Saturday, 1 June 2019

कानून - आप कितने भी ऊपर हैं, कानून आप के ऊपर है ! / विजय शंकर सिंह

आप कितने भी ऊपर हैं, कानून आप के ऊपर है । यह एक बेहद लोकप्रिय कहावत है और हम अक्सर ठंडे कमरे में अपने अफसरों से यह सुभाषित सुनते रहते हैं और मातहतों को भी सुनाते रहते हैं। अब यह रोचक टिप्पणी पढें,

" बदमुजन्ना बसिलसिले वजारत लखनऊ मे मुकिम है । सरेदस्त सरका मवेशी मे कमी आई है । मुश्तवा लोगो का आना जाना बदस्तूर  जारी है , निगरानी की सख्त जरुरत है । "

( बदमुजन्ना - हिस्ट्रीशीटर, वजारत - मंत्री, मुकीम - निवास करता है, सरका मवेशी - पशु चोरी, मुश्तवा - संदेहास्पद )

यह टिप्पणी, 70 के दशक में उत्तर प्रदेश के एक पुलिस थाने के एक रजिस्टर में एक हिस्ट्रीशीटर के ऊपर टिप्पणी करते हुये तत्कालीन एसओ ने यह लिखा था। वह हिस्ट्रीशीटर, पशु चोरी में लिप्त था, बाद में वह राजनीति में चला गया, और मंत्री बन गया । थाने के अभिलेखों में,  तब अधिकतर टिप्पणियां उर्दू में ही होती थी और बाद में देवनागरी में लिखी जाने लगी। यह टिप्पणी उर्दू में तो है पर देवनागरी में लिखी गयी थी। पहले तो सारी लिखावट ही उर्दू में होती थी। पुलिस अभिलेखों में, हिस्ट्रीशीट कभी भी खत्म न होने वाला रिकॉर्ड है। जब हिस्ट्रीशीटर मर जाता है और उसकी पुष्टि हो जाती है कि, वह वास्तव में जिंदा नहीं है तो उसकी हिस्ट्री शीट नष्ट कर दी जाती है।

उस एसओ के साहस और कर्तव्यनिष्ठता की तारीफ की जानी चाहिये कि उसने अपने ही थाने के एक राजनीतिक व्यक्ति, जो हिस्ट्रीशीटर है, पर बाद में मंत्री बन जाता है की गतिविधियों पर सालाना टिप्पणी करते हुए अपनी राय बेबाकी से देता है। अब भी ऐसे लोग हैं। पर कहीं खोये हुये। उन्हें उभारा जाना चाहिये।

जिन चिरागों को हवाओँ का कोई खौफ नहीं,
उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाए !!

केरल हाईकोर्ट ने पुलिस और सरकार के सामंजस्य पर एक अलग तरह की टिप्पणी की है जो आज के राजनीतिक संस्कृति में जब पुलिस, सुरक्षा बल और सेना को राजनीतिक जमात अपने नेता की सेना, पुलिस कह कर सम्बोधित करती है तो उसे पढा जाना चाहिये।

केरल के एक डीजीपी श्रीकुमार ने जब, सरकार बदलने पर हुये अपने तबादले के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया तो सरकार ने उनके तबादले को यह कह कर के उचित ठहराने की कोशिश की, कि नयी सरकार, नयी नीतियां लागू करेगी तो उसे अपने दृष्टिकोण से डीजीपी और मुख्य सचिव बदलने का अधिकार है। यह तबादला उसी क्रम में है।

अदालत ने मुख्य सचिव और डीजीपी की भूमिका को अलग अलग तरह से परिभाषित किया है। अदालत के अनुसार, पुलिस का काम और दायित्व कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण, अन्वेषण आदि है। इन सब दायित्व का निर्वहन करने के लिये उसे आपराधिक कानूनों, आइपीसी, सीआरपीसी, साक्ष्य अधिनियम, और समय समय पर संसद और विधानसभा द्वारा पारित कानूनों द्वारा अधिकार और शक्तियां दी जाती है। सरकार का पुलिस पर प्रशासनिक नियंत्रण तो है, पर किसी कानून को लागू करने के लिये सरकार दिन प्रतिदिन ऐसा कोई निर्देश नहीं दे सकती जो विधायिका द्वारा पारित कानूनों के विपरीत हो। पुलिस सरकार के अधीन तो है पर अपने दायित्वों के निर्वहन में वह कानून को कानूनी तरह से ही लागू करने के लिये बाध्य है।

अक्सर सत्तारूढ़ दल के छुटभैये नेता इस गलतफहमी के शिकार होते हैं कि सरकार उनकी तो थाना भी उनका हो गया। हम पुलिसजन भी कोई अनावश्यक विवाद न हो व्यवहारिक राह अपनाते हुए ऐसे छुटभैये नेताओं को तरजीह दे भी देते हैं। पर राजनीतिक जमात को यह बात समझनी चाहिये कि पुलिस अपने दायित्वों के निर्वहन में कानून के प्रति प्रतिबद्ध और शपथबद्ध है न कि किसी खास राजनीतिक दल जो जब सत्तारूढ़ हो उसके प्रति।

© विजय शंकर सिंह

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