Friday, 19 April 2013

संसार ही राम है , राम ही संसार हैं .....A poem...




संसार ही राम है , राम ही संसार हैं .....

इंसानों को तो बाँट दिया तुम ने ,
राम कहाँ देखा , उन में ,
सीढियां बना ली , राम को भी तुम ने ,
पहुँचने की राज प्रासाद पर .

व्याप्त हैं जो, राम ,
जड़ और चेतन में ,
अरसे से उन्हें तुम ,
घोषित कर के कॉपीराइट,
भुना रहे हो .

आओ मित्र ,
आज इस पावन पर्व पर ,
जब हुआ था अवतरित एक नर श्रेष्ठ ,
आराधना करें उस की ,
पूजा करें उस की .
आत्म'सात करें उसे ,
उसे महसूस करें .
उसे जियें ..

बांटों मत उसे ,
दंश राजनीति का ,
राम से अधिक किस ने भोगा है, मित्र ?
निर्वासित राम , बनवासी राम ,
विरह में सीता के , कलपते राम ,
मूर्छित लक्ष्मण के देह पर रोते राम ,
समुद्र को सुखा देने का निश्चय करते , क्षत्रिय राम ,
बाँध कर सेतु ,
रावन का संहार करते  राम ,
अन्याय के विरुद्ध सतत युयुत्सु राम ,
क्या क्या नहीं  कराया, विधाता ने !

अब बांटों मत उन्हें ,
उन्हें दूर रखो अपने स्वार्थ से ,
देखते ही कहाँ हो तुम उन्हें इंसानों में ,
इंसान ही कहाँ इंसान रह गए हैं तुम्हारे लिए ,
बन के रह गए हैं वे केवल वोटों के, बण्डल ,
दिखते हैं तुम्हे भी वह सिर्फ टोपी और तिलक में ,

राम केवल तुम्हारे ही नहीं है ,
सब के हैं ,
कहा था इकबाल ने इमाम ए हिन्द ,
सर्व व्यापी हैं , अखिल जगत के हैं .
वाल्मीकि के हैं , भवभूति के हैं ,
कालिदास के हैं , तुलसी के हैं ,
कबीर के हैं , गाँधी के हैं .
संसार में व्याप्त , संसार के हैं ,
संसार ही राम है , राम ही संसार हैं .....
-vss

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