जीवन में सब कुछ तयशुदा नियमों के अनुसार नहीं घटता है. न तो शांतिपूर्ण जीवन में और न ही झंझावातों भरे जीवन काल में. युद्ध काल तो विकट काल होता ही है. कोई जनरल कितना भी सक्षम क्यों न हो, कितना भी योग्य सैन्य रणनीतिज्ञ क्यों न हो, जब रणनीति वार रूम से ज़मीन पर आती है तो, कुछ न कुछ बदलता ही है. महाभारत का युद्ध धर्म की स्थापना के लिए ही लड़ा गया था. यह भी विडम्बना ही है कि धर्मयुद्ध के लिए युयुत्सु कुरु वंश के योद्धाओं भीष्म, द्रोण, कर्ण, और दुर्योधन के वध लिए अनीति का ही मार्ग अपनाना पड़ा. क्यों ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भी छल से बालि का बध करना पड़ा. क्यों ? संभवतः इसी लिए कहा गया है कि आपात काले मर्यादा नास्ति ! आपात काल में सभी मर्यादा और वर्जनाएं बंधन मुक्त हो जाती हैं. यूह युद्ध भी इसका अपवाद नहीं था. जो रणनीति दिल्ली के वार रूम में बनायी गयी थी, उसी रणनीति पर मुक़म्मल तौर से यह युद्ध तो नहीं चला पर सौभाग्य से बहुत अधिक विचलन भी नहीं हुआ. उस समय इस युद्ध के कोर कमांडर थे, मेजर जनरल जैकब जो बाद में पूर्वी कमान के चीफ ऑफ़ स्टाफ बने, ने इस युद्ध पर एक बेहद सूचना परक इंटरव्यू दिया है. यह इंटरव्यू कई भागों में है और यह बात वरिष्ठ पत्रकार रामानंद सेनगुप्ता को 20 दिसंबर 2006 को, जब वे सेना से अवकाश ग्रहण कर चुके थे , तब दिया था. जनरल जैकब न केवल इस युद्ध के साक्षी थे बल्कि वह इस गौरवपूर्ण युद्ध के नायकों में से एक थे. जनरल नियाज़ी के पास जब वह आत्मसमर्पण करने के लिए लिखित दस्तावेज़ ले कर दुश्मन के कैंप में गए थे, तो उनके पास कोई शस्त्र भी नहीं था, केवल एक निःशस्त्र सहायक और उस दस्तावेज़ के उनके पास कुछ भी नहीं था. गज़ब का आत्म विश्वास था यह. यह आत्म विश्वास था एक सेनापति का , जिसने विजय प्राप्त की थी. विजय का आत्म विश्वास अद्भुत होता है.
13 दिसंबर 71 को भारतीय सेनाएं पाकिस्तानी सेना को विभिन्न मोर्चों पर पराजित करते करते ढाका के क़रीब पहुँच गयी थीं. ढाका के अंदर सेना ने प्रवेश तो नहीं किया पर ढाका जाने के सारे मार्गों को अवरुद्ध कर दिया था. वायुसेना ने ढाका एयर पोर्ट को निष्क्रिय कर दिया था. असैनिक विमानों की उड़ान बंद थी . युद्ध के संवाददाताओं के लिए, कुछ विशेष पास पाकिस्तान सरकार ने जिसका प्रशासनिक कार्य लगभग ठप गया था, ज़रूर जारी किये थे पर उन पासों की चेकिंग का काम बंद था. बी बी सी का संवाद दाता एंड्रयूज लिखता है ढाका की सड़कों पर मुक्ति वाहिनी और पाकिस्तानी सेना के बीच झड़प हो रही थी. बाज़ार बंद थे और तनाव पूर्ण अराजकता थी. भारतीय सेना ने अपना पूरा ध्यान ढाका के उत्तरी भाग में लगा रखा था. क्यों कि ढाका के दक्षिण में भारतीय नौसेना कोलकाता से आ कर सन्नद्ध थी. इस प्रकार ढाका के पास 3000 के नफरी की सेना थी. यह योजना बन रही थी कि विमान से पैरा ट्रूपर ढाका पाक सेना के कमान मुख्यालय पर उतारे जांए.'
उधर हिन्द महा सागर में अमेरिकन बेडा, मलक्का की खाड़ी में था, और रूसी पोत जो ब्लादीबोस्टक से चले थे सिंगापुर के पास आ गए थे. दिल्ली में भी इस युद्ध को अब अंजाम तक पहुंचा देने की उत्कण्ठा बढ़ गयी थी. पर इस्लामाबाद सेना मुख्यालय से जो रेडियो सिग्नल पूर्वी पाक की सेना को भेजे जा रहे थे को जब इंटरसेप्ट किया गया तो, हैरान करने वाला सन्देश मिला. एक सन्देश में कहा गया था, मूल सन्देश पढ़ें,
"Fight on, you are getting help from yellow from the north, and white from
the south."
( लड़ते रहो, तुम्हे पीला यानी चीन, उत्तर से और गोरा यानी अमेरिका, दक्षिण से सहायता ले कर आ रहा है. )
जनरल नियाज़ी जो पाक सेना का ढाका कमांडर था इस सन्देश पर विश्वास कर गया. यह सन्देश झूठा था और केवल पाक सेना को , जो बांगला देश में पराजित होने के लिए ही लड़ रही थी, का मनोबल किसी भी प्रकार बनाये रखने का एक प्रयास था.
( लड़ते रहो, तुम्हे पीला यानी चीन, उत्तर से और गोरा यानी अमेरिका, दक्षिण से सहायता ले कर आ रहा है. )
जनरल नियाज़ी जो पाक सेना का ढाका कमांडर था इस सन्देश पर विश्वास कर गया. यह सन्देश झूठा था और केवल पाक सेना को , जो बांगला देश में पराजित होने के लिए ही लड़ रही थी, का मनोबल किसी भी प्रकार बनाये रखने का एक प्रयास था.
13 दिसंबर 71 को अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में युद्ध विराम का और प्रस्ताव रखा। एक प्रस्ताव तो सोवियत रूस ने पहले ही वीटो कर दिया था। यह दूसरा प्रस्ताव था। 13 दिसंबर तक अमेरिका समझ गया था कि इस युद्ध में भारत का जीतना तय हो चला था ,चीन से जो उम्मीद थी कि वह नेफा पर आक्रमण कर नया मोर्चा खोलेगा समाप्त हो गयी थी। अमेरिका स्वयं सीधे युद्ध में भाग लेना नहीं चाहता था , क्यों कि फिर रूस हस्तक्षेप कर देता , और यह युद्ध वैश्विक हो जाता। यह युद्ध विराम का प्रस्ताव इस लिए लाया गया था कि ढाका के पतन के पहले ही युद्ध अधर में ही थम जाय। पर रूस ने इस प्रस्ताव को भी वीटो कर दिया यह प्रस्ताव गिर गया। रूस ने इस प्रस्ताव वीटो करने के बाद , भारत को सन्देश भेजा कि , यह आख़िरी वीटो है , अब और वीटो करना सम्भव नहीं होगा। सन्देश साफ़ था , जो करना हो जल्दी करो। विलम्ब अब ठीक नहीं होगा। यह सन्देश प्राप्त होते ही , सेनाध्यक्ष जनरल एस एफ एच जे मानेक शा ने , इस पर अपनी प्रत्रिक्रिया व्यक्त की और जनरल जैकब को यह आदेश भेजा ,
" Capture all the towns in Bangladesh except
Dacca.".
( ढाका को छोड़ कर बांग्ला देश के सभी शहरों को अधिकार में ले लो। )
यह आदेश , सेनाध्यक्ष के सभी पूर्व आदेशों को अवक्रमित करते हुए माने जाने थे।
उधर भारतीय सेना ढाका के पास पहुँच गयी थी। और कहा गया कि ढाका छोड़ कर अन्य सभी शहरों को अधिकार में ले लिया जाय ! सेना मुख्यालय ने इसी आदेश की तीन प्रतियां करा कर अन्य कोर कमांडरों को भी भेज दी। उस आदेश पर अमल प्रारम्भ भी हो गया था।
लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा , उस समय पूर्वी कमान के कमांडर इन चीफ थे। जनरल जैकब अपने संस्मरण में बताते हैं ,
" Lieutenant General Jagjit Singh Aurora (then General
Officer Commanding Eastern Command) came agitated into my room, showing me the
signal and saying this was was all my fault because he wanted to capture the
towns, and I did not support this view. Further, I had opposed operations to
capture Sylhet, Rangpur and Dinajpur and other towns in East Pakistan.
"
लेफिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा , उत्तेजित होते हुए मेरे ( जनरल जैकब के ) कमरे में आते हैं , और उक्त आदेश की प्रति दिखाते हुए कहते हैं कि यह मेरी ( जनरल अरोड़ा की ) ही गलती है कि मैंने उनके ( जनरल मानक शा के ) चाहने पर भी, अन्य शहरों को कब्ज़े में नहीं लिया। मैंने उनके विचार कि सिलहट , रंगपुर , और दीमापुर सहित अन्य शहरों को पहले जीत लिया जाय , का विरोध किया। मानेक शा चाहते थे कि पहले सारे छोटे शहरों को अपने अधिकार में ले कर तब ढाका पर निर्णायक कब्ज़ा किया जाय। जिस से किसी भी आसन्न युद्ध विराम की स्थिति में अधिक से अधिक शहरों पर अपना अधिकार रहे।
सेना मुख्यालय का ऐसा आदेश प्राप्त होते ही , जनरल जैकब ने पाक सेना के कमांडर जनरल नियाज़ी को उस रात वायरलेस पर यह सन्देश भेजा ,…
" Our forces outside Dhaka were very strong, a Mukti Bahini
uprising was imminent, ethnic minorities would be protected and that they
( the Pakistan army) would be treated with dignity if they surrendered.
"
हमारी सेनाएं , ( भारतीय सेनाएं ) बहुत ही सुदृढ़ स्थिति में है। मुक्ति वाहिनी का प्रतिरोध बढ़ रहा है। ( ढाका में रह रहे ) अल्पसंख्यक ( हिन्दुओं ) को सुरक्षित रखना होगा। अगर वे ( पाक सेना ) आत्म समर्पण करती हैं तो , उनका सम्मान सुरक्षित रहेगा। आत्म समर्पण के लिए भारत का यह प्रथम सन्देश था।
14 दिसंबर 71 को भारतीय सेना जिसका अस्थायी मुख्यालय जैसोर में था ने एक और सन्देश जो पाक सेना का पूर्वी कमान के जनरल नियाज़ी के लिए था को इंटरसेप्ट किया। इस सन्देश से यह खुलासा हुआ कि , ढाका के गवर्नर हाउस में उस दिन एक आवश्यक बैठक , वरिष्ठ सैन्य और सिविल अधिकारियों की होनी थी। ढाका में दो राज भवन थे। यह पता नहीं था कि उक्त बैठक किस राजभवन में हो रही है। अनुमान से एक राजभवन पर भारतीय वायु सेना ने हमला किया और उस राज भवन का पोर्टिको और बाहर के कमरे धराशायी हो गए। कोई जन हानि नहीं हुयी और कोई जन हानि करना उद्देश्य भी नहीं था ,इस बमबारी का एक मात्र उद्देश्य गवर्नर सभी बड़े आदर्शिकारियों में दहशत पैदा करना और उन्हें यह सन्देश देना था कि , अब ढाका पर अधिकार कुछ ही घंटों की बात है। इस बम बारी का उद्देश्य यह भी था कि जनरल नियाज़ी निराश और हतोत्साहित हो कर किसी भी युद्ध विराम के पूर्व आत्म समर्पण के लिए तैयार हो जाएँ। इस बमबारी का पहला प्रभाव यह हुआ कि चल रही मीटिंग स्थगित हो गयी और गवर्नर ने इस्तीफा दे दिया। उसी दिन सायं ४ बजे , पाक सेना के जनरल नियाज़ी और जनरल फरमान अली , अमेरिकी कौंसुल जनरल स्पीवेक से मिलने पहुंचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने कौंसुल जनरल को निम्न प्रस्ताव दिया।
1 . संयुक्त राष्ट्र की देख रेख में युद्ध विराम हो।
2 . सत्ता का हस्तांतरण , संयुक्त राष्ट्र की देख रेख में हो।
3 . सेनाओं की वापसी ,संयुक्त राष्ट्र की देख रेख हो।
4 . युद्ध के दौरान अपराधों के लिए कोई मुक़दमा नहीं चलाया जाय।
जनरल जैकब को अपने सूत्रों से जनरल नियाज़ी के इस प्रस्ताव की जानकारी हो गयी। उन्होंने तत्काल इसकी सूचना जनरल मानेक शा को दी। मानेक शा ने इस सूचना और इस प्रस्ताव की पुष्टि दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से करनी चाही। पर दिल्ली स्थिति अमेरिकी दूतावास ने ऐसे किसी प्रस्ताव से अनभिज्ञता प्रकट की। उधर ढाका के कौंसुल जनरल ने वह प्रस्ताव सीधे बिना किसी टिप्पणी के इस्लामबाद स्थित अपने दूतावास को भेज दिया। अमेरिकी दूतावास ने वह प्रस्ताव पाक विदेश मंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को भेज दिया। भुट्टो इस प्रस्ताव को देखते ही उत्तेजित हो गए ,एक तो वह प्रस्ताव सीधे बिना पाक सेनाध्यक्ष और पाकिस्तान की सरकार से बात किये अमेरिकी कौंसुल जनरल को दिया गया था। दूसरे उन शर्तों पर सरकार में कोई विचार विमर्श ही नहीं हुआ था। भुट्टो ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। पर युद्ध तो थम ही चुका था। पाक सेना ने हथियार रख दिए थे। उन्होंने पराजय स्वीकार कर ली थी। अब जो कुछ भी होना था वह औपचारिकता थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ में पोलैंड ने , जो सोवियत खेमे का राष्ट्र था ने , युद्ध की समाप्ति पर संतोष और राहत व्यक्त करने का एक प्रस्ताव पेश किया। यह प्रस्ताव सभा ने पारित भी कर दिया। भुट्टो ने इस प्रस्ताव पर भी नाराज़गी व्यक्त की। वह यह चाहते थे कि प्रस्ताव में यह उल्लेख किया जाय कि भारत ने पाकिस्तान पर पहले आक्रमण किया था, और पाकिस्तान ने रक्षात्मक युद्ध किया। वह चाहते थे कि प्रस्ताव में शब्द ' ऐग्रेसर ' जोड़ा जाय। लेकिन प्रस्ताव में पोलैंड ने इस शब्द को बाद में भी नहीं जोड़ा। जब कि तथ्य यह थे कि आक्रमण पाकिस्तान ने किया था।
16 दिसंबर 1971 को सुबह सुबह मानेक शा का , जनरल जैकब को सन्देश मिला कि,
"Go and get a surrender."
( जाइए और आत्म समर्पण कराइये )
जैकब ने पूछा, ( उन्ही के शब्दों में ),
"On what terms ?" I asked. "I have already send
you a draft surrender document. Do I negotiate on that?"
"You know what to do, just go!" he replied.
( " किन शर्तों पर ," मैंने ( जैकब ने ) पूछा , " उन्ही आत्म समर्पण के दस्तावेज़ों पर जो मैंने आप ( मानेक शा ) को भेजे थे ?"
" आप जानते हैं , आप को क्या करना है , जाइए " )
( आगे अभी और है........ आत्म समर्पण और युद्ध के बाद )
-vss
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