Thursday, 25 April 2013

"Courts can question the government but not make laws" - The Hindu

संसद और कुछ लोग अक्सर न्यायिक सक्रियता का मुद्दा उठाते हैं और अक्सर संसद की सर्वोच्चता की बात करते हैं . संसद लोक तंत्र में सर्वोच्च सत्ता है , इस पर कोई दूसरी राय नहीं है . लेकिन जिस प्रकार से संसद, सांसदों , और राजनेताओं की गरिमा और साख गिरी है , इस से ख़तरा लोकतंत्र को ही है . आज केवल साख थोड़ी बहुत बची है तो वह उच्च न्यायालयों की या सर्वोच्च न्यायालय की . अधीनस्थ न्यायपालिका भी साख भंग दोष से पीड़ित है . जब से जन हित याचिकाओं का दौर चला है , इस से कार्यपालिका और विधायिकाओं की मनमानी पर अंकुश लगा है . सरकार के बहुत से फैसले , और बहुत सी अनियमितताएं सवालों के घेरे में आयी हैं . स्थिति यह हो गयी है कि एक अच्छा फैसला अगर जन हित में होता है तो भी उस की सदाशयता पर लोग सवाल उठाते हैं .जब तक राजनितिक वर्ग अपनी साख बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं करेगा , जब तक जिन के प्रतिनिधित्व का वह दावा करता है का विश्वास अर्जित नहीं करेगा , लोग त्राता के रूप में न्यायालयों की और देखते रहेंगे ,हमें मानना होगा संसद सर्वोच्च हैं पर सांसद नहीं .....
"Courts can question the government but not make laws" - The Hindu

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