1971 का भारत पाक युद्ध थम गया था. तोपों ने आग उगलना, टैंको ने भूमि को रौंदना और जवानों के बूटों की आवाज़ रुक गयी थी.भारतीय सैनिक विजयोल्लास में और पाक सैनिक हताशा में डूबे थे. दिल्ली में जश्न का माहौल था तो इस्लामाबाद में मातम. वाशिंगटन में कूटनीतिक विफलता का क्षोभ था, तो मास्को में अमेरिका की हर कूटनीति को मात देने का संतोष. चीन ने इस अवसर को विवादास्पद प्रश्न समझ कर बुद्ध की तरह मौन साध लिया था. बांग्ला देश नए विहान के पूर्व के घटाटोप अंधकार में अपने अनेक उलझनों के साथ बेचैन था। उस रात कोई भी नहीं सोया । न जनरल अरोड़ा, न जैकब , न नियाज़ी और न फरमान अली. यह रात थी 15 दिसंबर की. दुनिया के सैन्य इतिहास में यह एक महान घटना होने वाली थी. अगले दिन 16 दिसंबर को पाक सेना के आत्म समर्पण करने का कार्यक्रम था. किसी भी सैनिक के जीवन में इस से कठिन छण नहीं आ सकता है. युद्ध में या तो विजय मिले या लड़ते लड़ते मृत्यु. वीर की गति होती है यह. इसी लिए इसे वीर गति प्राप्त भी कहते हैं. पर आत्म समर्पण , तो कदापि नहीं. पर जीवन में , ' कदापि नहीं ' भी आते ही हैं. हम अपनी राह के लिए खुद कुछ न कुछ तय करते है, पर नियति कंप्यूटर के प्रोग्राम की तरह सब कुछ पहले ही तय किये बैठी रहती है. और नियति का कंप्यूटर कभी हैंग भी नहीं होता है.
नियाज़ी 90'000 की फ़ौज़ को साथ में ले कर भी कुछ नहीं कर पाये. उनके आक़ा उन्हें झूठा सन्देश दे दे कर भ्रम में डाले रहे. और अंततः जिस प्रबल मिथ्या वाद और धर्मोन्माद के बल पर उन्होंने हंस कर पाकिस्तान लिया था, वह मिथ्या उन्माद धराशायी हो गया. भुट्टो ने हज़ार साल तक लड़ने की कसम खायी थी. पर 12 दिन के ही युद्ध में उनका मुल्क टूट गया. धर्म तो एक ही रहा, पर मुल्क़ दो बन गये . यह इतिहास का अट्हास था.
जब जनरल जैकब ने 14 दिसंबर को जनरल नियाज़ी को आत्म समर्पण करने के लिए वायरलेस से सन्देश दिया था तो, जनरल नियाज़ी ने उन्हें आत्म समर्पण के बारे में तो कुछ भी उत्तर नहीं दिया, पर उन्होंने शिष्टाचार वश जनरल जैकब को दोपहर पर भोज के लिए ज़रूर आमंत्रित किया. यह औपचारिक निमंत्रण था, सो औपचारिक उत्तर भी मिला.
" शुक्रिया, फिर कभी. "
पर जैकब यह बात अपने सेना प्रमुख को बताना भूल गए थे. जब वह नियाज़ी के आत्मसमर्पण कराने संबंधी कुछ विचार विमर्श करने , अपने सीनियर जनरल अरोड़ा के कैंप में गए तो सीढ़ियों से उतरती हुयी, उन्हें श्रीमती जनरल अरोड़ा मिली. श्रीमती अरोड़ा ने कहा वह भी जनरल अरोड़ा के साथ ढाका जा रही है. उनके शब्द थे,
"My place is beside my husband,"
( मेरा स्थान मेरे पति के साथ है । )
जनरल जैकब ने जनरल से बात कर हेलीकाप्टर से जैसोर से ढाका जाने के लिए हेलिपैड पर पहुंचे तो उन्हें उनके सहायक ने एक बंद लिफाफा दिया. वह आत्म समर्पण कराने के दिशा निदेश थे. वह वही दस्तावेज़ थे जिनका ड्राफ्ट उन्होंने सेना मुख्यालय को भेजा था. उसके साथ यह अधिकार पत्र कि वह आत्म समर्पण की कार्यवाही पूरा कराने के लिए अधिकृत हैं. साथ ही एक व्यक्तिगत लिफाफा भी था. उस समय उनके पास केवल वह दस्तावेज़ और उनका एक सहायक था. हेलीकाप्टर में उन्होंने वह व्यक्तिगत लिफाफा खोला तो उसमे सेना मुख्यालय का एक पत्र था, जिसमे लिखा था,
"The government of India has approved of General Jacob having lunch with Niazi."
( भारत सरकार ने जनरल जैकब को जनरल नियाज़ी के साथ दोपहर के भोजन की अनुमति प्रदान कर दी है. )
हुआ यह था, लगातार भेजे जाने वाली सिट्रिप् ( सिचुएशन रिपोर्ट्स ) में इन्होंने ( जनरल जैकब ने ) जनरल नियाज़ी के भोजन के आमंत्रण का भी उल्लेख कर दिया था. यह अनुमति उसी उल्लेख के आधार पर सरकार ने सेना प्रमुख के कहने पर दे दी.
इन्ही परिस्थितियों में जनरल जैकब आत्मसमर्पण पत्र और अन्य दस्तावेज़ ले कर ढाका पहुंचे. वहाँ उनसे संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधि मिले और उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान सेना की वापसी और सरकार की बहाली में सहायता करने के लिए आये है. जनरल जैकब ने उनका धन्यवाद कहा और कहा कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधयों की सहायता की कोई आवश्यकता नहीं है.
ढाका में मुक्ति वाहिनी और पाक सेना में छिटफुट लड़ाई चल रही थी. पर कोई बड़ी सैनिक झड़प नहीं हो रहा था. पराजय का बोध पाक सैनिको के चेहरे से साफ़ दिख रहा था. हवाई पट्टी पर ही पाक सेना का एक ब्रिगेडियर , जनरल जैकब को मिला और वह उसी ब्रिगेडियर के साथ पाक सेना के पूर्वी मुख्यालय की ओर रवाना हुआ.
रास्ते में मुक्ति वाहिनी के लोगों ने इन सैनिक अधिकारियों को घेर लिया, और आगे नहीं बढ़ने दिया. वे कह रहे थे, हम जा रहे हैं , नियाज़ी के मुख्यालय को घेरने. जैकब ने उन्हें समझाया और बताया कि वह आत्म समर्पण कराने जा रहे है.
"He is surrendering, please let me go,"
अमेरिकी पत्रिका टाइम का एक संवाददाता वहाँ मौज़ूद था. उसने बाद में एक झूठी खबर उड़ा दी कि, जनरल जैकब ने उन लोगों को, ( मुक्ति वाहिनी के लोगों को ) गोली से मारने की धमकी थी. जब कि जैकब और उनका सहायक निःशस्त्र थे.
" TheTime magazine reporter who was there said I threatened to shoot them. I said no such thing. I didn't have a weapon to shoot them "
टाइम एक प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका है. यह विवरण इस पत्रिका के बारे में स्थापित धारणा को खंडित ही करता है.
बहुत समझाने और बहस के बाद जनरल जैकब ने कहा, कि ...
" आप की नयी सरकार कल आ रही है और नियाज़ी आत्म समर्पण करना चाहते हैं. ईश्वर के लिए हमें जाने दीजिये ".
"Look, your new government is coming in tomorrow, and Niazi wants to surrender, for God's sake let us go!"
अंत में उन्होंने इन लोगों को जाने दिया. जनरल जैकब , जनरल नियाज़ी के हेड क्वार्टर पहुंचे और दस्तावेजों को दिखाया और पढ़ कर सुनाया. तो नियाज़ी ने कहा,
" यह आत्म समर्पण बिना शर्तों के होगा. आप तो केवल युद्ध विराम और पाक सेना की वापसी पर बात करना चाहते थे. "
"You have only come here to discuss the ceasefire and the withdrawal of the Pakistani army."
जनरल जैकब ने कहा,
"General," I replied, "this is not unconditional, I have worked on this for some time. I had put in it that we would protect ethnic minorities, that we would ensure the safety of them and their families, that they would be treated with dignity as officers and men according to the Geneva Convention. So it is not unconditional. Where would you find all these conditions laid down?"
( जनरल, यह (आत्म समर्पण ) बिना शर्तों के नहीं है. मैंने इसे सब समझ कर तैयार किया है, हमें अन्य पश्चिमी पाक के सिविलियन अल्पसंख्यकों , की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी है. हम पाक सेना के सभी सैनिकों और अधिकारियों और उनके परिवारी जनों की सुरक्षा भी जेनेवा कन्वेंशन के अनुसार सुनिश्चित करेंगे. सारी शर्तें इस दस्तावेज़ में लिखी हुयी हैं. )
लेकिन नियाज़ी ने आत्म समर्पण से इनकार कर दिया.
जनरल जैकब ने सोचा कि अगर यह नहीं मानते हैं तो, इनके पास कुल 30,000 सैन्य बल है. हालांकि जैकब का अनुमान 25000 सैन्य बल का था. पर नियाज़ी ने उनसे 30,000 के सैन्य बल की बात कही.
उधर नियाज़ी चिंतित और खामोश थे. पर उनके साथ खड़े एक और मेजर जनरल फरमान अली, ने नियाज़ी को आत्म समर्पण न करने की सलाह दी. माहौल तनाव पूर्ण हो गया था. इस पर जैकब ने जो कहा, उन्ही के शब्दों में , पढ़ लीजिये,
Finally, I told him, "Look general, you surrender, I will ensure your safety, the safety of your families, ethnic minorities, everyone. You will be treated with respect. If you don't I am afraid I can take no responsibility for what happens to you or your families. What is more, we will have no other option but to order the immediate resumption of hostilities. I give you 30 minutes."
( देखिये जनरल अगर आप आत्म समर्पण कर देते हैं तो हम आप और आप के परिवारों की , एथनिक अल्पसंख्यकों ( पश्चिमी पाकिस्तानी अल्पसंख्यक ) की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे. आप के साथ सम्मान सहित व्यवहार होगा. नहीं तो मुझे डर है कि मैं आप सब के परिवारों की हिफाज़त की कोई जिम्मेदारी नहीं ले पाउँगा. इसके अतिरिक्त हमारे पास इसे शत्रु व्यवहार घोषित करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है. मैं आप को 30 मिनट का समय देता हूँ. )
इतना कह कर जैकब बाहर आ गए.
जनरल अरोड़ा, जिन्हें समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करना था, ढाका पहुँचने वाले थे. उनके पास भी वही दस्तावेज़ थे जो मेरे पास थे. हस्ताक्षर उन्ही को करना था. जैकब तनाव में थे. और उस शत्रु कैंप में अकेले , नियाज़ी को दिए गए 30 मिनट के समय के व्यतीत होने की प्रतेरक्ष कर रहे थे. बीबीसी सहित दुनिया भर के प्रेस के लोग वहाँ मौज़ूद थे और जनरल जैकब से सवाल दर सवाल पूछे जा रहे थे. जैकब के शब्दों में
" I didn't know what to say. "
( मैं समझ नहीं पाया कि क्या कहूँ )
जनरल जैकब यह भी सोच रहे थे कि अगर यह आत्म समर्पण से इनकार कर युद्ध करते हैं तो , पाक सेना के 30,000 सैन्य बल की तुलना में भारत के केवल 3,000 जवान वहाँ थे. कम से कम यह युद्ध तीन सप्ताह और खिंच जाएगा.
हमीदुर रहमान जांच आयोग ने कहा कि, जनरल नियाज़ी ने जनरल जैकब पर आरोप लगाया कि उन्होंने उन्हें ब्लैक मेल किया और मुक्ति वाहिनी को सौंप देने की धमकी दी थी.
पर जनरल जैकब ने, हमीदुर रहमान की रिपोर्ट के इस बात को तथ्यों से पर बताया है। उन्होंने कहा कि ,
" All rubbish. I did put pressure on him, but I didn't say I would hand him over to the Mukti Bahini for them to massacre. I said I would not be responsible. I never said I would hand them over. That's a lie. In fact, in the Hamidur Rehman report, one of the officers who was present said Jacob never used the word bayonet. "
( सब बकवास है , मैंने उन पर ( आत्मसमर्पण के लिए ) दबाव डाला था , पर मैंने कभी भी यह नहीं कहा था कि उन्हें मुक्ति वाहिनी के हांथों सबको मार डालने के लिए सौंप दिया जाएगा। यह झूठ है। सच तो यह है कि हमीदुर रहमान आयोग के सामने , पाक सेना का ही एक अफसर जो वहाँ मौजूद था ने , यह बयान दिया था कि जनरल जैकब ने , ऐसी धमकी वाली कोई बात ही नहीं की थी।
दर असल जनरल नियाज़ी से पाक सरकार ने पूछा था कि 30,000 की सेना रहते , आत्म समर्पण की शर्त क्यों मान ली गयी। प्रतिरोध क्यों नहीं किया। पाक सरकार इस पराजय और मुल्क़ टूटने से सकते में थी। वहाँ से कोई स्पष्ट निर्देश , नियाज़ी के बार बार , पूछने पर भी नहीं मिल रहा था। उधर मुक्ति वाहिनी उनके खून के प्यासी थी ही। युद्ध विराम , मुक्त वाहिनी पर तो लागू नहीं था। क्यों कि वह किसी देश की अनुशासित सेना तो थी नहीं। वह तो पाक सेना के बर्बर अत्याचारों से आक्रोशित बंगाली जन का सामूहिक आक्रोश था।
आधे घंटे बाद जैकब फिर नियाज़ी के कमरे में पहुंचे। आत्म समर्पण का पत्र उसी तरह नियाज़ी के टेबल पर पड़ा था।
" जनरल आप को यह प्रस्ताव ( आत्म समर्पण का ) स्वीकार है ? " जनरल जैकब ने पूछा।
नियाज़ी खामोश बने रहे। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
जनरल जैकब के शब्दों में ,
" He kept quiet, he didn't answer. I asked him three times.
So I picked it up, and held it high, and said, "I take it that it is accepted."
( वह खामोश थे और कोई उत्तर नहीं दिया। तब मैंने तीन बार यही बात दुहराई ( क्या आप को यह प्रस्ताव स्वीकार है ?
फिर मैंने वह दस्तावेज़ उठा लिया और कहा , " मैं इसे स्वीकार्य मानता हूँ " )
वह कागज़ , आत्मसमर्पण का पत्र ( The instrument of surrender ) था।
सभी पाक सैनिक अधिकारियों की आँखों में आंसू थे। जैकब ने उनसे न तो कुछ कहा और न ही कोई सलाह दी। सिवाय आत्म समर्पण स्वीकार करने के और कोई बात नहीं हुयी। ढाका में जिस आत्म समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर हुए थे , उसके दो सप्ताह बाद , कोलकाता में पुनः दूसरे नए समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किये गए। ढाका वाला पत्र गलत ड्राफ्ट हो गया था।
नियाज़ी ने कहा , वह अपने कार्यालय में ही आत्म समर्पण करेंगे। यहीं उन्हें हिरासत में लिया जाय। लेकिन जैकब ने इस से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि , नहीं , समर्पण की पूरी तैयारी , ढाका रेस कोर्स मैदान में की गयी है। वहाँ आप को ( नियाज़ी को ) गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया जाएगा। और पूरे बांग्ला जन समूह के सामने यह कार्यवाही होगी। ऐसे ही निर्देश जैकब को मिले भी थे।
नियाज़ी ने कहा , कि वह वहाँ समर्पण नहीं करेंगे।
तब जैकब ने कहा , "आप वैसे ही करेंगे जैसा मैंने कहा है। "
जनरल नियाज़ी और जैकब, नियाज़ी के वाहन के साथ एयरपोर्ट के लिए निकले ही थे कि मुक्ति वाहिनी के लोग एकत्र हो कर नियाज़ी को सौंपे जाने की मांग करने लगे। किसी तरह से उन्हें वहाँ से समझा कर निकाल लिया गया। मुक्ति वाहिनी के लोग एयरपोर्ट पर भी नियाज़ी को सौंपे जाने की मांग करते हुए एकत्र थे। एयरपोर्ट पर जनरल अरोड़ा आ रहे थे। वहीं से उनके साथ सब को आत्म समर्पण पत्र पर दस्तखत के लिए साथ जाना था। एयरपोर्ट पर जनरल अरोड़ा और उनकी पत्नी भी आईं। वहीं से एक वाहन में जनरल अरोड़ा , जनरल नियाज़ी और श्रीमती अरोड़ा एक ही वाहन में रेस कोर्स मैदान में जहां यह कार्यवाही होनी थी के लिए रवाना हुए। जैकब पीछे थे। इसके पहले मुक्ति वाहिनी ने नियाज़ी को पकड़ना चाहा था पर किसी तरह से जल्दी में उन्हें घेरे में ले कर निकाल दिया गया। अगर नियाज़ी को भीड़ मार देती तो यह बहुत बुरा होता।
आत्म समर्पण के इस आयोजन का विवरण गाविन यंग जो ' इंडिपेंडेंट लंदन ' के युद्ध रिपोर्टर थे ने इसे विश्व के सैन्य इतिहास का अनोखा समर्पण बताया। यंग को इस युद्ध की रिपोर्टिंग को अत्यंत उत्कृष्टता से कवर करने के लिए आई पी सी का इंटरनेशनल रिपोर्टर ऑफ़ द ईयर का पुरस्कार मिला था। जैसा कि सब तय था। वैसा ही हुआ। हालांकि नियाज़ी के पास पर्याप्त सेना थी और अगर वह युद्ध करे तो , वह युद्ध थोड़ा लम्बा खिंच जाता पर उनका मनोबल टूट गया था। इसी बात की और पाक के हमीदुर रहमान जांच आयोग ने भी इशारा किया और नियाज़ी की आलोचना भी की। आयोग ने उनके द्वारा गार्ड ऑफ़ ऑनर लेने , और जनता के बीच आत्म समर्पण की कार्यवाही को भी गलत बताया। आयोग का निष्कर्ष था कि अगर वह ( नियाज़ी ) आत्म समर्पण के बजाय लड़े होते तो , संयुक्त राष्ट्र संघ दबाव दे देता और इतिहास दूसरा करवट ले लेता। सोवियत रूस को यह अंदाज़ा था। इसी लिए वह चाहता था कि जो भी हो जल्दी हो। इसी लिए मानेक शा में ढाका छोड़ कर सभी नगरों को कब्ज़े में लेने की बात की थी। ताकि अगर संयुक्त राष्ट्र हस्तक्षेप भी करता है तो भारत के अधिकार में अधिकतर क्षेत्र और नगर रहें।
इस युद्ध में भारत के 1400 सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए और 4000 सैनिक घायल हुए। कुल 93,000 पाक सैनिकों को युद्ध बंदी बनाया गया। अमर जवान ज्योति पर उल्टी राइफल जिस अनाम सैनिक की खड़ी है , वह जैसोर के मोर्चे पर शहीद हुआ था। यह वीरता की एक अमर गाथा है। हमें इनका बलिदान नहीं भूलना चाहिए।
-vss
( आगे अभी और है.…लोंगोवाल का युद्ध - पश्चिमी मोर्चे पर …)
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