Tuesday, 9 April 2013

A poem..... बना गुलाब तो कांटे चुभा गया एक शख्श ,




बना  गुलाब  तो  कांटे  चुभा  गया  एक  शख्श ,

बना  गुलाब  तो  कांटे  चुभा  गया  एक शख्श  ,
हुआ चिराग  तो  घर  ही  जला  गया  एक  शख्श .
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सभी  रंग   मरे  , सारे  स्वप्न  मरे ,
फ़साना  थे,  कि फ़साना  बना  गया  एक  शख्श  .


कैसे  हवा  में  उडूं , किस  तरह  मैं  लहराऊँ ,
ग़मों  का  जाल  एक  सा  बिछा  गया  एक  शख्श  .


लौट  सकता ,  आगे  ही  बढ़  पाऊंगा,
मुझे   जाने  किस  राह छोड़  गया  एक  शख्स .

मोहब्बतें  भी थी  अज़ब, उसकी  बातें  भी  कमाल ,
मेरे  ही  तरह  का  मुझ  में  समा  गया  एक  शख्स.


मोहब्बत  ने  किसे  भला बचा  रखा  है  अब  तक ,
मिले  वो  घाव  कि  फिर  याद   गया  एक  शख्स.


खुला  यह  भेद  की  आइनाखाना  है  यह  दुनिया ,
और  मुझ  को  तमाशा  बना  गया  एक  शख्स.
-vss

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