क्या प्रेम का भी कोई दिन होता है !
क्या प्रेम का भी कोई दिन होता है ?
क्या भावनाओं के ज्वार का भी ,
कोई दिन होता है !
क्या उसे सिर्फ आज बताऊँ कि ,
कितना चाहता हूँ ,
आँखों में सिमटा दरिया ,
और ,
दिल के किसी कोने में बन रहा ,
मधुर झंझावात ,
कहीं आज ही बरसता है क्या .
सब कुछ उड़ा ले जाता है यह तूफ़ान ,
सिर्फ उसे पाने की उद्दाम ख्वाहिश छोड़ कर ,
एक सागर है प्यार ,
हहराता हुआ , आह्लादित करता हुआ ,
कभी उन्माद से भरा ,
कभी चुप चुप ,
कभी समेटे अनजाने जज्बातों को ,
कभी मुक्त पवन सा ,
सहलाते ,बदन को ,
कितने रंग दिखा जाता है .
मेरे प्यार के वह पल ,
जिन में हुयी नातमाम गुफ्तगू ,
क्या सिर्फ आज ही याद आयेगी ?
कैसे समेटूं इतने ख़्वाबों ,
इतनी यादों को सिर्फ आज के दिन .
मेरा इश्क ,
मोहताज़ नहीं है ,इजहार का ,
रूह को रूह से समेटता हुआ ,
चाँद सितारों की सैर कराता,
धड़कता रहता है मेरे भीतर !
प्यार है यह ,
व्यापार नही है प्यार का .
क्या प्रेम का भी कोई दिन होता है ,
मेरे दोस्त ?,
-vss
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