हमारी अस्मिता
हम अक्सर इधर राम मंदिर निर्माण आंदोलन को तेज़ी से बढ़ता हुआ देख रहे हैं. कुंभ में धर्म संसद ने मंदिर निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता अपनी जाहिर की है . विश्व हिंदू परिषद ने तो इसे अस्मिता से जोड़ा है . धर्म संसद संत और साधुओं की है, जिनका अजेंडा मंदिर हो सकता है, और वी एच पी का भी यह मुद्दा हो सकता है , क्यूँ कि यह उनके लिए खाने कमाने का साधन है . और यह एक प्रकार से धर्म की राजनीति है . पर भाजपा एक राजनीतिक दल है और संसद में बहुमत सरकार बनाने के लिए पाना चाहती है . और जब वह सब भुला कर सिर्फ़ मंदिर को ही अपना लक्ष्य घोषित कर रही है तो कुछ सोचना पड़ता है.
अक्सर यह कहा जाता है कि यह हमारी अस्मिता का प्रश्न है . मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि यह हमारी अस्मिता का प्रश्न कैसे हो सकता है ? हमारे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार , अपराध , विभिन्न सामाजिक कुरीतियाँ और इन सब से बनती हुई विश्व मैं हमारी विपरीत क्षवि, क्याव हमारी अस्मिता का प्रश्न नहीं है ? मंदिर का मुद्दा जब जब उठा है , भाजपा को उसका ख़ामियाजा उठाना पड़ा है . वह न सिर्फ़ जनता से नकारी गयी है , वरन अपने सहयोगी दलों द्वारा भी त्यागी गयी है .देश में भ्रष्टाचार और कुशासन , और अन्य ज्वलंत समस्याओं को लेकर एक माहॉल बना है . पिछ्ले साल हुए अन्ना हज़ारे, बाबा रामदेव और अरविंद केजरीवाल के आंदोलनों को व्यापक जन समर्थन मिला और इन सब समस्याओं के प्रति जनता खुल कर सड़कों पर आयी . मेरा दावा है कि , पूरी धर्म संसद भी जितना व्यापक आंदोलन और वह भी स्वयं स्फूर्त , दामिनी बलात्कार कांड के विरोध में हुआ था , उतना व्यापक और दीर्घ आंदोलन खड़ा नहीं कर सकती . राम अस्मिता के प्रतीक हैं, पर मंदिर नहीं . जिस संस्कृति में राम से ज़्यादा राम के नाम की बात की जाती है , वहाँ एक मंदिर आस्था का प्रश्न तो हो सकता है , अस्मिता का नहीं.
लेकिन भाजपा एक राजनीतिक दल के साथ विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है और ६ वर्ष देश का शासन चला चुकी है , और अगले चुनाव में पुनः सरकार में आने का मंसूबा बाँधे है , वह अगर इन ज्वलंत समस्यायों से मुँह चुरा कर उस मुद्दे को पकड़ने की कोशिश कर रही है जो सिर्फ़ धार्मिक उन्माद से जुड़ा है , तो उस के नेताओं की अकल पर तरस आता है . हम रोटी और बेहतर जीवन माँग रहे है और यह हमें वह इमारत देने की बात कर रहे हैं , जो इन्हे अच्छी तरह से पता है कि वह भी वह नहीं दे सकते हैं, हाँ बहका कर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हो सकते हैं . आप देखिएगा जब भी आप बेहतर प्रशासन, और उन्नत जीवन की बात कीजिएगा कोई राग मंदिर छेड़ेगा और कोई भगवा आतंकवाद की बात करेगा . असल मुद्दा जो हमारे जीवन से जुड़ा है , जो हमारी तरक़्क़ी से जुड़ा है , जिस से सच में दुनिया में हमारी पहचान और सम्मान बढ़ेगा वह नेपथ्य में चला जाता है . और मंच पर फिर वही लोग नज़र आते हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं.
कभी कभी संशय होता है, कि इन दोनो बड़े राजनीतिक दलों में कहीं समझौता तो नहीं हैं. एक चिंतन बैठक में, जहाँ देश में सुशासन की बात की जानी चाहिए, वहाँ जान बूझ कर भगवा आतंकवाद की बात करता है , ताकि दूसरा भड़के . और विपक्ष ने जिसने दामिनी कांड आंदोलन, अन्ना आंदोलन , और आइ ए सी के आंदोलन से दूरी बनाए रखी , ने इस मुद्दे पर धरना दिया और संसद के बहिष्कार की घोषणा कर दी . जिन्हे जागरूक विपक्ष और बेहतर प्रशासन , का आश्वासन देना चाहिए वह मंदिर का वादा कर रहे हैं, यह जानते हुए भी कि , जब तक सर्वोच्च न्यायालय का कोई निर्णय नही आ जाता मंदिर के बारे में कुछ भी नही किया जा सकता, और जिन्हे धर्म और अध्यात्मिक चर्चा और धर्म में व्याप्त कुरीतियों के निवारण का उपाय ढूँढना चाहिए वह प्रधान मंत्री घोषित कर रहे है. इसे मैं विडंबना ना कहूँ तो क्या कहूँ .
कुल मिला कर यह सब हमें मूर्ख समझ रहे हैं और मूर्ख बना रहे हैं. दोस्तों , देश समृद्ध हो, हमारे आर्थिक संसाधन बढ़ें , देश की औद्योगिक उन्नति हो , प्रति व्यक्ति आय बढ़े, बेरोज़गारी कम हो , क़ानून व्यवस्था में सुधार हो , और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे, जिस से दुनिया में हमारी साख बढ़े . यह हमारी अस्मिता है . न कि ऐशवर्य के द्वीप की तरह, भिखमाँगों और दुखी, अनाथ बच्चों से घिरा मंदिर. मंदिर का मुद्दा न्यायालय में है , उस का फ़ैसला आने दें , तब उस पर कोई निर्णय लें. भाजपा राम मंदिर के रास्ते से संसद पहुँचने की आशा न करें , जनता और जनार्दन दोनो को वास्तविकता पता है ,
एक सुखी संपन्न समृद्ध और सुशासित राष्ट्र ही हमारी अस्मिता है, मंदिर का निर्माण नहीं.
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