मणिपुर के रहने वाले, वैपेई, मध्यप्रदेश कैडर के आईपीएस अफसर हैं। अब वे सेवानृवित्त हैं तथा अपने परिवार सहित, इंफाल में रहते हैं। इसी 3 मई को, वह अपने 3 बच्चों और पत्नी के साथ, रात में 0130 बजे अपनी जान बचाने के लिए घर से भागे। वे अपनी खुद की चारदीवारी से कूद गए और एक पड़ोसी के घर के पीछे की दलदली जमीन में मय बाल बच्चों के छिपे रहे। इस उम्मीद में वे रात भर वहीं पड़े रहे कि कोई उन्हें नहीं मारेगा।
लेकिन भोर होते ही, फिर हिंसा शुरू हो गई। किसी तरह से, वे पास ही स्थित एक सीआरपीएफ शिविर में पहुंचे और अपना परिचय दिया। उन्हें वहां शरण मिली। उनके पास न तो पैसे थे, न, कुछ अतिरिक्त कपड़े और न ही कुछ और जरूरी चीजें। दिन में, उन्हें खबर मिली, कि, उनका नवनिर्मित घर जला कर राख कर दिया गया। उनके घर का सारा सामान लूट लिया गया। उन्होंने अपने चचेरे भाई, पॉल, जो खुद 1991 बैच के आईएएस हैं से, एक जोड़ी जींस और जूते उधार लिए। अब वह शिलांग में एक शरणार्थी है।
के.टी. वैपेई 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं, जो 28 फरवरी, 2023 को सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने अंतर-राज्य प्रतिनियुक्ति पर मणिपुर में भी काम किया था। वह मणिपुर के मूल निवासी हैं और कुकी जनजाति से है। यह घटना एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के परिवार के साथ घटी है, जिसके परिवार में अन्य लोग भी अखिल भारतीय सेवाओं में हैं। आम नागरिक, जिनका कोई पुरसा हाल नहीं है, उन पर क्या बीत रही होगी, यह हम आप, सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं।
देश के अन्य हिस्सों में जमीनी हालात से अनभिज्ञ लोग इस सच्चाई पर विश्वास नहीं कर सकते हैं, कि मणिपुर में लगी यह आग, कितनी भयावह है। मणिपुर में आज जो, जनजातिगत संघर्ष छिड़ा है, वह विभाजनकारी ताकतों की राजनीति का परिणाम है। वहां स्थिति अब भी नाजुक है। आदिवासी और गैर आदिवासी समुदाय के बीच लगातार हिंसक संघर्ष जारी है। अखबार बता रहे हैं, गृहमंत्री ने वहां के मुख्यमंत्री को हड़काया है। सीआरपीएफ, वहां की स्थिति सुधारने के लिए जरूरी कार्यवाही कर भी रही है। पर समाज या समुदाय में विभाजनकारी वायरस इंजेक्ट कर के, शांति और सद्भावना की उम्मीद आप नहीं कर सकते है।
० विजय शंकर सिंह
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