जीवन और संसार के प्रति हम सब में कभी कभी निराशा और अवसाद उत्पन्न हो जाता है . हम वैराग्य और नैराश्य को एक ही मान बैठने की गलती भी कर बैठते हैं . संसार आशा पूर्ण है , और इस विराट में जो कुछ हमें प्राप्त हुआ है या होगा , वह केवल आशा से ही सम्भव हुआ है और आगे भी होगा . संसार सदैव ऐसा ही रहा है . दूर तक स्वर्णिम दिखता पर्वत शिखर भी वहाँ पहुँच कर पत्थर और हिम ही होता है . कृपया यह लम्बी कविता पढ़ें . आप का कमेंट्स और पसंद मेरा उत्साह बढ़ाएगा .....
कोई दुःख न हो , कोई गम न हो ,
कोई दुःख न हो , कोई गम न हो ,
आँख किसी की ,नम ना हो ,
न दिल टूटे , ना आस कभी ,
बस सरिता प्यार की बहती रहे ,
मन वसन्त सा खिला रहे ,
गगन खगों से भरा रहे ,
मेघ , समय पर आते हों ,
सावन घन सघन बरसता रहे ! .
तेरा हाँथ न छूटे , साथ न टूटे .
तेरे हाँथ में मेरा हाँथ रहे ,
काश कि , दुनिया ऐसी हो ! ,
काश कि, दुनिया ऐसी हो !!
पर दुनिया तो है अजब गज़ब ,
दुःख फैला है , गम पसरा है ,
लोग यहाँ , हैरान इतने हैं ,
बिखरे बिखरे , टूटे ,टूटे ,
भाग रहे हैं इधर उधर ,
दिखती केवल मृगत्रिष्णा है,
सारी उमर थकाती है .
बीता बचपन , ढल गया यौवन ,
आस बची नहिं , चाह मिटी नहीं ,
खालीपन है अजब सा मन में ,
बाहर धुआँ धुआँ सा आँगन ,
ढूंढ रहे हैं किस को हम ,
सोच न प़ाया अब तक मन .
आओ सब कुछ भुला दें अब ,
उलझी गुत्थी छोडें अब ,
सब कुछ कभी नहीं सुलझता ,
जो उलझाता ,वही सुलझाता ,
दुनिया, तो ऐसी ही रहेगी ,
जग कब था स्वप्न सरीखा ?
छल भी था , षड्यंत्र भी था ,
तृष्णा भी थी , इर्ष्या भी थी ,
कामिनी भी थी , कंचन भी था,
सुरा भी थी और सोम भी था ,
सुर भी थे , और असुर भी थे ,
था जो पहले , आज भी है वह ,
और रहेगा यही अनन्त तक ,
देखोगे , कंचन मृग जब ,जब ,
सीता को तुम याद करोगे ,
आह !
एक भ्रम ने कितना युद्ध कराया !
आओ अब हम खुद को बदलें ,
ढूंढें राह इसी , धुन्ध में ,
असह्य घुटन से भरा हुआ यह ,
अब इस तम को पार करें हम,
हाँ ,
अब इस तम को पार करें हम !!
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