Tuesday, 25 June 2019

Ghalib - Kyaa farz hai ki sabko mile - क्या फ़र्ज़ है कि सबको मिले - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 109.
क्या फ़र्ज़ है, कि सबको मिले एक सा जवाब,
आओ  न,  हम भी  सैर  करें  कोहे तूर  की !!

Kyaa farz hai, ki sab'ko mile ek saa jawaab,
Aao na,  ham  bhii  sair karen kohe tuur kii !!
- Ghalib

यह बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि सबको एक सा ही जवाब मिले या सबका एक सा ही अनुभव हो। आओ हम भी तो तूर की पहाड़ियों की सैर करें। देखें हमें क्या जवाब मिलता है।

मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना ! ग़ालिब का यह शेर ईश्वर या निराकार ब्रह्म के बारे में अलग अलग धारणा को बताता है। तूर की पहाड़ियों पर ही हजरत मूसा को दिव्य प्रकाश के दर्शन हुये थे, और वहीं उन्हें ईश्वर के दस समादेश कमंडमेंट्स मिले जो मूल रूप से व्यक्ति के आचरण से संबंधित थे। मूसा बनी इजरायल कबीले के थे। मिश्र के राजा ने उन्हें दासता से मुक्त कर के उन्हें जो भूभाग दिया था वही आज का इजराइल है। यह धर्म जो ओल्ड टेस्टामेंट को अपनी धार्मिक पुस्तक मानता है, सेमेटिक धर्मो में सबसे पुराना है।

ग़ालिब तूर की पहाड़ियों से जो दस समादेश मूसा को मिले थे के संदर्भ में कह रहे हैं कि चलिये हम भी तूर के सफर पर चलें। मूसा को वहां जो मिला है कोई ज़रूरी नहीं कि वही हमें भी मिलें। ईश्वर के बारे में सबकी सोच और धारणा एक सी हो भी नही सकती। हर कोई अपने विवेक, सोच और धारणा से ईश्वर का अनुसंधान करता है। पर यह प्रयास होते रहना चाहिए ।

© विजय शंकर सिंह

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