मैं सत हूँ , मैं चित हूँ , मैं आनन्द हूँ
न मैं शरीर हूँ , न शरीर का विकार हूँ ,
न मैं इन्द्रियाँ हूँ , न मैं इन्द्रियों का विषय हूँ ,
मैं सत ,चित आनंद हूँ , मैं यह हूँ , मैं यह हूँ ,
न मैं मृत्यु हूँ , न मृत्यु का भय
न मेरा कभी जन्म हुआ है ,न कभी मेरे माता पिता थे ,
मैं सत हूँ , चित हूँ , आनन्द हूँ .
मैं पीड़ा या दुःख नहीं हूँ ,न मुझे कोई कष्ट है ,
न मैं किसी का शत्रु हूँ ,न कोई मेरा शत्रु है ,
मैं सत हूँ , चित हूँ , मैं आनन्द हूँ,
मैं निराकार हूँ , असीम हूँ , अनंत हूँ , देश कालातीत हूँ ,
मैं सब में हूँ , मैं सृष्टि का आधार हूँ ,
मैं सत हूँ , मैं चित हूँ , मैं आनन्द हूँ
आप , मैं ,और सृष्टि में सब कुछ , वही पूर्ण है ,
उसके अंश नहीं, वरन पूर्ण .उस परम के पूर्ण,
जो सत्य है , चित है आनन्द है .....
-निर्वाणाष्टकम .....
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