Monday, 29 April 2013

मेरी जुबां पर न जा ,...




मेरी जुबां पर जा ,

मेरी जुबां पर जा ,
आँखों की गहराई देख ,
सब कुछ बयाँ  कर देती है  !
जुबां तो शायद हिचक भी जाय ,
कभी !!

अनंत के विस्तार से 
ढूंढ कर लाता हूँ ,
ख़याल अपने .
कितनी हिम्मत बटोरता हूँ ,
शब्दों में ढालने के लिए ,
जज्बातों को !

थम जाते हैं शब्द ,
पर ,
रिसते रहते हैं ख़याल ,
आकर ढांक लेती है
तब ,
अनजानी सी एक चुप्पी .

खो जाते हैं शब्द ,
वहीं ,
जहां से ख्यालों ने गढ़ा था उन्हें ,
कह नहीं पाता कुछ ,
हो जाता हूँ मौन .
ओढ़ लेता हूँ एक चादर , ख़ामोशी की .
तब ,
बरबस , बोल पड़ती हैं 
मेरी आँखें !

, देख , मेरी आँखों में ,
दूर दिगंत में देखती हुयी ,
शांत , समुन्दर की सी गहरी ,
विविध रंगों के इन्द्र धनुष लिए ,
यहाँ जो है ,
निःशब्द , निष्पाप और सत्य है ....
-vss .





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