पुलिस अधीक्षक गोंडा का तबादला
उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो यह उम्मीद जगी की शायद इस बार सपाअपनी पुरानी ग़लतियाँ नहीं दुहाराएगी . लेकिन धीरे धीरे यह भ्रम भी दूर होने लगा
अब जब पुलिस अधीक्षक गोंडा का तबादला एक पशु तस्कर जो राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त भी हैं के कहने पर हुआ तो बहुत आश्चर्य नहीं हुआ . नवनीत राणा का दोष सिर्फ़ इतना था कि उन्होने इस पशु तस्कर द्वारा रिश्वत लेकर पशु तस्करी कराने से इनकार कर दिया . यह घटना पुलिस मनोबल को तो गिराएगी ही और पुलिस को संदेश भी देगी कि अब उन्हे ईमानदारी और नियम क़ानून से काम करने की ज़रूरत नहीं है . इन्ही सब स्वेछचारिता के निर्णय पर रोक लगाने के लिए पुलिस आयोग की रिपोर्ट लागू करने की बात की जा रही है . और यही अधिकार राजनेता छोड़ना नहीं चाहते हैं . वास्तव में पुलिस के काम में दखल देना कोई बहुत कठिन काम नहीं है . ज़्यादातर छोटे नेता अपना काम थानो और तहसील से चलाते हैं . विकास का कार्य करने में उन की रूचि नहीं रहती है और रहती भी है तो यह उनकी कमाई का ज़रिया रहता है . किसी अभियुक्त को थाने से छुड़ा देना किसी मुक़दमें में आरोप पत्र और फाइनल रिपोर्ट लगवा देना यह काम उनकी प्राथमिकता में आता है . इस लिए पुलिस पर दबाव बनाते रहते हैं . अगर पुलिस आयोग की रिपोर्ट मान ली जाएगी और थानाध्यक्ष , जिला पुलिस प्रमुख, और पुलिस महानिदेशक का कार्यकाल जब निर्धारित हो जाएगा तो इस प्रकार के अनावश्यक दबाव कम हो जाएँगे .पांडे की राजनीतिक महत्ता होगी और हो सकता है वह सपा के लिए चुनाव में उपयोगी हों, पर जिस तरह से उनके कहने पर और बिना किसी अपराध के नवनीत राणा को हटाया गया है . इस का संदेश बहुत ही ग़लत गया है . जनता और पुलिस में भी इसे लेकर अच्छी धारणा नहीं बनी है .
पुलिस महानिदेशक मुख्यालय को जो विभाग का मुख्यालय भी है इस ओर ध्यान देते हुएवस्तुस्थिति से मुख्य मंत्री को सभी तथ्यों से अवगत कराना चाहिए . क्यों कि पुलिस मनोबल गिरने की स्थिति और इस पार के ग़लत संदेश फैलने की दशा में पुलिस के काम का जब स्तर गिरेगा तो जवाबदेही उन्ही की बनती है .
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