मुखर्जी नगर पुलिस और ऑटो चालक विवाद के संदर्भ में हाईकोर्ट ने पुलिस को प्रथम दृष्टया दोषी पाया है। अभी कुछ दिनों से मुखर्जी नगर में एक सिख ऑटो चालक के साथ पुलिस से झगड़े का वीडियो चर्चा में है। एक ऑटो चालक ने पुलिस पर तलवार या कृपाण से हमला किया और फिर इसकी प्रतिक्रिया में पुलिस से उस ऑटो चालक की मारा पीट हो गयी । पुलिसजन को भी गंभीर चोटें आयीं, और ऑटो चालक भी घायल हुआ। आरोप है कि ऑटो चालक का बेटा जो नाबालिग था कि उसे भी पुलिस ने मारा पीटा। सोशल मीडिया पर इस घटना से सम्बंधित वायरल हुए एक वीडियो में ऑटो चालक द्वारा पुलिसकर्मियों का तलवार लेकर पीछा करते हुए देखा गया था और दूसरे में अधिकारियों को ऑटो चालक और उसके बेटे को डंडों से पीटते हुए देखा गया था।
इस घटना पर जनता और पुलिस की अलग अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग पुलिस द्वारा प्रतिक्रिया में की गयी मारपीट को सही ठहरा रहे है। कुछ इस घटना में ऑटो चालक को दोषी मान रहे हैं।
इस पर एक एडवोकेट सीमा सिंघल ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर के स्वतंत्र सीबीआई जांच की मांग की। साथ ही, पुलिस सुधारों के लिए उचित दिशा निर्देशों का निर्धारण करने का भी अनुरोध अदालत से किया, ताकि इस तरह के "पुलिस क्रूरता और अत्यधिक बल के हिंसक कार्यों" को रोका जा सके।
इसी मामले में एक अन्य एडवोकेट, संगीता भारती द्वारा दायर याचिका में हमले के पीड़ितों के लिए मुआवजे की भी मांग की गई है। याचिका में अदालत से इस मामले की स्टेटस और मेडिकल रिपोर्ट के साथ- साथ मुखर्जी नगर पुलिस स्टेशन से सीसीटीवी फुटेज मंगाने का भी आग्रह किया है।
दिल्ली पुलिस के अनुसार, ऑटो चालक की गाड़ी एक पुलिस वैन से टकरा जाने के बाद यह विवाद शुरू हुआ था। ड्राइवर ने पुलिस पर तलवार से हमला किया। पुलिस ने दावा किया कि इस घटना में 8 लोग घायल हो गए थे। इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने 3 पुलिसकर्मियों को "अभद्र व्यवहार" के लिए निलंबित कर दिया था और जांच शुरू की थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय के जज जस्टिस नज़मी वज़ीरी और जयंत नाथ ने बुधवार को दिल्ली पुलिस को इस याचिका पर सुनवायी करते हुए फटकार लगायी और वीडियो में पुलिस द्वारा की गयी कार्यवाही को "पुलिस की बर्बरता का सबूत" माना है । और वर्दीधारी पुलिस बल जिसे कानून को लागू करने की जिम्मेदारी है, द्वारा, ऐसे कार्य,जैसे सड़क पर मारपीट नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने घटना का वीडियो देखने के बाद यह टिप्पणी की,
"आप 15 साल के लड़के पर हमले को कैसे सही ठहरा सकते हैं ? अगर यह पुलिस की बर्बरता का सबूत नहीं है तो आपको और क्या सुबूत चाहिए ?"
पीठ ने आगे यह कहा कि
" अगर कोई वर्दीधारी फोर्स इस तरह से काम करेगी तो यह "नागरिकों को भयभीत" करेगा जबकि उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि पुलिस उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मौजूद है।"
"कोई भी वर्दीधारी फोर्स ऐसा कैसे कर सकती है? यह नागरिकों को डराता है कि वर्दीधारी फोर्स इस तरह से काम कर रही है। इससे समाज में बेचैनी पैदा होगी। आपको (पुलिस) यह बताना होगा कि आप नागरिकों के साथ हैं। यही बच्चों समेत सभी नागरिक चाहते हैं,"
पीठ ने उपरोक्त बात जारी रखते हुए आगे कहा।
अदालत ने इन टिप्पणियों के बाद घटना की स्वतंत्र सीबीआई जाँच के लिए दाखिल जनहित याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए अपना पक्ष रखने को कहा है। पीठ ने संयुक्त पुलिस आयुक्त रैंक के एक अधिकारी से घटना के संबंध में 1 सप्ताह के भीतर एक स्वतंत्र रिपोर्ट मांगी है और मामले को 2 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील सत्यकाम ने कहा कि वह अधिकारियों की कार्रवाई का बचाव नहीं कर रहे हैं। दोनों पक्षों की शिकायतों पर एफआईआर दर्ज की गई है और मामले को जांच के लिए अपराध शाखा में स्थानांतरित कर दिया गया है। उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि वीडियो से पहचाने गए तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है और संयुक्त पुलिस आयुक्त रैंक का एक अधिकारी घटना की स्वतंत्र जांच कर रहा है।
हालांकि अदालत इन दलीलों से संतुष्ट नहीं हुई। पीठ ने कहा कि हमले में शामिल अधिकारियों में से 8 से 9 स्पष्ट रूप से पहचाने जाने योग्य हैं। पीठ ने पूछा कि इन सभी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? अदालत में वीडियो देखने के बाद पीठ ने यह भी कहा कि
" क्लिप में 5 अधिकारियों को नाबालिग लड़के को सड़क पर घसीटते हुए और लाठी से पीटते हुए दिखाया गया, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है ?"
अदालत ने आगे पूछा,
"उन 5 अधिकारियों को पहचानें जिन्होंने लड़के के साथ मारपीट की, उसे लाठी से पीटते हुए सड़क किनारे घसीटा और वह भी दिन के उजाले में। वह लड़का निहत्था था और वह केवल अपने पिता को वहां से ले जाने की कोशिश कर रहा था और फिर भी उस बेरहमी से पीटा गया था,"
अदालत ने पुलिस, केंद्र और दिल्ली सरकार से कहा कि उन 5 अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए जिन्होंने लड़के की पिटाई की थी।
अब इस घटना से तमाम वीडियो देख कर, पुलिसजन पर लगी चोटों को देख कर, पुलिस के साथ कितनी भी सहानुभूति हो, पर अदालत ने एक झटके में इस सहानुभूति को उड़ा दिया और पुलिस के उन अफसरों को निलंबित करके उनके खिलाफ कार्यवाही करने को भी कह दिया। ऑटो चालक ने पहले तलवार निकाला, हमला किया, फिर वह और उसका बेटा पुलिस द्वारा पीटा गया, फिर भीड़ ने पुलिस को पीटा, और अब अदालत ने झटक दिया। 3 पुलिसजन निलंबित हुए। जांच में शेष भी नहीं बचेंगे। ऑटो चालक पर तो मुकदमा कायम ही है। उसको और उसके बेटे को मारने पीटने का क्रॉस केस अब पुलिस के ऊपर कायम है। अदालत ने जो दृष्टिकोण दिखाया है, उसके अनुसार, पुलिस बर्बर व्यवहार की दोषी है।
जिस दिन यह घटना हुयी थी, उसी दिन मैं यह वीडियो देखने के बाद समझ गया था कि सरदार ऑटो चालक का कुछ हो या न हो, पर इस वीडियो में नज़र आ रहे पुलिसजन तो बच ही नहीं पाएंगे। पुलिस अगर बिना सड़क पर तमाशा किये उक्त ऑटो चालक को पकड़ कर बिना मारपीट के ही थाने ला कर उसके खिलाफ कड़ी धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज देती तो कोई आपत्ति नहीं होती। क्योंकि यह तो उसका कानूनी दायित्व है। पर तात्कालिक क्षणिक क्रोध जन्य यह मारपीट सीमा पार कर गयी और कानून को कानूनी तरह से न लागू करने के कारण, पुलिस खुद ही कानून तोड़ने में आरोपित हो गये। अब 2 जुलाई को हाईकोर्ट क्या करता है यह तो उसी दिन पता चलेगा।
© विजय शंकर सिंह
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