नोट कर लीजिए, धर्मांधता, आरएसएस/बीजेपी का पसंदीदा और टेस्टेड क्षेत्र है। जैसे ही बजरंग बली की इंट्री कर्नाटक चुनाव में हुई, उनकी बांछे खिल गई। अधिकांश भारतीय जनता की मानसिकता आज भी सांप्रदायिक नहीं है। वह साफ सुथरा शासन चाहती है और रोजी, रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य की अपेक्षा अपनी सरकारों से करती है। राजनीतिक दल, चूंकि इन मूल समस्याओं को हल करने में, अक्सर खुद को अयोग्य पाते हैं, इसलिए वे जानबूझकर, धर्मांधता के मुद्दे को चुनावों के केंद्र में ले आते हैं और लोगों को वहीं ले भी आते हैं। लेकिन सेक्युलरिज्म भी सेलेक्टिव नहीं होना चाहिए।
धर्मांधता चाहे किसी भी धर्म की हो, उसका खुल कर विरोध होना चाहिए। धर्म की स्थापना करना, सरकारो का काम नहीं है। सरकार का काम, एक साफ सुथरी प्रशासनिक व्यवस्था और जनता के मूल मुद्दों को हल करना है। संविधान ने सभी धर्मों को एक ही पटल पर रखा है। हर नागरिक अपनी आस्था के अनुसार उपासना पद्धति अपनाने के लिए स्वतंत्र है। सरकार का काम, एक ऐसी आर्थिक नीति बनाना है, जो समाज में आर्थिक विषमता को कम करे और देश के नागरिकों में वैज्ञानिक तथा तार्किक चेतना का विकास हो।
आज जब कर्नाटक में बीजेपी ने शीर्ष नेता चुनाव प्रचार में उतरे थे तो उन्होंने न तो वहां व्याप्त भ्रष्टाचार की बात की, और न ही महंगाई की, न ही बेरोजगारी की और न ही शिक्षा स्वास्थ्य की। बात की, कि, बजरंगबली के नाम पर वोट दीजिए। लफंगों और गुंडों के गिरोह के रूप में, बदनाम हो चुके बजरंग दल को, बजरंग बली के रूप में चित्रित करना, कौन सी धार्मिकता है? यह तो हनुमानजी का अपमान करना हुआ। निश्चित रूप से, वे हनुमानजी के कथित अपमान से आहत नहीं थे, उनका उद्देश्य बजरंग बली के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर के वोट झटकना था।
बीजेपी अध्यक्ष कह रहे हैं कि, कर्नाटक मोदी जी के आशीर्वाद से वंचित हो जायेगा। किस बात का आशीर्वाद। जो खुद ही याचक होकर जनादेश के लिए जनता के सामने हांथ जोड़े घूम रहा है, उसके आशीर्वाद का क्या औचित्य है। यहां केवल एक अहंकार है, गुब्बारे में हवा फुला कर बनाया गया एक नकली व्यक्तित्व, जो झूठ, फरेब और वादा खिलाफी से भरा हुआ है।
अमित शाह जी कहते हैं, कांग्रेस आई तो दंगे होंगे। गुजरात में दंगा हुआ था तो किसकी सरकार थी? यह दंगा बीजेपी के मित्रों के दिमाग में आता कहां से है। दंगे धमांधता के प्रतिफल होते हैं। दंगे तो लगभग, सभी दलों के शासन काल में हुए है। पर केवल, भय, विभाजन और धर्मांधता की राजनीति करना, इनकी यूएसपी है और इसी क्षेत्र में इन्हे महारत हासिल है। बीजेपी के किसी भी सिद्धांतकार को आप आर्थिक मुद्दों या जनहित पर बोलते हुए कम ही देखे होंगे। आर्थिक क्षेत्र में इनकी प्रतिभा का आकलन, देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगा कर आप कर सकते हैं।
बीजेपी से चुनाव में मुकाबले के लिए कभी भी, धार्मिक विषय या प्रतीकों को मुद्दा बनाने से, बीजेपी को ही लाभ पहुंचेगा। बीजेपी आरएसएस का मुकाबला, जनहित और जनता के असल मुद्दों पर ही केंद्रित रह कर किया जा सकता है। गैर बीजेपी दलों को, उन वादों पर केंद्रित रहना होगा, जो समाज की आर्थिक बेहतरी के लिए उन्होंने अपने घोषणापत्र में किया है। लोकतांत्रिक मूल्यों पर केंद्रित रहना होगा, जो हमारे संविधान की आत्मा है। सेक्युलरिज्म पर डटे रहना होगा, जो आइडिया ऑफ इंडिया का कोर मुद्दा है। लेकिन सेक्युलरिज्म भी सेलेक्टिव नहीं होना चाहिए, क्योंकि किसी भी तरह का पक्षपातपूर्ण सेक्युलरिज्म, आत्मघाती होता है।
० विजय शंकर सिंह
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