मुहम्मद अली जिन्ना साहब के सामने जब नवगठित पाकिस्तान, जिसमें तब बांग्ला देश पूर्वी पाकिस्तान के रूप में था , का नक़्शा रखा गया तो , उन्होंने कहा कि मैंने ऐसा कीड़ों खाया ( moth eaten ) पाकिस्तान की परिकल्पना नहीं की थी. दर असल जिन्ना पूरा पंजाब, जिसमें आज का हिमाचल, हरियाणा भी सम्मिलित था , पूरा बंगाल जिसमें बांग्ला देश का पूरा भाग भी सम्मिलित था, और पूरा आसाम , को लेते हुए पाकिस्तान के रूप में एक नया राष्ट्र भारत से अलग होकर बने , चाहते थे. पर जो उनके हाँथ आया वह उन्ही के शब्दों में कीड़ा खाया पाकिस्तान था. उस समय ब्रिटिश राज भारत था , उसमें 561 देसी रियासतें थीं। इन रियासतों के लिए इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने तीन विकल्प दिए थे.
1. या तो वह भारत में मिल जाएँ .
2. या पाकिस्तान में मिल जाएँ ,
3. या फिर स्वतंत्र और सम्प्रभु रहना चाहें तो स्वतंत्र और सम्प्रभु हो जाएँ .
सारी रियासतें तो मिल गयीं पर, कश्मीर, हैदराबाद, जोधपुर, जैसलमेर, कलात और जूनागढ़ का मामला अटक गया.
जोधपुर और जैसलमेर के राज्य बड़े थे। जोधपुर की तो अपनी वायुसेना भी थी , जिन्ना , का व्यक्तिगत सम्बन्ध तत्कालीन जोधपुर नरेश से भी था। जैसलमेर तो पाकिस्तान की सीमा पर ही था. जिन्ना ने अपने व्यक्तिगत संबंधों के चलते इन राज्यों को पाकिस्तान में मिलने के लिए राजी करने की कोशिश की, पर वह दोनों राजी नही हुए , उन्होंने भारत में मिलने की घोषणा कर दी.
कलात के खान, पाकिस्तान के बजाय ,भारत से मिलना चाहते थे, पर कलात की भौगोलिक स्थिति ऐसी स्थिति नहीं थी , अतः उन्होंने स्वतन्त्र रहने की सोची पर उन्हें भी पाकिस्तान में बाध्य हो कर मिलना पड़ा.
जूनागढ़ के दीवान , ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के पिता थे. वह पाकिस्तान में मिलना चाहते थे, जूनागढ़ के दीवान और नवाब के पाकिस्तान में मिलने की इच्छा का विरोध वहाँ की जनता ने किया और वहाँ के दीवान और नवाब को भाग कर पाकिस्तान जाना पड़ा. जूनागढ़ इस प्रकार भारत का अंग बना.
हैदराबाद सबसे बड़ी और संपन्न रियासतों में से था. यहां के निज़ाम ने पहले पाकिस्तान में मिलने की बात की , पर कलात के खान के ही समान इसके सामने भी भौगोलिक अड़चन थी. फिर निज़ाम ने स्वतंत्र रहने का विचार किया. इसका व्यापक विरोध हुआ. निज़ाम के रजाकारों ने हिन्दू प्रजा पर व्यापक अत्याचार किये , फिर सरदार पटेल की पहल पर वहा सैन्य बल और पी ए सी भेजी गयी. और तब निज़ाम ने भारत में मिलने का निर्णय किया. इस कार्यवाही को पुलिस कार्यवाही कहा गया.इस प्रकार इन रियासतों के विलय के बाद, बचा कश्मीर. इसकी स्थिति थोड़ी अलग थी.
आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद लौह पुरुष सरदार पटेल , जो भारत के प्रथम गृह मंत्री बने ने 8,00,000 वर्ग कीलोमीटर में फैली 561 देसी रियासतों का विलय भारत में करवा दिया था. उस समय इन देसी रियासतों की कुल जन संख्या आठ करोड़ साठ लाख थी. भारत का यह एकीकरण महान जर्मन राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ प्रिंस बिस्मार्क द्वारा उन्नीसवी सदी में किये गए जर्मनी के एकीकरण की याद दिलाता है. लेकिन अगर बिस्मार्क और पटेल में तुलना की जाय तो पटेल , बिस्मार्क से बीस ही ठहरते हैं. बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के दौरान युद्ध और कूटनीति जिसे जर्मनी के इतिहास में iron and blood theory कहा जाता है, का प्रयोग किया था, पर पटेल ने बिना रक्त की एक बूँद बहाये 561 देसी रियासतों को भारत में सम्मिलित करा लिया. जिन्ना ने सोचा था कि जैसे ही ब्रिटिश राज समाप्त होगा, वैसे ही बड़ी देसी रियासतें खुद ही सम्प्रभु होने की घोषणा कर देंगी। और इस कारण भारत का स्वरुप भी एकीकृत नहीं रहेगा. उन्होंने भारतीय क्षेत्र में स्थित , भोपाल, हैदराबाद, जैसलमेर, और त्रावनकोण जैसी बड़ी रियासतों के राजाओं को भड़काया भी था वह सम्प्रभु हो जाएँ. क्षेत्रफल और साधनों के दृष्टिकोण से यह सभी रियासतें सम्प्रभु हौंने में सक्षम भी थी. पर आजादी के आंदोलन और यूरोपीय जागृति और रूस की कम्युनिस्ट क्रान्ति ने जिस जन चेतना का प्रसार देश में कर दिया था, उस से इन रियासतों की जनता भी अछूती नहीं रही. परिणामतः इन नरेशों ने जनभावना का आदर करते हुए, सरदार पटेल की बात मान ली. विश्व में इस प्रकार का सहज एकीकरण कहीं और नहीं मिलता है. यह सरदार का देश के प्रति सबसे बड़ा और उल्लेखनीय योगदान है.
इन्ही रियासतों के समान जम्मू और कश्मीर भी एक बड़ी और साधन संपन्न रियासत थी. अगर वह ब्रिटिश राज के अधीन होती तो जो फार्मूला बंटवारे का तय हुआ था , उसके अनुसार वह पाकिस्तान को ही मिल जाती. वह पाकिस्तान का पांचवां प्रांत होता. क्यों कि पाकिस्तान के गठन का आधार मुस्लिम जन संख्या थी, और कश्मीर की 77 प्रतिशत आबादी मुस्लिम थी. पर वह एक स्वतंत्र रियासत थी और उसे भी भारत या पाकिस्तान में विलय होने या स्वतः सम्प्रभु होने का अधिकार इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट के अनुसार था. उसके महाराजा , उस समय हरी सिंह थे, जो 15 अगस्त 1947 के तुरंत बाद किसी भी देश में विलयित होने के लिए तैयार नहीं थे.
कश्मीर , अपनी विशालता और रणनीतिक भौगोलिक स्थिति के कारण भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण था. मुस्लिम बहुल आबादी होने के कारण पाकिस्तान उसे अपना स्वाभाविक भाग समझता रहा . आज़ादी के एक सप्ताह के बाद ही, 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने योजना बद्ध रूप से ऑपरेशन गुलमर्ग के नाम से, एक अभियान चला कर कश्मीर पर हमला कर दिया. पाकिस्तान सेना के साथ इस हमले में 5000 कबायली जो स्थानीय जन जाति के थे, भी शामिल थे. अचानक हुए इस आक्रमण से कश्मीरी सेना जब तक सम्भले तब तक कश्मीर का बहुत सा भूभाग पाकिस्तानी सेना और कबायलियों ने हड़प लिया. न केवल पाकिस्तान से आये कबायलियों ने भूभाग पर ही कब्ज़ा किया पर उन्होंने कश्मीरी औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार और घरों को आग लगाने जैसा कृत्य कर के अराजकता फैलाने का भी काम किया. पाक सेना और अराजक कबायलियों ने बहुत सी कश्मीरी युवतियों का अपहरण कर उन्हें पाकिस्तान भी ले जाने का कुकृत्य किया . इन हिंसक और बर्बर घटनाओं से कश्मीरी जनता कबायलियों और पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध होने लगी. तब महाराजा हरी सिंह ने भारत से सैन्य सहायता के लिए गुहार की. 26 अक्टूबर 1947 को, घुसपैठियों ने बारामुला के 14000 की जन संख्या में से 11,000 लोगों को मार डाला. वहीं स्थित मोहरा बिजली घर को भी नष्ट कर दिया जिस से श्रीनगर की बिजली आपूर्ति ठप हो गयी. इसी ऊहापोह में कोई और मार्ग न देख के महाराजा ने भारत में विलय हेतु हामी भरी और उनहोंने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया. विलय पत्र पर हस्ताक्षर होते ही कश्मीर भारत का अंग, जैसे अन्य रियासतें बनीं थी , यह भी बन गया. उस समय तक पाकिस्तानी सेना और कबायली सब कुछ तहस नहस करते हुए श्री नगर से मात्र 5 किलोमीटर दूर रह गए थे. अगर एक भी दिन का विलम्ब हुआ होता और महाराजा हरी सिंह की तरफ से कोई हीला हवाली हुयी होती तो राजधानी श्रीनगर पाक सेना और कबायलियों के अधिकार में आ गया होता.
भारत ने तत्काल वायु मार्ग से भारतीय सेना की टुकड़ियां श्रीनगर भेजी गयीं. भारतीय सेना ने श्रीनगर पहुँचने के दूसरे ही दिन बारामूला को पुनः अपने अधिकार में ले लिया. और दो सप्ताह के सफल सैनिक अभियान के बाद जम्मू कश्मीर के अधिकाँश विजित क्षेत्रों को पुनः हस्तगत कर लिया गया. पाक सेना और कबायली पीछे भागने लगे. लेकिन तभी प्रधान मंत्री नेहरू ने इस प्रकरण को संयुक्त राष्ट संघ को जो कुछ ही वर्ष पूर्व गठित हुआ था, को संदर्भित कर दिया. यह एक बड़ी गलती थी. पटेल इस मामले पर नेहरू से अलग राय रखते थे. सेना को अगर और थोडा समय मिल जाता तो संभावतः कश्मीर का अधिकाँश भूभाग जो पाकिस्तान द्वारा हड़पा गया था, वापस मिल सकता था. पर सेना उस समय इतनी साधन संपन्न भी नहीं थी और नेहरू इस मामले पर भ्रम के शिकार थे. 1 जनवरी 1948 को, यह प्रकरण संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष प्रस्तुत हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर सैन्य आक्रमण करने और उसकी आड़ में कबायलियों को जम्मू कश्मीर में अवैध रूप से घुसपैठ करने और कब्ज़ा करने का आरोप लगाया. इस शिकायत और आरोप पर संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् ने यूएन कमीशन इन इंडिया एंड पाकिस्तान ( यू एन सी आई पी ) का गठन इन आरोपों कीं जांच और आवश्यक कार्यवाही करने के लिए किया. इस कमीशन को भारत और पाकिस्तान के परस्पर दावों और प्रतिदावों की छानबीन करने और मामलें की सुनवाई कर समाधान ढूंढने का अधिकार दिया गया. पाकिस्तान ने प्रारम्भ में इस आरोप से कि उसने कश्मीर पर हमला किया था, पहले तो इनकार किया , पर बाद में उसने इस आरोप को स्वीकार किया कि उसकी सेना ने घुसपैठ कर कबायलियों की मदद से कश्मीर पर हमला किया था. यू एन सी आई पी के अध्यक्ष डॉ जोसेफ कोरबेल थे जो अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट रह चुकी मेडेलिन अलब्राइट के पिता थे. 13 अगस्त 1948 को इस कमीशन ने पाकिस्तान को अपनी सेना और कबायलियों को कश्मीर से वापस जाने का आदेश दिया. यह निर्णय कमीशन ने पूरी तरह से सभी पहलुओं की जांच करने के बाद दिया था. नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र को प्रकरण संदर्भित करने के साथ ही जनमत संग्रह के लिए भी अपना प्रस्ताव दिया था. कमीशन ने पाकिस्तान को कश्मीर खाली कर दिए जाने के बाद, भारत को ,न्यूनतम बल रख कर जन मत संग्रह कराने का सुझाव दिया था. पर यह तभी संभव होता, जब पाकिस्तान , कश्मीर से अपनी सेना का एक एक सैनिक और एक एक कबायली घुसपैठिया वापस बुला लेता. इसके बाद पूरे कश्मीर का प्रशासन संभालने की जिम्मेदारी भारत की थी. 1 जनवरी 1949 को जितना क्षेत्र पाकिस्तान की सेना के कब्ज़े में रहा, उतना क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर रहा, और शेष जम्मू कश्मीर राज्य का भाग बना. यही लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल बना (LOC ) लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल , अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा नहीं होती है बल्कि यह एक अस्थायी व्यवस्था , तनाव को दूर कर सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए होती है. इस प्रकार 1 जनवरी 1949 से जो स्थिति है वह अभी तक वैसी ही है.
( अभी आगे और है ... )
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