Saturday, 1 June 2019

निर्वाचन आयोग साख का सवाल है, मुख्य निर्वाचन आयुक्त महोदय ? / विजय शंकर सिंह

ओपी रावत देश के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त रह चुके हैं। उन्होंने अपने एक बयान में कहा है कि,
" प्रथम दृष्ट्या यह एक गंभीर मामला लगता है। मुझे यह याद नही कि पहले कभी ऐसा प्रकरण ( कि मतगणना में पड़े हुए मतपत्रों और डाले गए वोटों में कोई अंतर ) मेरे कार्यकाल में आयोग के संज्ञान में आया हो। "

निर्वाचन आयोग पर जो आरोप और आक्षेप लग रहे हैं या लगाए जा रहे हैं, उनका उत्तर केवल और केवल आयोग को ही देना है। अक्सर, ईवीएम में पड़े वोटों और गिने गये वोटों में अंतर की खबरें आ रही हैं। क्विंट वेबसाइट ने इस पर एक लंबी रिपोर्ट भी छापी है । और कोई काम धाम नहीं है क्या  ? "द क्विंट ने चुनाव आयोग के दो सेट आंकड़ों का अध्ययन किया. पहला सेट था वोटर टर्न आउट या ईवीएम में दर्ज की गई वोटिंग और दूसरा सेट था चुनाव 2019 के बाद ईवीएम में की गई वोटों की गिनती. पहले से चौथे चरण के चुनाव में हमने 373 सीटें ऐसी पाईं, जहां आंकड़ों के दोनों सेट में फर्क नजर आया."

चौथे चरण के चुनाव में  क्विंट ने 373 सीटें ऐसी पाईं, जहां आंकड़ों के दोनों सेट में फर्क नजर आया.

EC के आंकड़े कहते हैं कि
* तमिलनाडु की कांचीपुरम सीट पर 12,14,086 वोट पड़े. लेकिन जब सभी EVMs की गिनती हुई तो 12,32,417 वोट निकले. यानी जितने वोट पड़े, गिनती में उससे 18,331 वोट ज्यादा निकले. कैसे? निर्वाचन आयोग के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं.

* तमिलनाडु की ही दूसरी सीट धर्मपुरी पर 11,94,440 वोटरों ने मतदान किया. लेकिन जब गिनती हुई, तो वोटों की संख्या में 17,871 का इजाफा हुआ और कुल गिनती 12,12,311 वोटों की हुई. EVMs ने ये जादू कैसे किया, EC को नहीं मालूम.
* तमिलनाडु की तीसरी संसदीय सीट श्रीपेरुम्बुदुर के EVMs में 13,88,666 वोट पड़े. लेकिन जब गिनती हुई तो वोटों की संख्या 14,512 बढ़ गई और 14,03,178 पर पहुंच गई. इस चमत्कार का भी EC के पास कोई जवाब नहीं.

* उत्तर प्रदेश की मथुरा सीट के EVMs में कुल 10,88,206 वोट पड़े, लेकिन 10,98,112 वोटों की गिनती हुई. यानी यहां भी वोटों में 9,906 की बढ़ोत्तरी. कैसे? EC अब भी चुप है।
ये वो चार संसदीय क्षेत्र हैं, जहां आंकड़ों में सबसे ज्यादा फर्क पाए गए.

पहले चार चरण में 373 सीटों के लिए वोट पड़े. वोटों की गिनती के बाद इनमें 220 से ज्यादा सीटों पर मतदान से ज्यादा वोट काउंट दर्ज किये गए. बाकी सीटों पर वोटों की संख्या में कमी पाई गई। द क्विंट ने जब आयोग से पूछा तो चुनाव आयोग ने वोटिंग के सारे आंकड़े हटा लिए।

उल्लेखनीय बात यह है कि द क्विंट ने सिर्फ पहले चार चरणों में वोटिंग में असमानता के बारे में पूछा था। इनके बारे में निर्वाचन आयोग की वेबसाइट में साफ-साफ लिखा था - “Final Voter turnout of Phase 1,2,3 and 4 of the Lok Sabha Elections 2019”.

चुनाव आयोग की वेबसाइट का यह अंश
' द क्विंट ' के सवाल पूछने पर वेबसाइट से गायब हो गया । पांचवें, छठे और सातवें चरण के मतदान की बात कर ही नहीं की जा
की जा रही है क्योंकि आयोग की वेबसाइट ने इन्हें ‘estimated’ data, यानी अनुमानित आंकड़ा बताया है।

27 मई को द क्विंट ने मेल कर निर्वाचन आयोग से आंकड़ों में फर्क के बारे में पूछा. निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने द क्विंट से सम्पर्क भी किया और कहा कि जल्द हमें जवाब मिल जाएगा। उसी दिन द क्विंट ने पाया कि निर्वाचन आयोग की आधिकारिक वेबसाइट eciresults.nic.in से “final voter turnout” का टिकर अचानक गायब हो गया। जब क्विंट ने निर्वाचन आयोग से पूछा कि वेबसाइट के टिकर से आंकड़े क्यों हटाए गए, तो आयोग ने कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा। उसी शाम क्विंट को आयोग से एक मेल मिला, जिसमे,  आयोग ने सिर्फ एक संसदीय क्षेत्र में वोटिंग में फर्क पर सफाई दी थी। आयोग  ने लिखा था कि आंकड़े अधूरे हैं. जल्द ही उन्हें दुरुस्त कर लिया जाएगा। एक बड़ी आश्चर्यजनक बात यह है कि नतीजों के ऐलान के चार दिन बाद भी (27 मई को) आयोग, द क्विंट से कहता है कि अभी वोटिंग के आंकड़े अधूरे हैं !

निर्धारित चुनावी प्रक्रिया के मुताबिक, पोलिंग बूथ के पीठासीन अधिकारी  को हर दो घंटे पर अपने वरिष्ठ अधिकारी को वोटिंग का आंकड़ा, मतदान प्रतिशत बताना होता है । तर्कों की बात करें, तो इस हालत में वोटिंग की जानकारी अपलोड करने में ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन ही लगने चाहिए.

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत की बात माने तो ऐसे मामले पहले कभी नहीं आये हैं। अगर चुनाव प्रक्रिया, ईवीएम में कथित धांधली और मतगणना में हुयी अनियमितता की खबरों में उठते हुये सवालों का स्पष्टीकरण आयोग नहीं देता है और मुंह छिपा लेता है तो इससे यह संदेह और बढ़ेगा कि कहीं न कहीं मतगणना में गड़बड़ी हुयी है। इससे अफवाहें भी बहुत उड़ेंगी। इन सब संदेहों से आयोग की गिरी हुयी साख और गिरेगी। आयोग और मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा की क्षवि का जो कुछ भी होना है, वह तो होगा ही पर इससे जनादेश की शुचिता पर भी अनावश्यक रूप से सन्देह के बादल घिरेंगे।

निर्वाचन आयोग को एक सार्वजनिक शिकायत प्रकोष्ठ गठित कर जनता से अपने प्रति उठ रही शिकायतों को आमंत्रित करना चाहिये और फिर एक तय सीमा में उन पर अपना पक्ष और स्पष्टीकरण भी दे देना चाहिये। यह सब आरोप और स्पष्टीकरण आयोग की वेबसाइट पर रहना चाहिये, जिससे जनता, वस्तुस्थिति से अवगत हो जाय। ऐसी पारदर्शिता न केवल आयोग की साख को बढ़ाएगी बल्कि चुनाव प्रक्रिया में कथित धांधली से उठने वाले अफवाहों का भी शमन करेगी। सभी जनसरोकार से जुड़े विभागों में ऐसे शिकायत प्रकोष्ठ या ग्रीवांस रिड्रेसल मैकेनिज्म का प्राविधान होता है।

© विजय शंकर सिंह

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