Sunday, 17 February 2013

A poem.... ज़िंदगी , एक पहेली .




A poem....
जीवन के विषय में सदैव विचार विमर्श होते रहे है , और जब तक जीवन रहेगा यह चलता रहेगा .जीवान के विविध रंग और आयाम होते हैं . कभी ज़िंदगी उबा देती है और कभी जीने के लिए कम पड़ जाती है . ज़िंदगी के इन्ही रंगों,  आयामों  से प्रेरित यह कविता है। 
आशा है आप सब को पसन्द आयेगी। 

ज़िंदगी , एक पहेली .

जब खुश हैं हम ,
तब बहुत प्यारी है ज़िंदगी .

जब उदास हों,
तब दुःख है ज़िंदगी .

जब कोई दिल को अच्छा लगे ,
तब रंगीन है , ज़िंदगी .

जब मन सोच में डूबा हो ,
तब बहुत गहरी है ज़िंदगी .

जब कठिनाइयां सामने आयें ,
तब संघर्ष है ज़िंदगी .

जब कोई हिम्मत बढाये ,
तब प्रेरणा  है ज़िंदगी .

जब झुकना पड़े किसी के सामने ,
तब खामोश है, ज़िंदगी .

जब बहुत कुछ सहना पड़े ,
तब वेदना है ज़िंदगी .

जब दुनिया सच्ची लगे ,
तब मासूम है ज़िंदगी .

जब झूठ से ढँकी सच्चाई सामने आये ,
तब दर्दनाक है , ज़िंदगी .

जब दिल टूट जाये ,
तब ग़मों से घिरी है ज़िंदगी ,

जब प्रेम मिले ,
तब अनुराग है ज़िंदगी .

जब कुछ समझ आये ,
तब अन्धकार है ज़िंदगी .

जब रास्ता नज़र आये ,
तब नयी सुबह है ज़िंदगी .

जब सपने बिखर जायें ,
तब आखों का नम होना है ज़िंदगी .

जब सपने साकार हों ,
तब पागलपन है ज़िंदगी .

अपनों के प्रति प्यार है ज़िंदगी ,
उन के लिये कुछ भी कर गुजरने की चाहत है ज़िंदगी .

और तो और ,
गैरों को भी अपना बनाये यह ज़िंदगी .

सच पूछो तो , दोस्त ,
हालात के सांचे में ,
खुद को ढालना ही है , ज़िंदगी !!
-vss 

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