विश्व के समस्त सद्विचारों को मेरे मस्तिष्क का आमंत्रण है !
जब हम अपनी चिंतन प्रक्रिया को किसी धारणा ,विचार ,या निष्कर्ष से बाँध देते हैं तो हमारा वैचारिक विकास अवरुद्ध हो जाता है .तब हम एक दायरे में ही सोचने लगते हैं .जब कि इस ब्रह्माण्ड में सोच का दायरा ब्रह्माण्ड की ही तरह अनन्त है .हम सतत विकास की प्रक्रिया में हैं . हम हर क्षण कुछ नया जी रहे हैं , और हर पल कुछ नया देख रहे हैं . जिसे आप आज नूतन समझ रहे हैं ,वह अगले ही पल पुरातन हो जाता है .ब्रेकिंग न्यूज़ , तुरंत हमें चौंकाती है , पर बाद में वही बड़ी से बड़ी खबर ह्में ज़रा भी आकर्षित नहीं करती है . क्यूँ कि वह खबर फिर अगले क्षण पुराती हो जाती है। कालिदास , ने जब सौंदर्य की व्याख्या की थी तो निरंतर परिवर्तन का विचार उन के मस्तिष्क में रहा होगा .तभी उन्होंने कहा था कि, नित नित परिवर्तन ही सौंदर्य है . इसी लिए विचार प्रवाह , और मस्तिष्क को किसी पुस्तक , किसी धारणा और विचार से न बांधें . उसे ब्रह्माण्ड में मुक्त विचारने दें .तभी हम उस समस्याओं का समाधान आसानी से खोज पायेंगे .अगर हम किसी धारणा से बंध गए तो निश्चय ही एक प्रकार का पूर्वाग्रह ,उस समस्या का उचित समाधान हमें ढूँढने नहीं देगा .और हम एक प्रकार के कुंठा का शिकार हो सकते हैं
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जो विचार कल सामयिक था ,और जिस ने आप की समस्या का समाधान किया था ,वह विचार उसी समस्या के लिए आज समाधान कारक नहीं बन सकता है . क्यों कि समस्या अगर वही हो तो भी , समय और परिस्तिथितियाँ बदल गयी है , अतः समाधान भी बदल जाएगा .और वह समाधान हमें बदले परिवेश में सोचना पडेगा
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निरंतरता और प्रवाह जीवन है , और जड़ता जीवन का थम जाना है .अतः निरंतर प्रवाहमय बने रहने के लिए निरंतर कुछ नया सोचिये . यह तभी सम्भव है जब आप , उन विचारों के दायरे से निकल कर सोचेंगे जो एक धारणा बन चुके हैं .अपने विचारों को मुक्त कीजिये , उन्हें बहने दीजिये , और नए आयाम स्पर्श करने दीजिये .जीवन इसी प्रवाह में है और समस्याओं का समाधान भी .
Sir, ...aap samaj ki ek aisey soch ho jo shayad humari disha badal de.....apki likha aisey mehsoos hota hai ki jaisey kisi sant ki vaani padh rahey hai... Thank you......
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