Monday, 10 August 2015

पाक प्रायोजित आतंकवाद - एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन - 3 - 1971 के युद्ध की पीठिका / विजय शंकर सिंह .




1971 में भारत पाक का जो युद्ध हुआ था, वह पिछले दो युद्धों का ही नया सीक्वेल था. पर आधुनिक भारत के सैन्य इतिहास में यह बेहद उल्लेखनीय युद्ध था. इस युद्ध में पाकिस्तान का बहुत ही नुकसान हुआ. वह केवल विघटित हुआ बल्कि वह उस अवधारणा जिस पर पाकिस्तान बना था, खंड खंड हो गयी. अपने गठन के 25 वर्षों के भीतर ही धर्म का तिलस्म टूट गया.

1971 के पूर्व बाँग्ला देश , पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था. जिस मुस्लिम लीग ( 1906 ) ने पाकिस्तान की मांग रखी और सफल हुयी उसके संस्थापकों में आगा खान के साथ , ढाका के नवाब भी शामिल थे. 16 अगस्त 1946 को पाकिस्तान की मांग के लिए मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही दिवस,  डायरेक्ट एक्शन डे मनाने की घोषणा की थी.  कलकत्ता में उस दिन जो भीषण रक्तपात और साम्प्रदायिक दंगा हुआ था, उसने बचे खुचे साम्प्रदायिक सद्भाव को भी तहस नहस कर दिया. पाकिस्तान बनने की कितनी उद्दाम लालसा थी बंगाली मुसलमानों में यह डाइरेक्ट एक्शन डे में मुस्लिमों के उत्साह को देख कर समझा जा सकता था . जितनी ही उम्मीदों के साथ बंगाल के मुसलमान , पाकिस्तान चाह रहे थे, उतनी जल्दी ही इस पाकिस्तान से उनका मोह भंग हुआ. पाकिस्तान का राज धर्म, इस्लाम घोषित हुआ था . हालांकि मुहम्मद अली जिन्ना ने बंटवारे के तुरंत बाद 14 अगस्त को ही , यह कहा दिया था कि पाकिस्तान में सभी धर्मों के लोगों को अपने अपने धर्म के अनुसार उपासना करने  मानने की स्वतंत्रता रहेगी.  पर वह घोषणा जिन्ना के जीवनकाल में ही हवा हो गयी.  नज़्म सेठी, पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित और उदारमना पत्रकार है. वह कहते हैं कि पूर्वी पाकिस्तान की उपेक्षा तो पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही शुरू हो गयी थी .  पाकिस्तान की राज भाषा उर्दू बनी. जब कि वहाँ प्रांतवार भाषाएँ, पंजाब की पंजाबी, सिंध की सिंधी, बलोचिस्तान की बलूच, नार्थ वेस्ट फ्रंटियर की पश्तो और पूर्वी पाक की बांग्ला थी.  उर्दू मूलतः सैन्य शिविरों में विकसित, सभी भाषाओं से कुछ कुछ ले कर, दक्षिण भारत में जन्मी एक भाषा है। उर्दू का शाब्दिक अर्थ ही लश्कर होता है. हैदराबाद इसकी जन्म स्थली मानी जाती है.  इसी लिए इसे दकनी भी कहते हैं . पर कालान्तर में जब फारसी , जो मुग़ल काल की अधिकृत राजभाषा थी, का पराभव शुरू हुआ तो, उर्दू ने उसका स्थान ले लिया. मूलतः यह उत्तर भारत की भाषा थी. आधुनिक हिंदी का स्वरुप अभी शैशव में था. मुस्लिम लीग के सारे बड़े नेता उत्तर भारत से और अलीगढ स्कूल से निकले हुए थे, इस लिए उर्दू उनकी पसंदीदा भाषा बनी. मुस्लिम लीग ने आज़ादी के बाद उर्दू को पाकिस्तान में सर्वव्यापक होने के कारण , वहाँ की राज भाषा माना. उर्दू , पश्चिमी पाकिस्तान में तो स्वीकार कर ली गयी, पर उसे पूर्वी पाक में विरोध सहना पड़ा.

पूर्वी पाक की भाषा बाँग्ला थी. जिसका इतिहास और साहित्य उर्दू की तुलना में अधिक समृद्ध था. उर्दू मुख्यतः दरबारी भाषा मानी जाती थी. पद्य की तुलना में इस भाषा में गद्य कम लिखे गए थे. हालांकि लगभग सभी साहित्यों में पद्य प्रमुखता से मिलते हैं।  उर्दू में सम्प्रेषण की गज़ब की क्षमता है.  बाँग्ला भाषा , बंगाल के पुनर्जागरण, और अनेक महान साहित्यकारों के आविर्भाव के कारण अधिक लोकप्रिय भाषा थी. बाँग्ला समाज मूलतः अपनी जड़ों और परम्पराओं के प्रति बहुत सचेत होता है.  यह स्थिति पश्चिमी क्षेत्रों में कम ही मिलती है. पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बांगला भाषा के सम्बन्ध में व्यापक आंदोलन चलाया और बाँग्ला ही पूर्वी पाक की अधिकृत भाषा बनी. यह भाषाई टकराव जब बढ़ा तो पाकिस्तान के दोनों भागों में रिश्ते असहज होने लगे. इस मन मुटाव का परिणाम पूर्वी पाकिस्तान को दिए जाने वाले धन राशि के बंटवारे पर भी पड़ा. पश्चिमी पाक में पाकिस्तान की अस्थायी राजधानी प्रारम्भ में कराची  बनी थी .  जिन्ना यहीं  पहले गवर्नर जनरल बन कर आये थे.  बाद में नयी राजधानी रावलपिंडी से कुछ दूर बनी ,  जिसका नाम रखा गया इस्लामाबाद.  इस प्रकार राजधानी सिंध से हट कर पंजाब में आयी.  बंटवारे के बाद, पंजाब के दो टुकड़े होने के कारण विस्थापन का सबसे अधिक दंश पंजाब ने ही झेला था.  विश्व इतिहास में किसी आबादी के  विस्थापन का इतना बड़ा उदाहरण कहीं नहीं मिलता है.  पंजाब में राजधानी होने और बंटवारे में सबसे अधिक भूमिका निभाने के कारण पंजाब का सभी प्रान्तों पर वर्चस्व हो गया.  इस कारण सेना, पुलिस, प्रशासन और राजनीति में पंजाबियों का दबदबा बना रहा. इस पंजाबी वर्चस्व के कारण पूर्वी पाक उपेक्षित होता गया. ऐसा ही पक्षपात राजस्व के बंटवारे में भी किया जाता रहा. पूर्वी पाक जूट का बड़ा निर्यातक था, पर उसके द्वारा निर्यात किये गए राजस्व पर भी उसकी उपेक्षा होती रही. इसी समय पाकिस्तान में चुनाव हुए और इस चुनाव में पूर्वी पाक की पार्टी अवामी लीग , जिसके नेता, शेख मुजीबुर्रहमान थे को बहुमत मिला.  पर उन्हें सरकार बनाने नहीं दिया गया.  यह पश्चिमी पाक प्रभुत्व का ही परिणाम था.  इस उपेक्षा को बाँग्ला सम्मान को जोड़ कर देखा गया. परिणाम स्वरुप पूरे पूर्वी पाक में आंदोलनों और दमन का दौर शुरू हो गया.

पूर्वी पाक में हो रहे आन्दोलनों को दबाने और क़ानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस कम पड़ गयी. पुलिस में भी जो बंगाली नवजवान थे वे भी इस जागृति से अछूते नहीं रहे. तब पाक सेना ने आन्दोलनों से निपटने के लिए कमर कसी. सेना ने बदले की कार्यवाही से काम करना शुरू किया, परिणामतः सामूहिक हत्याओं और बलात्कार की घटनाएं होने लगी. पाक सेना ने पूर्वी पाक में जो व्यवहार किया वह शत्रु सेना भी नहीं करती है. सेना का व्यवहार मध्ययुगीन सैनिक अभियानों की तरह था. जिन्होंने सारे अन्तर्राष्ट्ररीय मानक ताक़ पर रख कर दमन चक्र चलाना शुरू किया. इस व्यापक उत्पीड़न के कारण पूर्वी पाक से भारी संख्या में बंगालियों ने पलायन करना शुरू कर दिया.  भारत , पूर्वी पाक के चारों तरफ स्थित है,  इस लिए सारे शरणार्थी भारत के प्रांत , पश्चिम बंगाल , आसाम और त्रिपुरा में शरण के लिए पहुंचे.  भारत के सामने यह विकट समस्या खड़ी हो गयी . शरणार्थियों के लगातार आने से स्थिति इतनी अनियांत्रित हो गयी कि दुनिया भर के देशों का ध्यान इस विकट समस्या की और आकर्षित हुआ. अब यह समस्या केवल भारत पाक की नहीं रह गयी थी, बल्कि विश्व के लिए भी  चिंताजनक बन गयी थी. 1971 का युद्ध प्रत्यक्षतः तो भारत पाक के बीच हुआ था पर दुनिया के अन्य देश भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस से जुड़े  रहे.

मई 1971 में भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को पूर्वी बंगाल में पाक सेना द्वारा की जा रही हिंसा और दमन का पूरा व्योरा भेजा.  उन्होंने यह भी अवगत कराया कि इस दमन चक्र के कारण भारी संख्या में बंगालियों का पलायन हो रहा है.  अमेरिका में भारत के तत्कालीन राजदूत एल के झा थे. उन्होंने अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट हेनरी किसिंगर जो भारत विरोधी मानसिकता का था, से कहा कि , अगर शरणार्थियों का यह रेला नहीं रुका तो भारत को मज़बूर हो कर उनमें से कुछ को गुरिल्ला लड़ाई के लिए भेजना होगा. झा यह चाहते थे किसिंगर पाकिस्तान को समझाने के लिए अपने संबंधों का उचित प्रयोग करें और यह सामूहिक आगमन रोकने की कोशिश करें. जब यह बात किसिंगर ने , राष्ट्रपति निक्सन को बतायी तो निक्सन ने कहा कि -
"अगर भारत ने ऐसा किया तो , 
सच में हम,  उनकी आर्थिक सहायता बंद कर देंगे. "
किसिंगर से उन्होंने यही बात एल के झा को बताने के लिए कहा.  कुछ ही दिनों के बाद , निक्सन ने कहा कि उन्हें पूरी सूचना है कि भारत एक युद्ध की तैयारी कर रहा है. भारत एक आक्रामक युद्ध लड़ेगा. यह सूचना भी सी आई के सूत्रों के आधार पर निक्सन को थी.  अमेरिका समझ गया था कि भारत पाक के बीच एक व्यापक युद्ध हो सकता है.

उसी साल विश्व कूटनीति में भी कुछ अनोखा घट रहा था.  चीन अब तक विश्व बिरादरी से बाहर था.  अमेरिका , च्यांग काई शेक वाले फार्मूसा द्वीप को , जिसे ताइवान भी कहते हैं,  को ही असल चीन मानता था। पर राजनीति और कूटनीति में कुछ भी स्थायी नहीं रहता है. निक्सन लाल चीन से सम्बन्ध बढ़ाना चाहते थे. किसिंगर इस अभियान को अंजाम देने में जुटे थे. फॉरेन रिलेशंस इन यूनाइटेड स्टेट्स का खंड 11 जो 929 पृष्ठों का है , में इन कूटनीतिक संबंधों की अंतरकथा मिलती है. अमेरिका , पाकिस्तान के प्रति सदय था. उसकी पूरी सहानुभूति पाकिस्तान के प्रति थी.  इसका प्रथम कारण यह था कि पाकिस्तान अमेरिकी नेतृत्व वाली सैनिक संधि CENTO और SEATO का सदस्य था और दूसरे अमेरिका यह सोचता था कि अगर भारत जीत गया तो, इस क्षेत्र में सोवियत रूस का प्रभाव बढ़ जाएगा. रूस उस समय अमेरिका का सामरिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्वी था.  अमेरिका , भारत को सोवियत खेमे का सदस्य मानता था, जब कि भारत किसी खेमे में नहीं था.  वह गुट निरपेक्ष देशों के संगठन NAM में सम्मिलित था. अमेरिका अच्छी तरह जानता था कि भारत इस युद्ध में विजयी होगा. इस लिए वह नहीं चाहता था कि भारत पाक के बीच कोई युद्ध हो.  पर युद्ध होने की दशा में उसका पाकिस्तान की तरफ खड़ा होना असंदिग्ध था.

28 मार्च 1971 को अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट, बिल रोजर , जो वहाँ का विदेश मंत्री होता है , को ढाका स्थित अमेरिकन कांसुलेट से एक सन्देश प्राप्त हुआ. इस सन्देश में लिखा था, --
" हमारी सरकार ( अमेरिकी सरकार ) लोकतंत्र का दमन रोकने में असफल रही. हमारी सरकार हो रहे अत्याचारों को रोकने में असफल रही. हमारी सरकार यहां के नागरिकों के उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रभावशाली कदम उठाने में असफल रही, बल्कि वह पश्चिमी पाकिस्तान समर्थित सरकार के पक्ष में खड़ी दिखी.  हम स्वतंत्र विश्व के अगुआ है.  एक प्रोफेशन जन सेवक होने के नाते अमेरिकी सरकार की इस आँख मूंदने वाली नीति के प्रति अपना विरोध प्रकट करते हैं.  हमें स्वतंत्र विश्व के नैतिक रूप से अगुआ होने के कारण इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए."
मूल सन्देश इस प्रकार है.
( ‘Our government has failed to denounce the suppression of democracy. Our government has failed to denounce atrocities. Our government has failed to take forceful measures to protect its citizens while at the same time bending over backwards to placate the West Pakistan dominated government… We, as professional public servants express our dissent with current policy and fervently hope that our true and lasting interests here can be defined and our policies redirected in order to salvage our nation’s position as a moral leader of the free world.’ )
इस सन्देश ने अमेरिका के विदेश मंत्रालय को सक्रिय कर दिया. द्वितीय  विश्व युद्ध के बाद जब यूरोप की सभी बड़ी ताक़तें कमज़ोर पड़ गयीं तो अमेरिका ने खुद को विश्व का नैतिक रूप से अगुआ मान लिया था.

भारत पाकिस्तान के विवाद और अमेरिका के इस तनाव में रूचि लेने के कारण चीन भी सक्रिय हो गया. अमेरिका को भी भारत के  विरुद्ध चीन की मदद चाहिए थी.  पाकिस्तान , जो पहले से ही चीन का मित्र था ने, इस अवसर पर अमेरिका और चीन को नज़दीक लाने में सक्रिय भूमिका निभाने की पहल की .  उसे लगा कि अमेरिका और चीन की संयुक्त शक्ति मिल कर उसे संभावित युद्ध में सहायता करेगी.  चीन से सम्बन्ध सुधार हेतु निक्सन के विशेष दूत, हेनरी किसिंगर जुलाई 1971 में बीजिंग पहुंचे.  वहाँ वह चीन  के प्रधान मंत्री चाउ एन लाइ से मिले.  यह वही चाउ एन लाइ थे,  जिन्होंने कभी , नेहरू से पंचशील का पाठ पढ़ा था, और हिंदी चीनी भाई भाई का राग अलापा था. चाउ एन लाइ ने किसिंगर से कहा,
"
हमारी राय में, यदि भारत ने ऐसे ही विश्व जनमत का निरादर जारी रखा तो, और अपनी हरकतें चालू रखीं तो, हम पाकिस्तान की तरफ खड़े होंगे. पूरे विश्व को हम बता देना चाहते हैं कि यदि वे ( भारतीय ) ऐसे ही उत्तेजना फैलाते रहे तो हम चैन से नहीं बैठेंगे. "
( “In our opinion, if India continues on its present course in disregard of world opinion, it will continue to go on recklessly. We, however, support the stand of Pakistan. This is known to the world. If they [the Indians] are bent on provoking such a situation, then we cannot sit idly by.’ )
इस पर किसिंगर ने उत्तर दिया, कि चीन को यह ज्ञात होना चाहिए कि हम इस मामले में पाकिस्तान के साथ है.
इन सारी कूटनीतिक गहमागहमी से यह निश्चित हो गया कि पाकिस्तान के साथ चीन तो खड़ा है ही और अब अमेरिका भी उसके साथ गया है.

अब भारत को भी कूटनीतिक समर्थन की आवश्यकता थी. प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने पश्चिमी देशों का सघन दौरा शुरू किया और वर्तमान स्थिति से सबको अवगत कराया. इसी क्रम में वे 4 और 5 नवम्बर को अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन से भी मिलीं और उन्हें शरणार्थी समस्या और पूर्वी बंगाल के बंगालियों के व्यापक अमानवीय उत्पीड़न से अवगत कराया.  लेकिन निक्सन ने सीधे उनसे कह दिया कि भारतीय उप महाद्वीप में किसी युद्ध की संभावना का कोई प्रश्न ही नहीं है.  जब कि उन्हें पक्का पता था कि भारत पाक में युद्ध आसन्न है और ज़रूर होगा.  वह युद्ध होगा ही नहीं का,  सिद्धांत प्रस्तुत कर स्वयं को निरपेक्ष दिखाना चाहते थे.  जब कि हेनरी किसिंगर साफ़ कह चुके थे कि युद्ध की स्थिति में वह पाकिस्तान के साथ रहेंगे.  दूसरे दिन निक्सन और किसिंगर ने स्थिति का मूल्यांकन किया, और किसिंगर ने  भारत के लिए अत्यंत अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए निक्सन से कहा कि,
"
भारतीय कुछ भी हो, बास्टर्ड हैं, वह युद्ध की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं. "
( ‘The Indians are bastards anyway. They are plotting a war.’ )


राजनीति और कूटनीति में कोई भी तो स्थायी मित्र होता है और ही शत्रु. यहां स्वार्थ और स्वहित का ही भाव महत्वपूर्ण होता है. महाभारत के युद्ध में नकुल सहदेव के मामा शल्य, तो रहे थे, पांडवों की तरफ से लड़ने, पर दुर्योधन ने उन्हें बहका कर अपनी और से लड़ने के लिए तैयार कर लिया. उसी शल्य को , कर्ण का सारथ्य करना पड़ा, और उन्होंने इतनी बार कर्ण को सूत पुत्र कह कर अपमानित किया कि वह अंततः दुखी ही रहा. युद्ध में सबके अपने अपने उद्देश्य होते हैं और अपनी अपनी रणनीति. यह युद्ध भी इसका अपवाद नहीं था. 
पूर्वी बंगाल का अपना उद्देश्य था, वह पाकिस्तान से मुक्ति चाहता था, 
भारत , पूर्वी पाक को तोड़ कर कम से कम एक दिशा में मित्र पड़ोसी चाहता था, और इस से पाकिस्तान का मनोबल भी टूट जाता और उसका आधार ही खिसक जाता. 
चीन पाकिस्तान के रास्ते से अरब सागर तक पहुंचना चाहता था, जो कि वह वहाँ तक अब पहुँच भी गया. साथ ही , रूस के साथ जो उसका सीमा विवाद चल रहा है उस में अमेरिका से उसकी निकटता , उसे लाभ ही पहुंचाती. 
पाकिस्तान चाहता था कि युद्ध की स्थिति में चीन उत्तर में लद्दाख और पूवोत्तर में अरुणांचल या सिक्किम से नया मोर्चा खोल देगा इस से भारत को तीनों सीमा पर, पश्चिम , पूर्वी और उत्तरी मोर्चे पर एक साथ लड़ना होगा और ऐसी परिस्थिति में वह अपनी पिछली हार का प्रतिशोध ले लेगा. 
अमेरिका भारत को डरा कर रखना चाहता था, ताकि भारत तक रूस का प्रभाव पहुँच सके. 
शतरंज की बाज़ी सज चुकी थी. युद्ध आसन्न हो गया था. और सेनाएं भी कमर कस रही थीं. 
-vss. 
(
अभी आगे और है - 1971 का युद्ध...... )

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