मुखौटा .....
उन की कमीजें उतर चुकी है ,
चेहरे बेनकाब हैं ,
टंगी है होंठों पर खोखली मुस्कराहट ,
हकीकत अयां हो रही है सब के सामने .
सोच , उनकी नहीं बदली ,
मिजाज़ भी वही है ,
आह !
क्या खूबसूरत अदाकारी है ,
मैंने अब उस के इरादे जान लिए ,
सरकते हुए ,
आस्तीन में अपने देख लिया उसे ,
मौसम के साथ , रंग बदलते हुए ,
भांप लिया है उसे . .
जब भी बात छेड़ी मैंने, खेत औ खलिहानों की ,
वादे किये, उस ने, आसमान से, चाँद उतारने की ,
जब दिखाई उसे, मैंने , सूखी अंतडिया, भूख से ,
तो, थमा दी, चन्द किताबें उस ने ,
ढंग से जिन्हें , पढी भी नहीं थी उस ने !
उम्र गुज़र गयी ,
उस के चश्मे से देखते हुए दुनिया,
करते हुए भरोसा ,
गुड़ जैसी उस की बातों पर ,
मौसम बदलता रहा ,
औ ' बदलता वह भी रहा ,
उस की बातें और घातें
मीठी और खूबसूरत बनी रहीं .
और हम,
वहीं के वहीं ठगे से खड़े ,
फूटता हुआ गुब्बारा , उम्मीदों का देखते रहे .
लक दक कपड़ों में ,
मुस्कुराते मुखौटे में उस के लोग ,
अब नहीं छल पायेंगे मुझे .
शैतान , जो छुपा है अन्दर कहीं ,
दिखने लगा है अब .
क्षितिज पर देख ,
अन्धेरा ,अब छंट रहा है .
दूर कहीं कुछ रोशन हो रहा है .
उस का मुखौटा उतर रहा है ....
-vss
Beautiful Guruji..............
ReplyDeleteateeva sundar
ReplyDeletethanks....
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