Wednesday, 5 August 2015

पॉर्न साइट्स पर प्रतिबन्ध और फिर प्रतिबन्ध पर प्रतिबन्ध - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह




भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थ बताये गए हैं. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. धर्म पर तो हम रोज़ कुश्ती लड़ते ही रहते ही है. अर्थ के बिना, सब व्यर्थ ही है. काम पर हम चुपके से भले बात कर लें पर खुल कर बात करने से थोड़ा कतराते हैं. मोक्ष के तो कई ठेकेदार अपने अपने पैकेज ले कर समाज में विचरते ही हैं. यह सारे पुरुषार्थ अलग अलग अवश्य परिभाषित किये गए हैं पर सब एक दूसरे के उदेशय और चिंतन को प्रभावित करते हैं. अर्थ में धर्म का समावेश रहे या न रहे, पर धर्म का अपना अलग ही अर्थशास्त्र है. अर्थ से जब धर्म क्षीण हो जाता है तो जो परिणाम होता है, वह सब के सामने ही है. काम में धर्म का लोप और अर्थ का प्रवेश तो काम की विकृत मानसिकता को ही जन्म देता है, और तीनों में समन्वय ही मोक्ष को सुगम बनाता है. मैं बहुत गंभीर दार्शनिक बात नहीं कहने जा रहा हूँ. मैं आप को इस संस्कृति के समन्वयवाद को ही बता रहा है.समन्वय और संतुलन का अभाव ही जीवन को मार्ग से भटका देता है.

काम का इन पुरुषाथों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है. काम को सेक्स का अनुवाद कर के न देखें.  अंग्रेज़ी का शब्द सेक्स, काम का सही अनुवाद नहीं है. काम का अनुवाद अंग्रेज़ी में क्या होगा, यह वह मित्र ही बताएं जिनकी अंग्रेज़ी बहुत अच्छी हो. भारतीय परंपरा में, काम कभी भी घृणित , वर्जित या, हेय दृष्टि से नहीं समझा  गया. यह कभी शैतान का कार्य नहीं माना गया है. बल्कि इसके स्वामी को भी देवता का स्थान प्राप्त है. कामदेव इस के देवता है और रति, कामदेव की पत्नी. यह युगल सृष्टि में काम का प्रतीक है. एक कथा के अनुसार साधनारत शिव को काम ने पुष्प वाण से बींध दिया था ,  अतः उत्तेजित और क्रोधित शिव ने कामदेव को ही भस्म कर दिया. जब सृष्टि से काम का ही लोप हो गया, तो जगत की निस्सारिता का भान हुआ. शिव ने पुनः कामदेव को  जीवित किया , पर उनका देह रूप समाप्त हो गया और वह अदेह ही व्याप्त रहे. इस लिए उनका एक नाम पड़ा, अनंग. जिसका कोई अंग न हो . इनका एक नाम है मन्मथ.  मन को मथ देने वाला. इसी लिए इनके भस्म करने वाले शिव का एक नाम मन्मथारि भी पड़ा है .

काम के बारे में  संसार में किसी भी धर्म और संस्कृति में वह उदात्त भाव नहीं मिलता है , जो प्राचीन भारतीय वांग्मय में उसे प्राप्त है. कामसूत्र सबसे गंभीर और इस विषय पर लिखा गया सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ है. यह सेक्स निर्देशिका या एरोटिक साहित्य नहीं है, बल्कि काम सहित जीवन के सभी पहलुओं पर चर्चा करने  वाली रचना है.   वात्स्यायन इसके रचयिता है.  एक धारणा यह भी है कि,  इसकी रचना कौटिल्य ने की है. कहा जाता है , चाणक्य ने कौटिल्य के नाम से अर्थ शास्त्र , विष्णु शर्मा के नाम से पञ्च तंत्र, और वात्स्यायन के नाम से कामसूत्र की रचना की थी. इन तीनों रचनाओं में राज शास्त्र की बारीकियां मिलती है. यह सभी ग्रन्थ राज कुमारों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित थे।  इन महान ग्रंथों के अतिरिक्त, संस्कृत साहित्य में भी काम पर बहुत कुछ लिखा गया है. कालिदास का कुमार संभव, तो पार्वती के अद्भुत और साहसिक नखशिर वर्णन के लिए बहुत ही चर्चित है. कहा जाता है कि अत्यंत लैंगिक वर्णन से क्रोधित हो कर पार्वती ने कालिदास को श्राप दे दिया था और कालिदास को कुष्ठ हो गया था . मध्यकाल का साहित्य और विशेष कर रीतिकाल के कुछ साहित्य को तो आज कल के आलोचक अश्लील ही घोषित कर देंगे. जयदेव और प्रख्यात मैथिल कवि विद्यापति से ले कर उत्तर रीति काल तक यह रसिक परम्परा अबाध गति से चलती रही। 

काम का सबसे जीवंत और अद्भुत मूर्तिशिल्प का प्रदर्शन हुआ है खजुराहो के शिव मंदिरों के बाहरी दीवारों पर.  मिथुन युगल की विभिन्न मुद्राओं से अलंकृत यह मंदिर संकुल, विश्व धरोहर है. शिव जो लिंग रूप में ही सामान्यतः पूजे जाते हैं और यह उनका प्रतीक पूजन है स्वयं काम के उदात्त रूप के एक उदाहरण हैं और  स्वयं इस पुरुषार्थ की महिमा प्रमाणित करते हैं. खजुराहों के अतिरिक्त अनेक प्राचीन शिव मंदिरों में शिव पार्वती की युगल मूर्तियां बहुतायत से उपलब्ध है. नए मंदिरों में अब ऐसी मूर्तियां उत्कीर्ण नहीं की जा रही है, पर प्राचीन मूर्तिकला का यह एक पसंदीदा विषय रहा है. काम के बारे में प्राचीन यूनान में भी ऐसी ही देव परम्परा मिलती है. यूनान की सभ्यता में भी काम देव के तर्ज़ पर काम के देवता की परिकल्पना की गयी है. अपोलो, वीनस आदि यूनानी देवोँ की बहुत आकर्षक और भव्य मूर्तियां मिलती है. यह इस बात को प्रमाणित करता है कि मूर्ति कला केवल भारतीय परम्परा में ही नहीं है. अपितु यह एक कला है जो कौशल से विभिन्न रूपों में पाषाण पर अपनी कल्पना को आकार देती रहती है.

सेमेटिक धर्मों या संस्कृति में काम के प्रति ऐसे उदात्त भाव का अभाव है. सेमेटिक अवधारणा के अनुसार स्वर्गोद्यान में आदम और जो पहले पैगम्बर थे, द्वारा वर्जित फल , बाइबिल के अनुसार सेव, और कुरआन के अनुसार गेंहूँ, खाने से , उन्हें लज्जा का एहसास हुआ, और ईश्वर ने उन्हें धरती पर जाने का आदेश दिया. आदम और हव्वा दोनों ही धरती पर आये, और आदम के नस्ल आदमी का जन्म हुआ. पर सनातन धर्म में यह कथा नहीं है. स्वर्ग से बहिष्कृत होने के कारण , काम जनित लज्जा, हेय मानी गयी और गुनाह फितरत ए आदम है ,का भाव अवचेतन में बैठा रहा . इसी लिए इन धर्मों में काम को कभी कभी शैतानी कृत्य से भी जोड़ कर देखा जाता रहा है. काम के बारे में खुली चर्चा का तो प्रश्न ही नहीं था. पर इस विषय पर चर्चा न होती हो ऐसा भी नहीं था. चर्चा न होने से अज्ञात जिज्ञासा का जो आवरण इसके इर्द गिर्द पनपता गया उस से इसके बारे में विकृत सोच ही विकसित हुयी. परिणामतः यौन जनित अधिकाँश क्रिया कलाप कालान्तर में समाज में पाप की श्रेणी में आ गए.  लोग इस पर स्वस्थ चर्चा से कतराने लगे और यह एक प्रकार का वर्जित क्षेत्र मान लिया गया. भारतीय परंपरा में काम जनित स्खलन न तो पाप रहा है और न ही पुण्य . यह एक प्रकार का  सामान्य क्रिया कलाप ही रहा है। ऋषि  विश्वामित्र का मेनका के साथ काम सम्बन्ध , और इस के फलस्वरूप शकुंतला का जन्म , कुंती का नियोग से 4 पुत्रों को उत्पन्न करना, पराशर का काम सम्बन्ध से व्यास का उत्पन्न होना, आदि अनेक उदाहरण हैं जो प्राचीन वांग्मय की समृद्धि परंपरा के आधार है. इन संबंधों को ले कर उपरोक्त महानुभावों पर किसी ने कभी विपरीत टिप्पणी नहीं की और उनके चरित्र का आकलन इन आधारों पर नहीं किया गया ,  और न ही इन्हें पापी माना गया. इसका मूल कारण काम को स्वाभाविक मानवीय प्रवित्ति ही माना गया है  इसे सहज भाव से ही ग्रहण किया गया. यहां तक कि विवाह पूर्व सम्बन्ध भी विवाह के आठ प्रकारों में से एक  प्रकार गन्धर्व विवाह के रूप में भी विधानतः स्वीकार किया गया। शकुंतला का दुष्यंत के साथ गांधर्व विवाह ही था , जिस से भरत उत्पन हुए. इन्ही के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा.   

लेकिन काम के प्रति समाज का दृष्टिकोण सदैव ऐसा ही नहीं रहा. आधुनिक काल के पोर्न साइट्स से इसकी तुलना कर मत देखिये. पोर्न साइट्स काम नहीं है वह कामेच्छा यानी सेक्स का सर्वाधिक विकृत रूप है. यह विकृति पिछले 35 / 40 सालों में जब संचार क्रान्ति हुयी तो और बढ़ी. इस क्रान्ति का यह एक अपशिष्ट है. यह भी एक प्रकार का बाज़ार वाद है। पूंजी के प्रवाह और लाभ कमाने की इच्छा ने इस ट्रेड में नए नए निवेश के साथ नए नए विकृत प्रयोग करने शुरू किये. इसका घातक परिणाम भी सामने आया . सबसे बुरा परिणाम तो यह हुआ कि किशोर जिनके सामने हम सेक्स की बात करने से बचते रहते हैं,  नेट और ऐसी ही साइट्स से अपना ज्ञान वर्धन करने लगे.  परिणामतः यौन अपराधों में वृद्धि हुयी . इन साइट्स ने जो माया जाल बुना उसमे सेक्स शिक्षा जैसी कोई बात तो थी ही नहीं  थी तो केवल विकृत सेक्स की तुष्टि. अरबों डॉलर का यह व्यापार पूरी दुनियां को अपने चंगुल में ले चुका है। अभी सरकार ने इसे प्रतिबंधित किया पर दो ही दिन में यह प्रतिबन्ध वापस लेना पड़ा. कोई हैरानी की बात नहीं कि इस प्रतिबन्ध वापसी के पीछे भी कोई अर्थ शास्त्र छिपा हो.

प्रतिबन्ध और दंड से कोई प्रवित्ति और अपराध समाप्त नहीं किया जा सकता है. लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं है कि अनुचित प्रवित्ति और अपराधों पर प्रतिबन्ध और दंड भी समाप्त कर दिए जाएँ .पोर्न साइट्स पर प्रतिबन्ध एक स्वागतयोग्य कदम था. पर अचानक इसे लागू करना और फिर शिथिल करना, अनेक संदेहों को जन्म देता है. सरकार का यह कदम एक अपरिपक्व कदम है. क्या ऐसा कोई अध्ययन हुआ है जिस से इन साइट्स की कमाई का आंकड़ा निकाला जा सके ? क्यों कि यही अर्थशास्त्र भी ऐसे साइट्स के प्रतिबंधित करने के पीछे एक बाधा है.  वयस्क और परिपक्व लोग ऐसी साइट्स से भले न बहकेँ और वे इसके माध्यम से अपनी कुंठित और दमित इच्छा की पूर्ति भले कर लें ,  पर इसका बहुत बुरा प्रभाव किशोर और युवा होते तबके पर अवश्य पड़ता है. अब सरकार ने चाइल्ड पोर्न को छोड़ कर सभी साइट्स प्रतिबन्ध मुक्त कर दिए है. इन साइट्स का प्रभाव किस किस आयु वर्ग पर क्या क्या और कितना पड़ रहा है, इसका अध्ययन समाजशास्त्रियों को करना चाहिए.

संयुक्त परिवार के टूटने और एकल परिवार के विकास ने सब को अलग अलग कम्पार्टमेंट में बाँट दिया है। अब हर कोई अकेले है और अकेले नहीं भी है. हाँथ में रखा स्मार्ट फ़ोन उसे पूरी दुनिया से जोड़े रहता है पर वह अपने असल और जीवंत परिवेश से कटा रहता है.  इस आभासी आक्रमण की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि, लोग पढ़ने लिखने और बहस करने की आदत से दूर हो रहे है. अब किसी पुस्तक के उद्धरण नहीं दिए जाते हैं बल्कि लिंक्स साझा किये जाते है.  हालांकि नेट पर प्रचुर सामग्री उपलब्ध है  पर नेट , पुस्तकों का विकल्प नहीं है. व्यस्त ज़िंदगी के कारण और पति पत्नी के कामकाजी होने के कारण किशोर बच्चे या तो उपेक्षित हो रहे हैं या वे अलग थलग पड़ते जा रहे हैं. ऐसे किशोर जब नेट की दुनिया में प्रवेश करते हैं तो इस तिलस्म में कहीं भीतर तक पैठते जाते हैं. इसी में कहीं से पोर्न साईट खुल गयी तो वह उन खतरों से अनजान उसी माया लोक में चले जाते हैं. असल खतरा यह है. ऐसे घरों में माता पिता , अपनी संतान के मित्र नहीं बन पाते हैं. उनका व्यवहार एक बोर्डिंग हाउस के  वार्डेन सरीखा रहता है। परस्पर संवाद का अभाव भी एक बड़ा कारण है. संस्कृत की एक सूक्ति है , " प्राप्तेतु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्र वत आचरेत्  ! बच्चों के 16  वर्ष की आयु पूरी होने पर उनके साथ मित्र के सामान आचरण करना चाहिए। पर बच्चों पर कैरियर का जो भारी दबाव और माता पिता की अतिव्यस्तता है उसका भी यह एक परिणाम है।  हालांकि  मैंने कोई अध्ययन इस विषय पर नहीं किया है पर मेरा यह ऑब्जरवेशन है. हो सकता है आप की धारणा मुझसे अलग हो.

काम का उदात्त स्वरुप बना रहे , उसका स्वागत है, पर काम का कुंठित, विकृत और नशे की तरह लपेट लेने वाली यह आदत किशोर वय के लोगों के लिए बहुत हानिकारक होगी. सरकार के सामने अलग प्राथमिकताएं होतीं हैं और परिवार के सामने अलग. यह दायित्व माता पिता का भी है कि वह ऐसे साइट्स से बच्चों का ध्यान हटायें. इसका कोई एक फार्मूला नहीं तय हो सकता है. क्यों कि हर परिवार का परिवेश और हर व्यक्ति की सोच अलग अलग होती है.

( विजय शंकर सिंह )

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