एलजी अपने नियंत्रण में रखना चाहती है तो दिल्ली सरकार, जनता द्वारा निर्वाचित होने के कारण, कार्यकारी शक्तियां, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के निर्णय के अनुसार, अपने पास रखना चाहती है।
दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने के बाद से आम आदमी पार्टी के नेताओं ने विरोध किया है। उन्होंने कहा कि, "यह अघ्यादेश। भारत के संविधान के खिलाफ है। केंद्र के इस रवैये के खिलाफ आम आदमी पार्टी सड़क से लेकर संसद तक अघ्यादेश का विरोध करेगी. उन्होंने कहा कि संसद में जब यह आयेगा तो मुझे उम्मीद है की पूरा विपक्ष इस अघ्यादेश के खिलाफ होगा. इतना ही नहीं, यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा।"
आम आदमी पार्टी के नेताओं संजय सिंह, सौरभ भारद्वाज आदि ने कहा है कि, "संविधान के बाहर जाकर कोई अघ्यादेश जारी नहीं हो सकता है। भारत के संविधान से बाहर जाकर कोई अघ्यादेश कैसे लाया जा सकता है। यह अध्यादेश नहीं बल्कि जनता द्वारा चुनी सरकार के खिलाफ काला कानून है। इस अध्यादेश के जरिए चुनी हुई सरकार को मारा जा रहा है। यह अध्यादेश, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सीएम अरविंद केजरीवाल अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए मिले अधिकार को छीनने का प्रयास है।
० विजय शंकर सिंह
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