अपनी
तनहाइयों से पूछा है ,
हिज्र की रातों से बात
कर ली है
मेरे अंदर
सहमी खामोशी भी ,
मेरा बाहर
का हँसता चेहरा भी।
रात के
सनसनाते, पल भी ,
दिन का
डसता हुआ, उजाला भी ,
ज़ब्त का
टूटा यह, बंधन भी ,
सब्र का
छूटा यह, दामन भी ,
उस की
यादें भी, , कुछ
इशारों में,
कर रहे
मज़बूर मुझे , मिल के सब
आओ चलते
है, अब पास उस के ,
कहें उस
से , कुछ दवा
कर दे ,
अपनी
फितरत को छोड़, अब ,
कोई वादा
तो, पूरा कर दे ,
बातों से, अब कुछ नहीं होगा ,
आख़िरी
फैसला तो, दिल का होगा ,
दिल कहता
है , उस से
मिलने से बेहतर ,
अच्छा तो
है एकांत प्रिये !!
अब भा गया
अकेलापन , मुझे
,
उस से
मिलने अब नहीं जाना ,
उसकी
बातें उदास करती हैं !!!
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